सदक़ा की फज़ीलत
सदक़ा की फज़ीलत
बहारे शरीअत हिस्सा 5 में है “अल्लाह तआ़ला की राह में माल खर्च करना निहायत अच्छा काम है। माल से तुम अगर अल्लाह को राज़ी न कर सके तो वो माल तुम्हारे क्या काम का है और अपने काम का वही है जो खा लिया, पहन लिया और आखि़रत के लिए अल्लाह के राह में ख़र्च किया न कि वह जो जमा किया । (बहारे शरीअ़त, हिस्सा 5)”
ज़न्नती ज़ेवर बाब 5 में है ” ज़कात व उश्र व सदक़ए फित्र येह तीनों तो वाजिब हैं जो इन तीनों को न अदा करेगा सख़्त गुनहगार होगा। इन तीनों के इलावा नफ्ली सद़का देने और ख़ुदा की राह में खै़रात करने का भी बहुत बड़ा सवाब है और दुनिया व आख़िरत में इस के बड़े बड़े फ़वाइद व मनाफ़ेअ हैं।”
हदीस न.1 :- सही मुस्लिम शरीफ में अबू हुरैरा रदीअल्लाहु त’आला अन्हु से मरवी हुज़ूरे अक़दस ﷺ फ़रमाते हैं बन्दा कहता है मेरा माल है, मेरा माल है और उसे तो उसके माल से तीन ही क़िस्म का फ़ायदा है जो खाकर फ़ना कर दिया या पहन कर पुराना कर दिया या अदा करके आख़िरत के लिए जमा किया और उसके सिवा जाने वाला है कि औरों के लिए छोड़ जाएगा।
हदीस न. 2 :– बुखारी व नसई इब्ने मसऊद रदीअल्लाहु त’आला अन्हु से रावी हुज़ूर ﷺ फ़रमाते हैं तुम में कौन है कि उसे अपने वारिस का माल अपने माल से ज़्यादा महबूब है। सहाबा ने अर्ज़ की या रसूलल्लाह! हम में कोई ऐसा नहीं जिसे अपना माल ज़्यादा महबूब न हो। फ़रमाया अपना माल तो वह है जो आगे रवाना कर चुका और जो पीछे छोड़ गया वह वारिस का माल है।
हदीस न. 3 : इमाम बुखा़री अबू हुरैरा रदीअल्लाहु त’आला अन्हु से रावी रसूलुल्लाह ﷺ फ़रमाते हैं अगर मेरे पास उहुद (अरब के एक पहाड़ का नाम) बराबर सोना हो तो मुझे यही पसन्द आता है कि तीन रातें न गुज़रने पाएं और उसमें का मेरे पास कुछ रह जाये हाँ अगर मुझ पर दैन (क़र्ज़) हो तो उसके लिए कुछ रख लूँगा।
हदीस न. 4,5 :– सही मुस्लिम में उन्हीं से मरवी हुज़ूरे अक़दस ﷺ ने फ़रमाया कोई दिन ऐसा नहीं कि सुबह होती है मगर दो फ़िरिश्ते नाज़िल होते हैं और उनमें एक कहता है ऐ अल्लाह! ख़र्च करने वाले को बदला दे और दूसरा कहता है ऐ अल्लाह ! रोकने वाले के माल को तल्फ़ (बरबाद) कर और इसी के मिस्ल इमाम अहमद व इब्ने हब्बान व हाकिम ने अबू दरदा रदीकल्लाहु त’आला अन्हु से रिवायत की।
हदीस न.6 :– सहीहैन में है कि हुज़ूरे अक़दस ﷺ ने असमा रदीअल्लाहु त’आला अन्हा से फ़रमाया ख़र्च कर और शुमार न कर कि अल्लाह त’आला शुमार करके देगा और बन्द न कर कि अल्लाह त’आला भी तुझ पर बन्द कर देगा कुछ दे जो तुझे इस्तिताअत हो।
हदीस न.7 :- नीज़ सहीहैने में अबू हुरैरा रदीअल्लाहु त’आला अन्हु से मरवी रसूलुल्लाह ﷺ फ़रमाते हैं कि अल्लाह त’आला ने फ़रमाया ऐ इब्ने आदम ! ख़र्च कर मैं तुझ पर ख़र्च करूँगा।
हदीस न.8 :– सही मुस्लिम व सुनने तिरमिज़ी में अबू उमामा रदीअल्लाहु त’आला अन्हु से मरवी रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया ऐ इन्ने आदम! बचे हुए का ख़र्च करना तेरे लिए बेहतर है और उसका रोकना तेरे लिए बुरा है और बक़द्रे ज़रूरत रोकने पर मलामत (बुराई) नहीं और उनसे शुरू कर जो तेरी परवरिश में हैं।
