GKR Trust

{ }

GKR Trust

Iman Ki Alamat

ईमान की अलामत

ईमान क्या है?

हज़रत अबु उमामा रदीअल्लाहु से रिवायत है कि एक शख्स ने नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वस्सलम से पूछा ईमान क्या है? आप ने फ़रमाया तुम्हारे अच्छे अमल से ख़ुशी (सुकून) हासिल हो और बुरे अमल बुरे काम (गुनाह) से रंज (गम) हो तो तुम मोमिन हो अर्ज किया या रसूलल्लाह गुनाह क्या है फ़रमाया जो तुम्हारे दिल मे चुभे उसे छोड़ दो। (मुसनद अहमद)

अल्लाह से डरना ईमान है
अल्लाह का फ़रमान है : (तर्जमा) ऐ ईमान वालो, अल्लाह से डरो और छोड़ दो जो बाक़ी रह गया है सूद, अगर ईमान वाले हो (सूरह बकराह, आयत नं. 278)

शैतान से न डरो अल्लाह से डरो

अल्लाह का फ़रमान है : (तर्जमा) वह तो शैतान ही है कि अपने दोस्तों से धमकाता है तो उनसे न डरो और मुझसे डरो अगर ईमान रखते हो (सूरह इमरान, आयत नं. 175)

कुफ़्फार से न डरो अल्लाह से डरो

अल्लाह का फ़रमान है : (तर्जमा) क्या उनसे (काफ़िरों से) डरते हो, तो अल्लाह इसका ज़्यादा मुस्तहक़ है कि उससे डरो अगर ईमान रखते हो ।(सूरह तौबा, आयत नं. 13)

अल्लाह ही पर भरोसा करो अगर मोमिन हो
अल्लाह का फ़रमान है : (तर्जमा) अल्लाह ही पर भरोसा करो अगर ईमान रखते हो । (सूरह मायदा, आयत नं. 23)

हुक़्म मानों अगर ईमान रखते हो

अल्लाह फ़रमाता हैः अल्लाह व रसूल का हुक्म मानो अगर ईमान रखते हो। (सूरह अनफाल, आयत नं. 1)

अगर ईमान वालें हो तो
अल्लाह फ़रमाता है : (तर्जमा) ऐ ईमान वालो जिन्होंने तुम्हारे दीन को हंसी खेल बना लिया है वो जो तुमसे पहले किताब दिये गए (यानी यहूदी और ईसाई) और काफ़िर (हिन्दु व गै़र सुन्नी), उनमें किसी को अपना दोस्त न बनाओ और अल्लाह से डरते रहो अगर ईमान रखते हो।(सूरह मायदा, आयत नं. 57)

ईमान वाले काफ़िरो पर सख़्ति और जेहाद करेगें
कुरआन में है (तर्जमा) ऐ ईमान वालो तुम में जो कोई अपने दीन से फिरेगा तो अन्क़रीब अल्लाह ऐसे लोग लाएगा कि वो अल्लाह के प्यारे और अल्लाह उनका प्यारा, मुसलमानों पर नर्म और काफ़िरों पर सख़्त अल्लाह की राह में लड़ेंगे और किसी मलामत (गम) करने वाले की मलामत का अन्देशा न करेंगे यह अल्लाह का फ़ज़्ल है जिसे चाहे दे, और अल्लाह वुसअत वाला इल्म वाला है।(सूरह माइदा, आयत न. 54)

मोमिन को बेवकूफ ख्याल करना

हज़रते सय्यिदुना अबू हुरैरा रदीयल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि हुज़ूर नबिय्ये पाक ने इरशाद फ़रमाया : “मोमिन इतना नर्म तबीअत, नर्म ज़बान वाला होता है कि उस की नर्मी की वजह से लोग उसे अहमक़ (बेवकूफ) ख़याल करते हैं।” (शुअबुल ईमान)

मोमिन की मिसाल ऊंट की तरह है

हज़रते सय्यिदुना इरबाज़ बिन सारिया रदीयल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि हुज़ूर नबिय्ये करीम ने इरशाद फ़रमाया : “मोमिन नकील वाले ऊंट की तरह होता है कि अगर उसे बांध दिया जाए तो ठहर जाता है और अगर चलाया जाए तो चल पड़ता है और अगर किसी पथरीली जगह पर बिठाया जाए तो बैठ जाता है। (इब्ने माजाअ)

