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Duniya Ki Mazammat (Side Effect)

तमाम गुनाहों की जड़़

हदीस : हुज़ूर ﷺ ने इरशाद फ़रमाया : दुनिया की महब्बत तमाम गुनाहों की जड़़ (असल) है।(मुकाशिफतुल क़ुलूब, बाब 31)
वाज़ेह हो जब इंसान आखि़रत की बजाए दुनिया की ज़िन्दगी को पसन्द करता है तो गुनाह को करने के लिए मजबूर और अल्लाह त‘आला से दूर हो जाता है।
अल्लाह फ़रमाता है (तर्जुमा) : क़ाफ़िर दुनिया की ज़िन्दगी पर इतरा गए और दुनिया की ज़िन्दगी आख़रित के मुक़ाबले नहीं मगर कुछ दिन बरत लेना (सूरह-रअद, आयत न. 26)
गुनाहों की तमाम अक़साम जैसे कुफ़्र व शिर्क व निफ़ाक़, सगीरा व कबीरा, फ़िस्क़ व फ़ुजूर, नाजाइज़ व हराम, ऐलानिया व ख़ूफ़िया में मुब्तला हो जाने की वजह यही दुनिया की महब्बत है यानी आख़रित को भूल कर दुनिया को तरजीह देना।

दुनिया की महब्बत सब से बड़ा गुनाह हैः-
अल्लाह त‘आला ने हज़रते मूसा अलैहिस्सलाम की तरफ वही की ऐ मूसा! दुनिया की महब्बत में मशगूल न होना, मेरी बारगाह में इस से बड़ा कोई गुनाह नहीं है। रिवायत है कि हज़रते मूसा अलैहिस्सलाम एक रोते हुए शख़्स के पास से गुजरे, जब आप वापस हुए तो वह शख़्स वैसे ही रो रहा था, मूसा अलैहिस्सलाम ने अल्लाह त‘आला से अर्ज़ किया या अल्लाह! तेरा बन्दा तेरे डर से रो रहा है, अल्लाह त‘आला ने कहा, ऐ मूसा! अगर आँसू के रास्ते उस का दिमाग़ बाहर निकल आए और उसके उठे हुए हाथ टूट जायें तब भी मैं उसे नहीं माफ करूँगा, क्योंकि यह दुनिया से मुहब्बत रखता है। (मुकाशफतुल क़ुलूब, बाब 31)

माल की मुहब्बत ही दुनियादारी है

हज़रते अताअ बिन जियाद कहते हैं मेरे सामने दुनिया तमाम जीनतों से सज कर आई तो मैं ने कहा मैं तेरी बुराई से अल्लाह की पनाह चाहता हूं। दुनिया ने कहा अगर तुम मेरे शर (ख़तरात) से बचना चाहते हो तो रुपये पैसे से दुश्मनी रखो क्यों कि दौलत और रुपये पैसे हासिल करना दुनिया को हासिल करना है जो उन से अलग थलग रहे वह दुनिया से बच जाता है। (मुकाशफतुल क़ुलूब, बाब 38, पेज 251)

दुनिया ईमान को बर्बाद कर देती है
हदीस क़ुदसे हैः तरजुमाः दुनिया ईमान को इस तरह से खा जाती है जिस तरह से आग सूखे लकड़ी को खा जाती है।

दुनिया की महब्बत का डर
फरमाने नबवी है कि जायदाद न बनाओ, तुम दुनिया से मुहब्बत करने लग जाओगे (यानी दुनियादार बन जाओगे)। (मुकाशफतुल क़ुलूब, बाब 38, पेज 250)

दुनियादारी का अंज़ाम
आज मुसलमानों को दीनदार बनकर अपना ईमान मजबूत करने की जरूरत है । ये बात समझ लेना चाहिए कि दुनियादारी के वजह से ईमान व अक़ीदे में कमजोरी और बिगाड़ पैदा हुआ और कमजोर ईमान के सबब ज़हालत व बदअमालियां और मुआशरे में तमाम खराबियां, बुराइयाँ और गुमराहियाँ पैदा हुई है नतीजतन अल्लाह का अजा़ब, दुश्मने इस्लाम (कुफ्फार) के हौसले बढ़े,नफ्स और शैतान गालिब हुए, ज़ालिम बादशाह मुसल्लत किये गए, भगवा लव ट्रेप, मोबलीचिंग और यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड जैसे मामले पैदा हुए, आपसी महब्बत खत्म हुई, बालितो से जिहाद व मुखालफल के बजाय इत्त्तेहाद और मुहब्बत की चाहत है । तमाम हालात का ईलाज यही है कि दुनियादारी को तर्क किया जाए और दीनदारी की चाहत दिल में पैदा करके ईमान, इल्म व अमल में दुरूस्तगी और मज़बूती लाए।