हदीस न.9- सहीहैन में अबू हुरैरा रदीअल्लाहु त’आला अन्हु से मरवी हुज़ूरे अक़दस ﷺ ने फरमाया बखी़ल (कंजूस) और सद़का देने वाले की मिसाल उन दो शख्सों की है जो लोहे की ज़िरह पहने हुए हैं जिन के हाथ सीने और गले से जकड़े हुए हैं तो सद़का देने वाले ने जब सद़का दिया वह ज़िरह कुशादा हो गई (फैल गई) और बख़ील (कंजूस) जब सद़का देने का इरादा करता है हर कड़ी अपनी जगह को पकड़ लेती है वह कुशादा करना भी चाहता है तो कुशादा नहीं होती।
हदीस न.10ः- सही मुस्लिम में जाबिर रदीअल्लाहु त’आला अन्हु से मरवी रसूलुल्लाह ﷺ फरमाते हैं ज़ुल्म से बचो कि ज़ुल्म क़ियामत के दिन तारीकियाँ है और बुख़्ल (कंजूसी) से बचो कि बुख़्ल ने अगलों को हलाक किया। इसी बुख़्ल ने उन्हें खून बहाने और हराम को हलाल करने पर आमादा किया।
हदीस न.11 :– नीज़ उसी में अबू हुरैरा रदीअल्लाहु त’आला अन्हु से मरवी एक शख़्स ने अर्ज़ की या रसूलल्लाह किस सदक़े का ज़्यादा अज्र है ? फ़रमाया उसका कि सेहत की हालत में हो और लालच हो मुहताजी का डर हो और तवंगरी (मालदारी) की आरज़ू यह नहीं कि छोड़े रहे और जब जान गले को आ जाये तो कहे इतना फुलाँ को और इतना फुलाँ को देना और यह तो फुलों का हो चुका है यअनी वारिस को।
हदीस न.12ः- सहीहैन में अबूज़र रदीअल्लाहु त’आला अन्हु से मरवी कहते हैं मैं हुज़ूर ﷺ की खिदमत में हाज़िर हुआ और हुज़ूर काबए मुअज़्ज़मा के साए में तशरीफ़ फ़रमा थे मुझे देख कर फ़रमाया क़सम है रब्बे कअबा की वोह टोटे (घाटे) में है। मैंने अर्ज़ की मेरे बाप माँ हुज़ूर पर क़ुरर्बान वोह कौन लोग हैं। फ़रमाया ज़्यादा माल वाले मगर जो इस तरह और इस तरह और इस तरह करे आगे पीछे दाहिने बायें यअनी हर मौक़े पर ख़र्च करे और ऐसे लोग बहुत कम हैं।
हदीस न.13 :- सुनने तिरमिज़ी में अबू हुरैरा रदीअल्लाहु त’आला अन्हु से मरवी कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया सख़ी क़रीब है अल्लाह से, क़रीब है जन्नत से, क़रीब है आदमियों से, दूर है जहन्नम से, और बख़ील दूर है अल्लाह से, दूर है जन्नत से, दूर है आदमियों से क़रीब है जहन्नम से, और जाहिल सख़ी अल्लाह के नज़्दीक ज़्यादा प्यारा है बख़ील आबिद से।
हदीस न.14 :- सुनने अबू दाऊद में अबू सईद रदीअल्लाहु त’आला अन्हु से मरवी कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया आदमी का अपनी ज़िन्दगी (यअनी सेहत) में एक दिरहम सद़का करना मरते वक्त के सौ दिरहम सद़का करने से ज़्यादा बेहतर है।
हदीस न.15 :– इमाम अहमद व नसई व दारमी व तिर्मिज़ी अबू दरदा रदीअल्लाहु त’आला अन्हु से रावी रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया जो शख़्स मरते वक़्त सद़का देता है या आज़ाद करता है उसकी मिसाल उस शख़्स की है कि जब आसूदा हो लिया तो हदया करता है। (मसलन किसी के पास पाँच रोटी थीं और उससे किसी ने सद़का माँगा उसने न दी अगर दो दे देता और तीन पर गुज़ारा करता तो बेहतर था लेकिन चार खाई और जब एक या कम जो पेट में जगह रहने से मजबूरन बची तो माँगने वाले को दे दी।)