मोमिन की मिसाल खजूर के दरख़्त सी

हज़रते सय्यदुना अब्दुल्लाह बिन उमर रदीयल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि एक बार मुस्तफा ﷺ ने सहाबए किराम से इस्तिफ़्सार फ़रमाया कि “मुझे ऐसे दरख़्त के बारे में बताओ जो मोमिन मर्द के मुशाबेह होता है और उस के पत्ते नहीं गिरते वोह अपने रब के हुक्म से हर वक्त फल देता है।“ हज़रते सय्यदुना अब्दुल्लाह बिन उमर फ़रमाते हैं कि मेरे दिल में ख़याल आया कि हो न हो येह खजूर का दरख़्त है लेकिन मैं ने अमीरुल मोअमिनीन हज़रते सय्यिदुना अबू बक्र सिद्दीक़ और अमीरुल मोअमिनीन हज़रते सय्यिदुना उमर फारूक की मौजूदगी में बोलना मुनासिब ख्याल न किया। जब वोह दोनों भी न बोले तो हुज़ूर नबिय्ये पाक ने खुद ही इरशाद फ़रमाया कि “वोह खजूर का दरख्त है।“ (हुस्ने अख़लाक़, पेज 47 )

मोमिन सीधा- साधा होता है
हदीस – तिर्मिज़ी ने अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि मोमिन न तअन (भड़काव) करने वाला होता है, न लानत करने वाला, न फाहश (गंदी बातें करने वाला, बेहूदा बातें करने वाला, गालियाँ देने) वाला बकने वाला होता है। (बहारे शरीअत, हिस्सा 16, जबान की हिफाज़त,)

मोमिन खामोश और ग़मगिन होता है
हुज़ूर सरकारे दो आलम ﷺ ने फ़रमाया के मोमिन आरिफे इलाही (अल्लाह को पहचान लेने वाला) होता है और उसमें ये ख़ासियत होती है के ज़्यादातर ख़ामोश और ग़मगिनी की हालत (अल्लाह की याद, ख़ौफ़ और रज़ा) में रहता है और आम मुसलमान, कोशिश करने वाला और अन्दर से सूखा होता है।(असरारे हक़ीकी, ख़्वाजा ग़रीब नवाज)

मोमिन लानत करने वाला नहीं होता है
हदीस – तिर्मिज़ी ने इग्ने उमर रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से रिवायत की कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया मोमिन को ये न चाहिए कि लानत करने वाला हो। (बहारे शरीअत, हिस्सा 16, जबान की हिफाज़त,)

मोमिन महब्बत करने वाले होते है

हज़रते सय्यिदुना अनस रदीयल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि हुज़ूर नबिय्ये करीम, रऊफुर्रहीम ने इरशाद फ़रमाया : “मोमिन एक दूसरे के खैरख्वाह और आपस में मोहब्बत वाले होते हैं अगर्चे उन के शहर मुख्तलिफ़ हों और मुनाफिक़ एक दूसरे से धोका करने वाले होते हैं अगर्चे उन के शहर एक ही हों।’’ (हुस्ने अख़लाक़)

मोमिन झुटा नहीं होता 

हदीस :- इमाम अहमद व बयहकी ने अबू उमामा रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत की कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया मोमिन की तबा में तमाम खसलतें हो सकती है मगर ख़यानत और झूट यानी ये दोनों चीजें ईमान के खिलाफ है। मोमिन को इनसे दूर रहने की बहुत ज़्यादा ज़रूरत है।(बहारे शरीअत, हिस्सा 16, जबान की हिफाज़त,)

हदीस :- इमाम मालिक व बयहकी ने सफ़‌वान इब्ने सुलैम से रिवायत की कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से पूछा गया क्या मोमिन बुज़दिल होता है। फरमाया हाँ – फिर अर्ज की गयी क्या मोमिन बखील (कंजूस) होता है। फरमाया हाँ फिर कहा गया क्या मोमिन कज़्ज़ाब (झूटा) होता है फरमाया नहीं।(बहारे शरीअत, हिस्सा 16, जबान की हिफाज़त,)

झूट ईमान से मुखालिफ है।

हदीस :- इमाम अहमद ने हज़रते अबूबक्र रदियल्लाहु तआला अन्हु से. रिवायत की कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया झूट से बचो क्यूँकि झूट ईमान से मुखालिफ है।(बहारे शरीअत, हिस्सा 16, जबान की हिफाज़त,)