दिल का बिगड़ना दुनियादारी के वहज से 

हदीस  : हज़रते हसन रज़ियल्लाहु अन्हु से मरवी है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सहाबए किराम में तशरीफ़ लाये और फ़रमाया कौन है जो अल्लाह तआला से अंधेपन (जिहालत) का नहीं बल्कि बसारत (इल्मो हिदायत) का सवाल (मांग) करता है? होशियार हो जाओ, जो दुनिया की तरफ माइल हो गया और उस से बे-इन्तेहा उम्मीदें रखने लगा उसका दिल अंधा हो गया और जिसने दुनिया से अलाहिदगी करली और उस से कोई ख़ास उम्मीदें न रखीं, अल्लाह तआला उसे नूरे बसीरत अता फरमा दिया, वह तालीम के बगैर इल्म और तलाश के बग़ैर हिदायतयाब (हिदायत हासिल कर लिया) हो गया। (मुकाशफुतुल क़ुलूब, बाब न. 31, पेज 192)

दुनियादारी के वजह से कलमा रद्द
हदीस : हज़रत अनस बिन मलिक रदिअल्लाहु अन्हु से रिवायत है के रसूलल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने फरमायाः “ कलमा बंदों से खुदा के अजाब को रोकता है जब तक के बंदे दुनिया के मामले को दिन के मामले पर तरजीह न दे, लेकिन जब वो अपनी दुनिया के मामले को दिन के मामले पर तरजीह दे (यानी जब दीन से ज्यादा दुनिया को मान्यता दे ) और फिर कलमा पढ़े तो ये कलमा उन पर रद्द कर दिया जाता है और अल्लाह तआला फरमाता है के तुम झूठे हो। (इब्ने अबिददुनिया)

दुनियादारी के वजह से आमाल बेकार

अल्लाह फ़रमाता है : (तर्जुमा) क्या हम तुम्हें बतादें कि सब से बढ़कर नाक़िस (अधूरा) अमल किन के हैं, उनके जिनकी सारी कोशिश दुनिया की ज़िन्दगी में गुम गई और वो इस ख़याल में हैं कि अच्छा काम कर रहे हैं। (सुरह का’फ, आयत न. 103-104)

हजरते विश्र रहमतुल्लाह अलैह से कहा गया कि फला आदमी मर गया है. आपने फ़रमाया उस ने दुनिया को जमा किया और आखिरत को जाया कर दिया, लोगों ने कहा वह तो यह यह नेंकिया किया करता था। आप ने फरमाया जिस के दिल में दुनिया की मुहब्बत हो उसे नेकी नफा नहीं पहुंचाती।    (मुकाशफतुल क़ुलूब, बाब 31, पेज 206)

दुनियादार की इबादत मक़बूल नहीं
हदीस : हुज़ूर सरकारे दो आलम ﷺ ने फरमायाः क़ियामत के दिन कुछ लोग ऐसे आएंगे कि उन के (नेक) आमाल वादिये तिहामा के पहाड़ों की मानिन्द होंगे, उन के लिये हुक्म होगा कि “इन को जहन्नम में ले जाओ।“ सहाबा ने अर्ज की : या रसूलल्लाह ! क्या वोह लोग नमाज़ी होंगे ? फरमायाः हां! वोह लोग नमाजें भी पढ़ते होंगे और रोज़े भी रखते होंगे और रात का कुछ हिस्सा जाग कर अल्लाह की इबादत भी करते होंगे, लेकिन उन में (बुरी) बात येह होगी कि जब दुन्या की कोई चीज़ उन के सामने आती उस पर कूद पड़ते थे । (यानी दुनिया से मुहब्ब्त करते थे) (मुकाशफतुल क़ुलूब, बाब 31, पेज 206)

दुनियादारी के वजह से दुअ़ा रद्द

हिकायत : हज़रते मूसा अलैहिस्सलाम एक रोते हुए शख़्स के पास से गुजरे, जब आप वापस हुए तो वह शख़्स वैसे ही रो रहा था, मूसा अलैहिस्सलाम ने अल्लाह त‘आला से अर्ज़ किया या अल्लाह! तेरा बन्दा तेरे डर से रो रहा है, अल्लाह त‘आला ने कहा, ऐ मूसा! अगर आँसू के रास्ते उस का दिमाग़ बाहर निकल आए और उसके (दुआ के लिए) उठे हुए हाथ टूट जायें तब भी मैं उसे नहीं माफ करूँगा क्योंकि यह दुनिया से मुहब्बत रखता है।  (मुकाशफतुल क़ुलूब, बाब 31, पेज 196)