हदीस न.16 :– सही मुस्लिम शरीफ़ में अबू हुरैरा रदीअल्लाहु त’आला अन्हु से मरवी कि रसूलुल्लाह ﷺ फ़रमाते हैं एक शख़्स जंगल में था उसने अन्न में एक आवाज़ सुनी कि फूलों के बाग़ को सैराब करो वह अब एक किनारे को हो गया और उसने पानी संगिस्तान (पथरीली ज़मीन) में गिराया और एक नाली ने वह सारा पानी ले लिया वह शख़्स पानी के पीछे हो लिया, एक शख़्स को देखा कि अपने बाग़ में खड़ा हुआ खुरपिया से पानी फेर रहा है। इसने कहा ऐ अल्लाह के बन्दे! तेरा क्या नाम है? उसने कहा फूलां नाम, वही नाम जो इसने अब्र में से सुना। उसने कहा ऐ अल्लाह के बन्दे। तू मेरा नाम क्यूँ पूछता है? इसने कहा मैंने उस अब्र में से जिस का यह पानी है एक आवाज़ सुनी कि वह तेरा नाम लेकर कहता है फूलों के बाग़ को सैराब कर तो तू क्या करता है (कि तेरा नाम ले लेकर पानी भेजा जाता है) जवाब दिया कि जो कुछ पैदा होता है उसमें से एक तिहाई ख़ैरात करता हूँ और एक तिहाई मैं और मेरे बाल-बच्चे खाते हैं और एक तिहाई बोने के लिये रखता हूँ।
हदीस न.17 :- सहीहैन में अबू हुरैरा रदीअल्लाहु त’आला अन्हु से मरवी रसूलुल्लाह ﷺ फ़रमाते हैं बनी इस्राईल में तीन शख़्स थे एक बर्स (सफेद दाग) वाला, दूसरा गंजा, तीसरा अंधा। अल्लाह त’आला ने उनका इम्तिहान लेना चाहा, उनके पास एक फ़रिश्ता भेजा। वह फ़रिश्ता बर्स वाले के पास आया। उससे पूछा तुझे क्या चीज़ ज़्यादा महबूब है। उसने कहा अच्छा रंग और अच्छा चमड़ा और यह बात जाती रहे जिससे लोग घिन करते हैं। फरिश्ते ने उस पर हाथ फेरा वह घिन की चीज़ जाती रही और अच्छा रंग और अच्छी ख़ाल उसे दी गई । फ़रिश्ते ने कहा तुझे कौन सा माल ज़्यादा महबूब है। उसने ऊँट कहा या गाय (रावी का शक है मगर बर्स वाले और गंजे में से एक ने ऊँट कहा दूसरे ने गाय) उसे दस महीने की हामिला ऊँटनी दी और कहा कि अल्लाह त’आला तेरे लिए इसमें बरकत दे फिर गंजे के पास आया। उसे कहा तुझे क्या शय ज़्यादा महबूब है। उसने कहा ख़ूबसूरत बाल और यह जाता रहे जिससे लोग मुझ से घिन करते हैं। फ़रिश्ते ने उस पर हाथ फेरा वह बात जाती रही और खूबसूरत बाल उसे दिये गये। उससे कहा तुझे कौन सा माल महबूब है। उसने गाय बताई। एक गाभन गाय उसे दी गई और कहा अल्लाह त’आला तेरे लिए इसमें बरकत दे फिर अन्धे के पास आया और कहा तुझे क्या चीज़ महबूब है। उसने कहा यह कि अल्लाह त’आला मेरी निगाह वापस कर दे कि मैं लोगों को देखूँ । फ़रिश्ते ने हाथ फेरा’ अल्लाह त’आला ने उसकी निगाह वापस कर दी। फ़रिश्ते ने पूछा तुझे कौन सा माल ज़्यादा पसन्द है। उसने कहा बकरी। उसे एक गाभन बकरी दी। अब ऊँटों से जंगल भर गया, दूसरे के लिए गाय से, तीसरे के लिए बकरियों से। फिर वही फ़रिश्ता बर्स वाले के पास उसकी सूरत और हैअत (बनावट) में होकर आया (यअनी बर्स वाला बनकर) और कहा मैं मिस्कीन मर्द हूँ मेरे सफ़र में वसाइल ख़त्म हो गए पहुँचने की सूरत मेरे लिए आज नज़र नहीं आती अल्लाह की मदद से फिर तेरी मदद से मैं उसके वास्ते से जिसने तुझे खूबसूरत रंग और अच्छा चमड़ा और माल दिया है एक ऊँट का सवाल करता हूँ। जिससे मैं सफ़र में मक़सद तक पहुँच जाऊँ, उसने जवाब दिया हुक़ूक़ बहुत है। फ़रिश्ते ने कहा गोया मैं तुझे पहचानता हूँ, क्या तू कोढ़ी न था कि लोग तुझसे घिन करते थे फ़क़ीर न था फिर अल्लाह ने तुझे माल दिया। उस ने कहा मैं तो इस माल का बाप-दादा से वारिस किया गया हूँ। फ़रिश्ते ने कहा अगर तू झूटा है तो अल्लाह त’आला तुझे वैसा ही कर दे जैसा तू था। फिर गन्जे के पास उसी की सूरत बन कर आया। उससे भी वही कहा। उसने भी वैसा ही जवाब दिया। फरिश्ते ने कहा अगर तू झूटा है तो अल्लाह त’आला तुझे वैसा ही कर दे जैसा