मजा़क में भी झूट न बोलो

हदीस :- इमाम अहमद ने अबू हुरैरा रदियल्लाहु त‘आला अन्हु से रिवायत की’ कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु त‘आला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया बन्दा पूरा मोमिन नहीं होता जब तक मज़ाक में भी झूट को न छोड़ दे और झगड़े करना न छोड़ दे अगरचे सच्चा हो। (बहारे शरीअत, हिस्सा 16, जबान की हिफाज़त,)

मोमिन की मिसाल दीवार की ईंट की तरह

हज़रते अबू मूसा अशअरी रदीयल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूले अकरम ﷺ ने इरशाद फ़रमाया : “एक मोमिन दूसरे मोमिन के लिये इमारत की तरह है। जिस का बाज़ हिस्सा बाज़ को मजबूती पहुंचाता है। (हुस्ने अख़लाक़, 45)

मोमिनीन की मिसाल एक जान की तरह है
हजरते सय्यिदुना नोमान बिन बशीर से रिवायत है कि हुज़ूर नबी ए रहमत, शफीए उम्मत ﷺ ने इरशाद फ़रमाया : “मोमिनीन की आपस में रहम, महब्बत और सिलए रेहमी करने की मिसाल एक जिस्म की सी है कि जब उस के किसी उज़्व (अंग) को तकलीफ़ पहुंचती है तो पूरा जिस्म बुखार और बे ख़्वाबी का शिकार हो जाता है। (हुस्ने अख़लाक़, 46)

ईमानी रिश्ता

तिर्मिज़ी व अबू दाऊद ने अबू हुरैरा रदीअल्लाहु त’आला अन्हु से रिवायत की कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया एक मोमिन दूसरे मोमिन का आइना है और मोमिन मोमिन का भाई है उसकी चीज़ों को हलाक होने से बचाये और गीबत में उसकी हिफाज़त करे।( इस्लामी अख़लाक़ व आदाब, पेज 194)

कामिल ईमान की अलामत

तर्जुमा :- हज़रते अनस रदीअल्लाहु त’आला अन्हु से रिवायत है कि हुज़ूर नबीए करीम ﷺ ने फरमाया कि तुम में से कोई मोमिन (कामिल) नहीं होगा। जब तक कि अपने भाई (मोमिन ) के लिए वही चीज़ न पसन्द करे जो अपनी ज़ात के लिए पसन्द करता है। (बुखारी जिल्द 1, सफा 6 किताबुल ईमान )
शरहे हदीस : यह हदीस दर हकीकत इस लिए पहले वाली – हदीस का ततिम्मा और तकमिल्म (पूरक) है और सिलसिला ए हुकूकुल इबाद की दूसरी कड़ी है। पहली कड़ी तो यह थी कि एक मुसलमान पर लाज़िम है कि वह अपनी ज़िन्दगी का वह दस्तूर बनाले कि मेरी ज़ात से किसी मुसलमान को किसी तरह कोई ईज़ा न पहुँचे और दूसरी कड़ी यह है कि मुसलमान इस जरी उसूल को अपना ज़ाब्तए हयात बनालें कि जो कुछ और जैसे सुलूक व मुआमलात को वह अपने लिए पसन्द करता है वही दूसरे मुसलमानों के लिए भी पसन्द करे।
मसलन हर शख़्स अपनी ज़ात के लिए यह पसन्द करता है कि कोई मुझ को नुकसान न पहुँचाए, कोई मेरी बे आबरुई न करे, कोई मेरे साथ बदसुलूकी न करे। कोई मुझे धोका और फ़रेब न दे। कोई मुझको और मेरे रिश्तादारों और मुहब्बत वालों को न सताए यूँ ही हर शख़्स अपने लिए यह पसन्द करता है कि मुझे इज़्ज़त आबरु माल व दौलत और तन्दरुस्ती व सलामती मिले मेरी हर चीज़ अच्छी हो मेरी जिन्दगी अच्छी गुजरे मुझे हर तरह का आराम व राहत मिले, वगैरह वगैरह । (मुन्तख़ब हदीस, पेज 61, अब्दुल मुस्तफ़ा आजमी)

ईमान की 3 अलामात

अताअ रज़ियल्लाहु अन्हु ने इब्ने अब्बास रदीअल्लाहु अन्हुमा से रिवायत की हैं कि हुज़ूर ﷺ जब अन्सार में तशरीफ लाये तो फ़रमाया क्या तुम मोमिन हो ? वह चुप रहे, हज़रते उमर रदीअल्लाहु अन्हु बोले, हां या रसूल ﷺल्लाह ! आपने फरमाया तुम्हारे ईमान की अलामत क्या है? उन्होंने अर्ज की, हम नेअमतों का शुक्र अदा करते हैं, मुसीबतों में सब्र करते हैं और तक़दीर पर राज़ी रहते हैं, आपने यह सुनकर फ़रमाया रब्बे कअबा की कसम तुम मोमिन हो। (मुकाशफतुल क़ुलूब, बाब 73)