मोबलिचिंग दुनियादारी के वजह से

हदीस : ह़जरत सोबान रदिअल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूल ﷺ ने फरमाया अन करीब तमाम धर्म की कौमे तुम पर यूं टूट पड़ेगी जैसे खाने वाले खाने के बर्तन पर टूट पड़ते हैं सहाबा रदिअल्लाह अन्हु ने कहा क्या ऐसा मुसलमानों की आबादी की कमी के वजह से होगा आपने फरमाया मुसलमान उस जमाने में ज्यादा होंगे लेकिन सैलाब की झाग (कोई काम का नही) की तरह, दुश्मन के दिल से मुसलमानों का रोब व दबदबा निकल जाएगा  (यानी मुसलमानों से काफिर नहीं डरेंगे) तुम्हारे दिल में वहन डाल दी जाएगी सहाबा रदिअल्लाहु  अन्हुम ने पूछा कि वहन क्या चीज है आपने फरमाया दुनिया से मोहब्बत और मौत से नफरत (सुनन इब्ने दाउद, हदीस न. 2245)

मालो दौलत की लालच अल्लाह को भुलने का सबब

अल्लाह फ़रमाता हैः  तुम्हें ग़ाफ़िल रखा माल की ज़ियादा तलबी (लालच) ने , यहाँ तक कि तुमने क़ब्रों का मुंह देखा (यानी मर गया) हाँ हाँ जल्द जान जाओगे (आखि़रत में), फिर हाँ हाँ जल्द जान जाओगे, हाँ हाँ अगर यक़ीन का जानना चाहते तो  (अगर हक़ीक़त  जानने की कोशिश करते) तो माल की मोहब्बत न रखते  (सुरहः तकासुर, आयत न 1-5)

अल्लाह को भूलने वाले मुसलमान नुकसान में 

अल्लाह फ़रमाता हैः ऐ ईमान वालो, तुम्हारे माल न तुम्हारी औलाद कोई चीज़ तुम्हें, अल्लाह के याद से ग़ाफ़िल न करे और जो ऐसा करे तो वही लोग नुक़सान में हैं (सुरहः मुनाफिकीन, आयत न 9)

रुपया जमा करने वालो पर जा़लिम बादशाह का अजा़ब

हज़रते अली रदीयल्लाहु अन्हु से मरवी है हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया जब लोग फकीरों से दुश्मनी रखें, दुनियावी शौकत व हशमत का इजहार करें और रुपया जमा करने पर लालची हो जायें तो अल्लाह त‘आला उन पर चार मुसीबतें नाजिल फ़रमाता है,1 कहत साली (बेरोजगारी), 2 जालिम बादशाह (प्रधानमंत्रा) , 3 खाइन (खयानत दार) हाकिम और , दुश्मनों की हैबत (जैसे बजरंग दल, शिव सेना , आर एस एस)। (मुकाशफतुल कुलूब, बाब 34, पेज 229)

इस्लामी हुकू़मत का छिन‘ना 

रसूल  ﷺ ने फरमाया इस उम्मत को बशारत दे दो कि दीनदारी के वजह से ही उसको बुजुर्गी (मर्तबा) हासिल है और शहरों पर हुकूमत (कब्जा और गिरफ्त), जब तक वह दीन का काम दुनिया के हुसूल के लिए न करें यानी मुसलमानों को दुनिया में उस वक्त तक बुजुर्गी और दुनिया के शहरों पर उनकी हुकूमत रहेगी जब तक वह दीन का काम दुनिया हासिल करने के लिए नही करेंगे, उनके आमाल खालिस रहेंगे। (गुनियतुत्तालिबीन, बाब 17, पेज 505)

इल्में दुनिया की मजम्मत (Side Effect) : 

हदीस : हज़रत अबु हुरैरा रदीअल्लाहु अन्हु से मरवी है फ़रमाते है रसूले अक़रम ﷺ ने इरशाद फ़रमाया कि जिस ने वह इल्म हासिल किया जो सिर्फ अल्लाह त‘आला की रजा़ हासिल हो और अगर उसने इल्स इस लिए हासिल किया हो कि उस इल्म के जरिए दुनियावी माल इकट्ठा करे तो क़ियामत के दिन वह लोग ज़न्नत की खुशबू भी न सुंघ पाएंगे। (अत्तरगी़ब व तरहीब, जिल्द 1)