तू था। फिर अन्धे के पास उसकी सूरत व हैयत बन कर आया और कहा मैं मिस्कीन शख़्स मुसाफ़िर हूँ मेरे सफ़र में वसाइल ख़त्म हो गये आज पहुँचने की सूरत नहीं मगर अल्लाह की मदद से फिर तेरी मदद से मैं उसके वसीले से जिसने तुझे निगाह दी एक बकरी का सवाल करता हूँ जिसकी वजह से मैं अपने सफ़र में मक़सद तक पहुँच जाऊँ। वह कहने लगा मैं अन्धा था अल्लाह त’आला ने मुझे आँखें दीं तू जो चाहे ले ले और जितना चाहे छोड़ दे ख़ुदा की क़सम अल्लाह के लिए तू जो कुछ लेगा मैं तुझ पर मशक्कत न डालूँगा। फ़रिश्ते ने कहा तू अपना माल अपने कब्ज़े में रख,बात यह है कि तुम तीनों शख़्सों का इम्तिहान था तेरे लिए अल्लाह की रज़ा है और उन दोनों पर नाराज़गी।
हदीस न.18ः इमाम अहमद व अबू दाऊद व तिरमिज़ी उम्मे बु ज़ैद रदीअल्लाहु त’आला अन्हा से कहती है मैंने अर्ज़ की या रसूलल्लाह! मिस्कीन दरवाज़े पर खड़ा होता हैं और मुझे शर्म आती है कि घर में कुछ नहीं होता कि उसे दूँ। इरशाद फ़रमाया उसे कुछ दे दे अगरचे जला हुआ खुर।
हदीस न.19ः– बैहक़ी ने दलाइले नुबुव्वत में रिवायत की कि उम्मुल मोमिनीन उम्मे सलमा रदीअल्लाहु त’आला अन्हा की ख़िदमत में गोश्त का टुकड़ा हदया में आया। हुज़ूरे अकदस ﷺ को गोश्त पसन्द था उन्होंने ख़ादिमा से कहा इसे घर में रख दे शायद हुज़ूर तनावुल फरमाएं। उस ने ताक में रख दिया एक साइल आकर दरवाजे पर खड़ा हुआ और कहा सद़का करो अल्लाह त’आला तुम में बरकत देगा। लोगों ने कहा तुझमें बरकत दे (साइल को वापस करना होता तो यह लफ़्ज़ बोलते थे) साइल चला गया। हुज़ूर ﷺ तशरीफ़ लाए और फ़रमाया तुम्हारे यहाँ कुछ खाने की चीज़ है। उम्मुल मोमिनीन ने अर्ज़ की हाँ और ख़ादिमा से फ़रमाया जा वोह गोश्त ले आ। वोह गई तो ताक में पत्थर का एक टुकड़ा पाया। हुज़ूर ने इरशाद फरमाया चूँकि तुमने साइल को न दिया लिहाज़ा वोह गोश्त पत्थर हो गया।
हदीस न.20 :- बैहक़ी शोअबुल ईमान में अबू हुरैरा रदीअल्लाहु त’आला अन्हु से रावी कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया सख़ावत जन्नत में एक दरख़्त है जो सख़ी है उसने उसकी टहनी पकड़ली है वह टहनी उसको न छोड़ेगी जब तक जन्नत में दाख़िल न कर ले और बुख़्ल जहन्नम में एक दरख़्त है जो बख़ील है उसने उसकी टहनी पकड़ली है वह टहनी उसे जहन्नम में दाख़िल किए बखैर न छोड़ेगी।
हदीस न.21 :- रज़ीन ने हज़रते मौला अली रदीअल्लाहु त’आला अन्हु से रिवायत की कि हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया सद़का में जल्दी करो कि बला सदक़े को नहीं फलाँगती।
हदीस न.22 :- सहीहैन में अबू मूसा अशअरी रदीअल्लाहु त’आला अन्हु से मरवी रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया है हर मुसलमान पर सद़का है। लोगों ने अर्ज़ की अगर न पाये। फ़रमाया अपने हाथ से काम करे अपने को नफ़ा पहुँचाए और सद़का भी दे। फ़रमाया साहिबे हाजत परेशान (यानी जिस शख्स को कुछ ज़रूरत हो या परेशान हो) की मदद करे। अर्ज़ की अगर यह भी न करे। फरमाया नेकी का हुक्म करे। अर्ज़ की अगर यह भी न करे। फ़रमाया शर से बाज़ रहे कि यही उसके लिए सद़का है।
