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Huqooq ki Tafsil

हुक़ूक़ की तफ्सील
बिरादराने मिल्लत हुक़ूक़ की दो किस्में हैं एक हुक़ूक़ुल्लाह दूसरे हुकुकुल इबाद फिर हुक़ूक़ुल्लाह की दो किस्में हैं। एक वह कि अगर उनके बारे में बन्दा से कुसूर वाकेअ हुआ, तो वह सिर्फ तौबा से माफ हो सकते हैं जैसे कि शहर में जुमा और ईदैन की नमाज छूट जाने के गुनाह, या शराब पीने और नाच वगैरा देखने के गुनाह और दूसरे वह जो सिर्फ तौबा से नहीं माफ हो सकते जैसे नमाज न पढ़ने, रोजा न रखने, जकात व फित्रा न अदा करने और हज व कुर्बानी वगैरा न करने के गुनाह कि इनके माफ होने की सूरत सिर्फ तौबा नहीं है बल्कि छूटी हुई नमाजों और रोजों की कजा करे, जितने सालों की जकात और फित्रा न दिया हो अब अदा करे, साहिबे निसाब होकर जितने साल कुर्बानी न की हो हर साल के बदले एक बकरे की कीमत सदका करें, खुद हज न कर सकता हो तो हज्जे बदल कराए माल न रह गया हो तो हज्जे बदल कराने की वसिय्यत करे और तौबा करे तो माफ हो सकते हैं। यानी तौबा के साथ उन की अदाइगी भी जरूरी है कि यह चीजें सिर्फ तौबा से नहीं माफ हो सकती।

     और रहे हुक़ूक़ुल इबाद यानी बन्दों के हुक़ूक़ तो वह हुक़ूक़ुल्लाह की दूसरी किस्म से भी अहम हैं इस लिये कि खुदाए तआला अरहमर्राहिमीन है अगर वह चाहे तो अपने हर किस्म के हुक़ूक़ माफ कर दे लेकिन वह किसी बन्दे का हक हरगिज़ नहीं माफ करेगा जब तक कि वह बन्दा न माफ कर दे कि जिस की हक़ तल्फी की गई है। इसी लिये सरकारे अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने आखिरी वसिय्यत में खास तौर पर इस की अहमियत को जाहिर फरमाया और जमानए सेहत में भी हमेशा इस की ताकीद फरमाते रहे मिश्कात शरीफ की हदीस है हज़रत अबू हुरैरा रदी अल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि रसूल ﷺ ने सहाबए किराम से दरयाफ्त फरमायाः (तर्जमा) क्या तुम लोग जानते हों कि मुफ्लिस और कंगाल कौन है? सहाबा ने अर्ज किया या रसूल ﷺ हम में मुफ्लिस यह शख्स है कि जिस के पास न पैसे ! हों और न सामान । हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने फरमाया कि मेरी उम्मत में दरअसल मुफ्लिस वह शख्स है कि जो कियामत के दिन नमाज रोजा और जकात वगैरा लेकर इस हाल में आएगा कि उस ने किसी को गाली दी होगी, किसी पर तोहमत लगाई होगी, किसी का माल खा लिया होगा, किसी का खून बहाया होगा और किसी को मारा होगा या किसी का तौहीन किया हो तो अब उन लोगों को राजी करने के लिये उस शख्स की नेकियां उन मजलूमों के दरमियान तक्सीम की जाएंगी। अगर उस की नेकियां खत्म हो जाने के बाद भी लोगों के हक उस पर बाकी रह जाएंगे तो अब हकदारों के गुनाह लाद दिये जायेंगे यहां तक कि उसे जहन्नम में फेंक दिया जाएगा । यह आखि़रत में अल्लाह का अदल व इंसाफ़ है। (खुतबाते मुहर्रम, पेज 42 )

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