नसीहत : अगर आप दुनियादार है और दुनियावी माल हासिल करने के लिए स्कूल व कॉलेज में पढ़कर नौकरी तालाश कर रहे है तो फौरन नियत बदल ले और अल्लाह की रज़ा तलाश करने में लग जाए ताकि दुनियावी जिन्दगी और उखरवी ज़िदगी दोनों सवंर जाए सिर्फ दुनियावी जिन्दगी के लिए उखरवी जिन्दगी को खराब करना बेवकूफी, जिल्लत, मुसिबत, लानत और दोनो जहां में हलाक़त ही हलाकत है।

मुसलमानों पर कुफ़्फार का दबदब

हदीस : ह़जरत सोबान रदिअल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूल ﷺ ने फरमाया अन करीब तमाम धर्म की कौमे मुसलमानों पर यूं टूट पड़ेगी जैसे खाने वाले खाने के बर्तन पर टूट पड़ते हैं सहाबा रदिअल्लाह अन्हु ने कहा क्या ऐसा मुसलमानों की आबादी की कमी के वजह से होगा आपने फरमाया मुसलमान उस जमाने में ज्यादा होंगे लेकिन सैलाब की झाग (कोई काम का नही) की तरह, दुश्मन के दिल से मुसलमानों का रोब व दबदबा निकल जाएगा  (यानी मुसलमानों से काफिर नहीं डरेंगे) तुम्हारे दिल में वहन डाल दी जाएगी सहाबा रदिअल्लाहु  अन्हुम ने पूछा कि वहन क्या चीज है आपने फरमाया दुनिया से मोहब्बत और मौत से नफ़रत (सुनन इब्ने दाउद, हदीस न. 2245)

पिछली उम्मत की हलाकत की वजह दुनियादारी है
फ़रमाने नबवी है दुनिया सब्ज़ (खुश आइन्द) और मीठी है। अल्लाह तआला ने तुम्हें अपना ख़लीफा बना कर भेजा है और वह तुम्हारे आमाल से बा-ख़बर है। बनी इस्राईल पर जब दुनिया फ़राख़ कर दी गई तो उन्होंने अपनी सभी कोशिशें, जेवरात, कपड़ों, औरतों और इतरियात के लिए वक्फ कर दी थी। (और उनका अंजाम तुम ने देख लिया यानी वो हलाक हो गये) (मुकाशफतुल , बाब 31, पेज 188)
बनी इस्राईल दुनियादारी के वजह से मूर्ति पूजा की शुरुआत की
हजरते हसन रज़ियल्लाहु अन्हु का कौल है कि दुनिया की मुहब्बत में डूब कर बनीं इस्राईल (पिछली उम्मत) ने अल्लाह की इबादत को छोड़ कर मूर्ति की इबादत शुरू की थी। (मुकाशिफतुल क़ुलूब, बाब 31)

दुनियादार के लिए आखि़रत में हिस्सा नही
अल्लाह फरमाता है : जो आखि़रत की खेती ( नेयमत) चाहे हम उसके लिये उसकी खेती (नेयमत) बढ़ाएं और जो दुनिया की खेती चाहे हम उसे उसमें से कुछ देंगे और आख़रित में उसका कुछ हिस्सा नही ; सूरह – शूरा, आयत नं. 20
हदीस : रसूल ﷺुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि आखिरत की नियत पर (अमल करने वाले को) अल्लाह तआला दुनिया भी देता है लेकिन दुनिया की नियत पर अमल करने वाले को) आखिरत नहीं मिलेगी। (गुनियतुत्तालिबीन, बाब 17, पेज 505

मौत के वक़्त दुनिया क्या कहती है?
अल्लाह त‘आला दुनिया को बूढ़ी औरत के शक़्ल में मरने वालों के सामने पेश करता है और वो दुनिया उसे कहती है ऐ आसी तू शर्म नहीं करता था तू मेरी तलब में गुनाहों में मुबतला हो जाता था और गुनाहों से बाज़ नहीं रहता था तू ने मुझे तलब क्या मैं ने तुझे तलब नहीं किया यहां तक के तू हलाल ओ हराम में तमीज नहीं करता तेरा गुमान था के तो दुनिया से जुदा नहीं होगा पस अब मैं तुझ से और तेरे अमल से बेज़ार हूं । (कुर्रतुल अबसार, पेज 38)

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