हदीस न.23 :- सहीहैन में अबू हुरैरा रदीअल्लाहु त’आला अन्हु से मरवी हुज़ूरे अकदस ﷺ फ़रमाते हैं दो शख़्सों में अदल (इन्साफ्) करना सद़का है, किसी को जानवर पर सवार होने में मदद देना या उसका असबाब उठा देना सद़का है और अच्छी बात सद़का है और जो क़दम नमाज़ की तरफ चलेगा सद़का है, रास्ते से अज़ीयत की चीज़ दूर करना सद़का है।
हदीस न.24ः- सही बुखा़री व मुस्लिम में अनस रदीअल्लाहु त’आला अन्हु से मरवी रसूलुल्लाह ﷺ फरमाते हैं जो मुसलमान पेड़ लगाए या खेत बोए उसमें से किसी आदमी या परिन्दे या चौपाए ने खाया वह सब उसके लिए सद़का है।
हदीस न. 25, 26ः-सुनने तिर्मिज़ी में अबू जर रदीअल्लाहु त’आला अन्हु से मरवी कि हुज़ूर ﷺ फ़रमाते हैं अपने भाई के सामने मुस्कुराना भी सद़का है, नेक बात का हुक्म करना सद़का है, बुरी बात से मना करना सद़का है,राह भूले हुए को राह बताना सद़का है, कमज़ोर निगाह वाले की मदद करना सद़का है। रास्ते से पत्थर काँटा, हड्डी दूर करना सद़का है। अपने डोल में से अपने भाई के डोल में पानी डाल देना सद़का है। इसी के मिस्ल इमाम अहमद व तिर्मिज़ी ने जाबिर रदीअल्लाहु त’आला अन्हु से रिवायत की।
हदीस न.27 :- सहीहैन में अबू हुरैरा रदीअल्लाहु त’आला अन्हु से मरवी हुज़ूरे अक़दस ﷺ फ़रमाते हैं एक दरख़्त की शाख़ बीच रास्ते पर थी एक शख़्स गया और कहा मैं इसको मुसलमानों के रास्ते से दूर कर दूँगा कि उनको ईज़ा (तकलीफ़) न दे वह जन्नत में दाख़िल कर दिया गया।
हदीस न.28 :- अबू दाऊद व तिरमिज़ी अबू सईद रदीअल्लाहु त’आला अन्हु से रावी कि रसूलुल्लाह ﷺ फ़रमाते हैं जो मुसलमान किसी मुसलमान नंगे को कपड़ा पहना दे अल्लाह त’आला उसे जन्नत के सब्ज़ कपड़े पहनाएगा और जो मुसलमान किसी भूखे मुसलमान को खाना खिलाएगा और जो मुसलमान किसी प्यासे मुसलमान को पानी पिलाए अल्लाह त’आला उसे रहीके मख़तूम (यअनी जन्नत की मोहरबन्द शराब) पिलायेगा।
हदीस न.29 : इमाम अहमद व तिर्मिज़ी इब्ने अब्बास रदीअल्लाहु त’आला अन्हुमा से रावी कि रसूलुल्लाह ﷺ फ़रमाते हैं जो मुसलमान किसी मुसलमान को कपड़ा पहना दे तो जब तक उसमें का उस शख़्स पर एक पैवन्द भी रहेगा यह अल्लाह त’आला की हिफाज़त में रहेगा।
हदीस न.30,31 :- तिरमिज़ी व इब्ने हब्बान अनस रदीअल्लाहु त’आला अन्हु से रावी कि रसूलुल्लाह ﷺ फ़रमाते हैं सद़का अल्लाह त’आला के ग़ज़ब को बुझाता है और बुरी मौत को दफा़ करता है। नीज़ इसी के मिस्ल अबू बक्र सिद्दीक़ व दीगर सहाबए किराम रदीअल्लाहु त’आला अन्हुम से मरवी।
हदीस न.32 :- तिर्मिज़ी ने उम्मुल मोमिनीन सिद्दीक़ा रदीअल्लाहु त’आला अन्हा से रिवायत की लोगों ने एक बकरी ज़बह की थी, हुज़ूर ﷺ ने इरशाद फ़रमाया उसमें से क्या बाकी रहा। अर्ज़ की सिवा शाने के कुछ बाकी नहीं। इरशाद फ़रमाया शाने के सिवा सब बाकी है। (मतलब यह है कि जो तुमने अपने खाने के लिए रोका वह तो दुनिया का है और यहीं ख़त्म हो जाएगा और जो तुमने सद़का कर दिया वह बाक़ी है यअनी आख़िरत के लिए उसका सवाब बाकी रहा)
