इल्म और अमल
किताब मिन्हाजुल आबिदीन में इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह तहरीर फ़रमाते है
ऐ अज़ीज़ ! तू यकीन कर कि इन दो के सिवा जो कुछ दुन्या में है सब बातिल है क्योंकि ईमान जैसी कीमती दौलत की हिफ़ाज़त इन्ही दोनों के जरिये मुमकिन है इसके अलावा जो कुछ है फुजूल है जिससे कुछ हासिल नहीं और उससे कोई भलाई नहीं ।
जब तेरे ज़ेह्न में इल्म व इबादत की अहम्मिय्यत आ गई तो अब येह बात समझ कि इल्म इबादत से अफ़ज़ल व अशरफ़ है इसी लिये नबिय्ये करीम ने फ़रमाया : आलिम की फ़ज़ीलत आबिद पर ऐसी है जैसी मेरी अपने अदना उम्मती पर ।
एक जगह आप ﷺने फ़रमाया: आलिम की तरफ़ एक बार नज़र मेरे नज़दीक एक बरस रोज़े रखने और एक बरस रात को नवाफ़िल पढ़ने से बेहतर है।
एक और जगह आप ﷺ ने फ़रमाया: क्या मैं तुम्हें सब से ज़ियादा बुलन्द मर्तबे वाले जन्नती न बताऊं ? सहाबा रदिअल्लाहो अन्हु ने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह बताइये, तो आप ने फ़रमाया कि वोह मेरी उम्मत के उलमा है।
मुन्दरिजए बाला अहादीस से साबित हुवा कि इबादत से इल्म अफ्ज़ल है लेकिन इल्म के साथ साथ इबादत भी ज़रूरी है बग़ैर इबादत इल्म का कोई फाइदा नहीं क्यूंकि इल्म दरख़्त की मानिन्द है और इबादत फल की तरह और दरख़्त की क़द्र फल से होती है, अगर्चे दरख़्त अस्ल है, लिहाजा बन्दे के लिये इल्म व इबादत दोनों का होना ज़रूरी है।
इल्म इबादत की बुन्याद
इसी लिये हज़रते हसन बसरी ने फ़रमाया : “इल्म को इस तरह हासिल करो कि इबादत को नुक्सान न दे और इबादत इस तरह करो कि इल्म को नुक्सान न हो।” और येह बड़ी पुख़्ता बात है कि इल्म व इबादत दोनों ज़रूरी हैं मगर पहले इल्म हासिल करना ज़रूरी है क्यूंकि इल्म इबादत की बुन्याद और इस का रहनुमा है इसी लिये नबिय्ये करीम ने फरमाया :
“इल्म अमल की बुन्याद है और अमल इस के ताबेअ है”।(अत्तरगिब व तरहीब)
इल्म सीखना, इबादत से बेहतर है :
हज़रते हुज़ैफा बिन यमान रदीअल्लाहु अन्हु बयान करते हैं कि रसूले खुदा सललल्लाहो अलैहे व सल्लम ने फरमाया “इल्म की फज़ीलत, इबादत की फज़ीलत से बेहतर है“ (यानी पहले इल्म फिर अमल) (बज़्ज़ाज़)
इल्म वाले ही अल्लाह से डरते है
अल्लाह फ़रमाता है : (तर्जमा) अल्लाह से वही डरते हैं जो इल्म वाले हैं।(कंज़ुल ईमान, सूरह फ़ातिर, आयत न 28)
अल्लाह से डरने वाले यानी इल्म वाले ही शैतान से बचते हैः
अल्लाह फ़रमाता है : (तर्जमा) बेशक वो जो डर वाले हैं जब उन्हें किसी शैतानी ख़याल (वसवसों) की ठेस लगती है होशियार हो जाते हैं उसी वक़्त उनकी आँखें खुल जाती हैं। । (कंज़ुल ईमान, सूरह आराफ़, आयत न 201)
अल्लाह डरने वालों (इल्म वालों) के साथ है
अल्लाह फ़रमाता है : (तर्जमा) : बेशक अल्लाह उनके साथ है जो डरते हैं और जो नेकियां करते हैं। (कंज़ुल ईमान, सूरह – नहल, आयत न. 128)
सिर्फ इल्म वाले ज़िंदा है
इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह फ़रमाते है तमाम इंसान मुर्दा हैं ज़िंदा वो हैं जो इल्म वाले हैं,
तमाम इल्म वाले सोये हुए हैं बेदार वो हैं जो अमल वाले हैं, तमाम अमल वाले घाटे में हैं फायदे में वो हैं जो इख्लास वाले हैं, तमाम इख्लास वाले खतरे में हैं कामयाब वो हैं जो तकब्बुर से पाक हैं।