ईमान की खास 4 अलामतें

हज़रत अनस बिन मालिक से रिवायत है कि हुज़ूर सरवरे आलम नूरे मुजस्सम ने फरमाया चार बातें ऐसी है जो मोमिन में पाई जाती है ।

1. खामोशी जो अव्वलैन इबादत है।

2. तवाज़ोअ करना (यानी ख़ुद को हक़ीर समझना) 

3. ज़िक्रे इलाही करना।

4. फ़साद बरपा न करना। (तंबीहुल गाफिलीन, जिल्द 1, पेज 283)

मोमिन होने की 6 निशानिया
हदीस : इमाम अहमद व बैहकी ने उबादा इन्ने सामित रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की कि नबीए करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया मेरे लिए छः चीज़ों के ज़ामिन हो जाओ मैं तुम्हारे लिए जन्नत का ज़िम्मेदार होता हूँ :-
1. जब बात करो सच बोलो।
2. जब वादा करो उसे पूरा करो।
3. जब तुम्हारे पास अमानत रखी जाये उसे अदा करो।
4. अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करो।
5. अपनी निगाहें नीची रखो।
6. अपने हाथों को रोको यानी हाथ से किसी को ईज़ा न पहुँचाओ। (बहारे शरीअत, हिस्सा 16, जबान की हिफाज़त,)

मुक़द्दस महफ़िल में ईमान की अलामत

एक मरतबा हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हज़रत अबू कर सिद्दीक रदीअल्लाहु अन्हु हज़रत उमर फारूक रदीअल्लाहु अन्हु और हज़रत उस्मान गनी रदीअल्लाहु अन्हु के साथ हज़रत अली मुर्तज़ा के मकान पर तशरीफ ले गये। हज़रत अली ने ख़ातिर तवाज़ो के लिए एक तश्त में शहद पेश किया। हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया तश्त ख़ूबसूरत है। शहद मीठा है। मगर उस में बाल है यह बाल- किस चीज़ की निशानदेही करता है, हज़रत अबू बकर सिद्दीक ने फरमाया मोमिन का दिल तश्त से ज़्यादा ख़ूबसूरत है ईमान शहद से ज़्यादा मीठा है लेकिन आख़री वक़्त तक ईमान को संभालना बाल से ज़्यादा बारीक है। हज़रत उमर फारूके आज़म रदीअल्लाहु अन्हु ने फरमाया बादशाहत तश्त से ज्यादा खूबसूरत है हुक्मरानी शहद से ज़्यादा मीठी है लेकिन उसमें अदल क़ाइम रखना बाल से ज़्यादा बारीक है।
हज़रत उस्मान ग़नी रदीअल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया इल्मे दीन तश्त से ज्यादा खूबसूरत है उसका सीखना शहद से ज़्यादा मीठा है लेकिन उस पर अमल करना बाल से ज़्यादा बारीक है।
हज़रते अली मुर्तज़ा ने फरमाया कि मेहमान तश्त से ज़्यादा ख़ूबसूरत है उसकी तवाज़ो शहद से ज़्यादा मीठी हैं लेकिन मेहमान की खुशी का ख़्याल रखना बाल से ज़्यादा बारीक है। हज़रत फातिमतुज्ज़हरा रदीअल्लाहु अन्हा ने फरमाया औरत का चेहरा तश्त से ज़्यादा ख़ूबसूरत है। हया शहद से ज़्यादा मीठी है मगर नामहरम की नज़र से बचना बाल से ज़्यादा बारीक है। हुज़ूरे अक्दस सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया अल्लाह का दीन इस तश्त से ख़ूबसूरत है उसकी मारिफ़त शहद से ज़्यादा मीठी है मगर उसको दिल में मख़फ़ी रखना बाल से ज़्यादा बारीक है। हज़रत जिब्रील ने फरमाया जन्नत तश्त से ज़्यादा ख़ूबसूरत है उसकी नेमतें शहद से ज़्यादा मीठी हैं मगर उसे हासिल करना बाल से ज्यादा बारीक़ है, सिराते मुस्तकीम पर चलना बाल से ज़्यादा बारीक है। (इस्लामी तारीखे आलम, पेज, 354)

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top