हदीस न.33- अबू दाऊद व तिर्मिज़ी व नसई व इब्ने ख़ुजै़मा व इब्ने हब्बान अबू ज़र रदीअल्लाहु त’आला अन्हु से रावी कि हुज़ूरे अकदस ﷺ फरमाते हैं तीन शख़्सों को अल्लाह महबूब रखता है और तीन शख़्सों को मबग़ूज़ (दुश्मन)। जिनको अल्लाह महबूब रखता है उनमें एक यह है कि एक शख़्स किसी क़ौम के पास आया और उनसे अल्लाह के नाम पर सवाल किया, उस क़राबत के वास्ते से सवाल न किया जो साइल और क़ौम के दरमियान है। उन्होंने न दिया। उनमें से एक शख़्स चला गया और साइल को छुपा कर दिया कि उसको अल्लाह जानता है और वोह शख़्स जिसको दिया और किसी ने न जाना, और एक क़ौम रात भर चली यहाँ तक कि जब उन्हें नींद हर चीज़ से ज्यादा प्यारी हो गई सब ने सर रख दिये (यअनी सो गये) उनमें से एक खड़ा होकर दुआ करने लगा और अल्लाह की आयतें पढ़ने लगा और एक शख़्स लश्कर में था, दुश्मन से मुकाबला हुआ और इन को शिकस्त हुई। उस शख़्स ने अपना सीना आगे कर दिया यहाँ तक कि क़त्ल किया जाये या फतह हो और वह तीन जिन्हें अल्लाह नापसन्द फरमाता है एक बूढ़ा ज़िनाकार, दूसरा फक़ीर मुतकब्बिर (घमंडी) तीसरा मालदार ज़ालिम।
हदीस न.34 :– तिरमिज़ी ने अनस रदीअल्लाहु त’आला अन्हु से रिवायत की कि रसूलुल्लाह ﷺ फ़रमाते है जब अल्लाह ने ज़मीन पैदा फरमाई तो उसने हिलना शुरू किया तो पहाड़ पैदा फ़रमा कर उस पर नसब फ़रमा दिये, अब ज़मीन ठहर गई। फ़रिश्तों को पहाड़ की सख़्ती देखकर तअज्जुब हुआ। अर्ज़ की ऐ परवरदिगार तेरी मख़लूक़ में कोई ऐसी शय है कि वह पहाड़ से ज्यादा सख़्त है फ़रमाया हाँ लोहा। अर्ज़ की ऐ रब! लोहे से ज्यादा सख़्त कोई चीज़ है। फ़रमाया हाँ आग। अर्ज़ की आग भी ज़्यादा कोई सख़्त है फरमाया हाँ पानी। अर्ज़ की पानी से भी ज्यादा सख़्त कुछ है। फरमाया हाँ हवा । अर्ज़ की हवा से भी ज़्यादा सख्त कोई शय है। फ़रमाया इब्ने आदम कि दाहिने हाथ से सद़का करता है और उसे बायें से छुपाता है।
हदीस न.35ः- नसई ने अबू ज़र रदीअल्लाहु त’आला अन्हु से रिवायत की कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया जो मुसलमान अपने कुल माल से अल्लाह की राह में जोड़ा ख़र्च करे जन्नत के दरबान उसका इस्तिक़बाल करेंगे। हर एक उसे उसकी तरफ बुलाएगा जो उसके पास है। मैंने अर्ज़ की इसकी क्या सूरत है। फ़रमाया अगर ऊँट दे तो दो ऊँट और गाय दे तो दो गाय।
हदीस न.36 :- इमाम अहमद व तिरमिज़ी व इब्ने माजा मआज़ रदीअल्लाहु त’आला अन्हु से रावी रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया सद़का ख़ता को ऐसे दूर करता है जैसे पानी आग को बुझाता है।
हदीस न.37 :- इमाम अहमद बाज़ सहाबा रदीअल्लाहु त’आला अन्हुम से रिवायत करते हैं कि हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया कि मुसलमान का साथ कियामत के दिन उसका सद़का होगा।
हदीस न.38 :-सही बुख़ारी में अबू हुरैरा व हकीम इन्ने हिजाम रदीअल्लाहु त’आला अन्हु से मरवी रसूलुल्लाह ﷺ फ़रमाते हैं बेहतर सद़का वोह है कि पुश्ते ग़िना से हो यअनी उसके बाद मालदारी बाकी रहे और उनसे शुरू करो जो तुम्हारी इयाल में हैं यअनी पहले उन को दो फिर औरों को।
हदीस न.39 :- अबू मसऊद रदीअल्लाहु त’आला अन्हु से सहीहैन में मरवी कि हुज़ूर ﷺ ने फरमाया मुसलमान जो कुछ अपने अहल पर खर्च करता है अगर सवाब के लिए है तो यह भी सद़का है।
हदीस न.40 :- ज़ैनब ज़ौजा अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद रदीअल्लाहु त’आला अन्हुमा से सहीहैन में मरवी उन्होंने हुज़ूरे अक़दस ﷺ से दरयाफ़्त कराया शौहर और यतीम बच्चे जो परवरिश में हैं उनको सद़का देना काफ़ी हो सकता है। इरशाद फ़रमाया उनको देने में दूना अज्र है। एक अज्र ए क़राबत और एक अज्र ए सद़का। यानी क़रीब का होने की वजह से देने का सवाब और दूसरा सद़का का सवाब।
हदीस न.41 :– इमाम अहमद व तिरमिज़ी व नसई व इब्ने माजा व दारमी सुलैमान इब्ने आमिर रदीअल्लाहु त’आला अन्हु रावी कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया मिस्कीन को सद़का देना सिर्फ सद़का है और रिश्ते वाले को देना सद़का का भी है और सिलारहमी भी।
हदीस न.42 :– इमाम बुख़ारी व मुस्लिम उम्मुल मोमिनीन सिद्दीक़ा रदीअल्लाहु त’आला अन्हा से रावी रसूलुल्लाह ﷺ फ़रमाते हैं घर में जो खाने की चीज़ है अगर औरत उसमें से कुछ दे दे मगर ज़ाए करने के तौर पर न हो तो उसे देने का सवाब मिलेगा और शौहर को कमाने का सवाब मिलेगा और ख़ाज़िन (भण्डारी) को भी उतना ही सवाब मिलेगा। एक का अज्र दूसरे के अज्र को कम न करेगा यअनी उस सूरत में जहाँ ऐसी आदत जारी हों कि औरतें दिया करती हों और शौहर मना न करते हों और उसी हद तक जो आदत के मुवाफिक़ है मसलन रोटी दो रोटी जैसा हिन्दुस्तान में उमूमन रिवाज है और अगर शौहर ने मना कर दिया हो या वहाँ की ऐसी आदत न हो तो बगैर इजाज़त औरत को देना जाइज़ नहीं।
तिरमिज़ी में अबू उमामा रदीअल्लाहु त’आला अन्हु से मरवी कि हुज़ूर ने खुतबए हज्जतुलविदा (आख़िरी हज के खुतबा) में फ़रमाया औरत शौहर के घर से बग़ैर इजाज़त कुछ ख़र्च न करे। अर्ज़ की गई खाना भी नहीं फ़रमाया यह तो बहुत अच्छा माल है।
हदीस न.43 :- सहीहैन में अबू मूसा अशअरी रदीअल्लाहु त’आला अन्हु से मरवी हुज़ूरे अक़दस ﷺ ने फ़रमाया ख़ाज़िन मुसलमान अमानतदार कि जो उसे हुक्म किया गया पूरा-पूरा-उसको दे देता है वोह दो सद़का देने वालों में का एक है।
हदीस न.44 :- हाकिम और तबरानी औसत में अबू हुरैरा रदीअल्लाहु त’आला अन्हु से रावी कि
रसूलुल्लाह ﷺ फरमाते हैं कि एक लुकमा रोटी और एक मुट्ठी खुरमा (खजूर) और उसकी मिस्ल कोई और चीज़ जिससे मिस्कीन को नफा पहुँचे इनकी वजह से अल्लाह त’आला तीन शख़्सों को जन्नत में दाख़िल फरमाता है। एक साहिबे ख़ाना जिसने हुक्म दिया, दूसरी ज़ौजा कि उसे तैयार करती है, तीसरे ख़ादिम जो मिस्कीन को दे आता है फिर हुज़ूर ﷺ ने फरमाया हम्द है अल्लाह के लिए जिसने हमारे ख़ादिमों को भी न छोड़ा।
हदीस न.45 :- इब्ने माजा जाबिर इब्ने अब्दुल्लाह रदीअल्लाहु त’आला अन्हुमा से रावी कहते हैं कि हुज़ूर ﷺ ने ख़ुतबे में फ़रमाया ऐ लोगों! मरने से पहले अल्लाह की तरफ रुजू करो और मशगूली से पहले अअमाले सालेहा की तरफ सबक़त करो और पोशीदा व ऐलानिया सद़का देकर अपने और अपने रब के दरमियान के तअल्लुक़ात को मिलाओ तो तुम्हें रोज़ी दी जाएगी और तुम्हारी मदद की जाएगी।
हदीस न.46 :- सहीहैन में अदी इब्ने हातिम रदीअल्लाहु त’आला अन्हु से मरवी रसूलुल्लाह ﷺ फ़रमाते हैं हर शख्स से अल्लाह त’आला कलाम फ़रमाएगा उसके और अल्लाह त’आला के माबैन (बीच में) कोई तर्जमान न होगा। वह अपनी दाहिनी तरफ नज़र करेगा तो जो कुछ पहले कर चुका है दिखाई देगा फिर बाईं तरफ देखेगा तो वही देखेगा जो पहले कर चुका है फिर अपने सामने नज़र करेगा तो मुँह के सामने आग दिखाई देगी तो आग से बचो अगर्चे खुरमे का एक टुकड़ा देकर और इसी के मिस्ल अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद व सिद्दीक़े अकबर व उम्मुल मोमिनीन सिद्दीक़ा व अनस व अबू हुरैरा व अबू उमामा व नोमान इब्ने बशीर वग़ैरहुम सहाबए किराम रदीअल्लाहु त’आला अन्हुम से मरवी।
हदीस न.47 :- अबू य’अला जाबिर और तिर्मिज़ी मआज़ इब्ने जबल रदीअल्लाहु त’आला अन्हुमा से रावी कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआल अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया सद़का ख़ता को ऐसे बुझाता है जैसे पानी आग को।
हदीस न.48 :- इमाम अहमद व इब्ने ख़ुज़ैमा व इब्ने हब्बान व हाकिम उक़बा इब्ने आमिर रदीअल्लाहु त’आला अन्हु से रावी रसूलुल्लाह ﷺ फरमाते हैं हर शख़्स कियामत के दिन अपने सदके के साए में होगा। उस वक़्त तक कि लोगों के दरमियान फैसला हो जाये और तबरानी की रिवायत में येह भी है कि सद़का क़ब्र की हरारत (गर्मी) को दफ़ा करता है।
हदीस न.49 :- तबरानी व बैहक़ी हसन बसरी रदीअल्लाहु त’आला अन्हु से रावी कि रसूलुल्लाह ﷺ फ़रमाते हैं रब त’आला फ़रमाता है ऐ इब्ने आदम! अपने ख़ज़ाने में से मेरे पास कुछ जमा कर दें। न जलेगा, न डूबेगा, न चोरी जायेगा। तुझे मैं पूरा दूँगा, उस वक़्त कि तू उसका ज़्यादा मुहताज होगा।
हदीस न. 50, 51 :- इमाम अहमद व बज़्ज़ाज़ व तबरानी व इब्ने ख़ुज़ैमा व हाकिम व बैहक़ी बुरीदा रदीअल्लाहु त’आला अन्हु से और बैहक़ी अबू ज़र रदीअल्लाहु त’आला अन्हु से रावी कि आदमी जब कभी भी कुछ भी सद़का निकालता है तो सत्तर शैतान के जबड़े चीर कर निकलता है।
हदीस न. 52ः- तबरानी ने अम्र इब्ने औ़फ़ रदीअल्लाहु त’आला अन्हु से रिवायत की कि रसूलुल्लाह ﷺ फ़रमाते हैं कि मुसलमान का सद़का उम्र में ज़्यादती का सबब है और बुरी मौत को दफ़ा करता है और अल्लाह त’आला उसकी वजह से तकब्बुर व फ़ख़्र को दूर फ़रमा देता है।
हदीस न.53 :- तबरानी कबीर में राफेअ इब्ने खदीज रदीअल्लाहु त’आला अन्हु से रावी कि रसूलुल्लाह ﷺ फ़रमाते हैं कि सद़का बुराई के सत्तर दरवाज़ों को बन्द कर देता है।
हदीस न. 54 :- तिरमिज़ी व इब्ने ख़ूज़ैमा व इब्ने हब्बान व हाकिम हारिस अशअरी रदीअल्लाहु त’आला अन्हु से रावी रसूलुल्लाह ﷺ फरमाते हैं कि अल्लाह त’आला ने यहया इब्ने ज़करिया अलैहिमुस्स़लातु वस्सलाम को पाँच बातों की वह्यी भेजी कि खुद अमल करें और बनी इस्राईल को हुक्म फ़रमायें कि वोह उन पर अमल करें और उन में एक यह है कि उसने तुम्हें सदक़े का हुक्म फ़रमाया है और उसकी मिसाल ऐसी है जैसे किसी को दुश्मन ने क़ैद किया और उसका हाथ गर्दन से मिलाकर बाँध दिया और उसे मारने के लिए लाए, उस वक़्त थोड़ा-बहुत जो कुछ था सब को देकर अपनी जान बचाई।
हदीस न.55 :- इब्ने ख़ुज़ैमा व इब्ने हब्बान व हाकिम अबू हुरैरा रदीअल्लाहु त’आला अन्हु से रावी कि हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया जिसने हराम माल जमा किया फिर उसे सद़का किया तो उस में उसके लिए कुछ सवाब नहीं बल्कि गुनाह है।
हदीस न.56 :- अबू दाऊद इब्ने ख़ुज़ैमा व हाकिम उन्हीं से रावी अर्ज़ की या रसूलल्लाह! कौनसा सद़का अफज़ल है? फ़रमाया ग़रीब शख़्स को कोशिश करके सद़का देना।
हदीस न. 57ः-नसई व इब्ने ख़ुज़ैमा व इब्ने हब्बान उनहीं से रावी कि हुज़ूरे अकदस ﷺ ने फ़रमाया एक दिरहम लाख दिरहम से बढ़ गया। किसी ने अर्ज़ की यह क्यूँकर या रसूलल्लाह ! फ़रमाया एक शख़्स के पास ज़्यादा माल है उस ने उस में से लाख दिरहम लेकर सद़का किये और एक शख़्स के पास सिर्फ दो हैं उसने उनमें से एक को सद़का किया।