महब्बत की हक़ीक़त
महब्बत दिली कैफ़ियत का नाम है। महब्बत नाम है दिलों के जुड़ाव का। महब्बत कहते हैं किसी ज़ात की ख़ूबियों की वजह से उसकी तरफ़ दिल के झुक जाने को। महब्बत करने वाला अपने महबूब (जिससे वोह मुहब्बत करता है) के दिली तौर पर क़रीब होता है और ज़ाहिरी तौर पर भी क़रीब रहना चाहता है, वहीं नफ़रत दूरी का सबब है। मुहिब महबूब को अपना दिल दे देता है नतीजतन उसके दिल पर महबूब का इख़्तियार होता है और वोह अपने महबूब के ताबे होकर उसके कहे पर अमल करता है। इंसान को जिस चीज़ से महब्बत हो जाए उसकी सारी तवज्जोह, तमाम कोशिशें और सारी मेहनत उस चीज़ को पाने के लिए होतीं हैं। अगर येह महब्बत दुनिया से हो जाये तो सारी कोशिशें दुनिया और दुनिया की फ़ानी चीज़ों को हासिल करने की तरफ़ होंगी और अगर यही महब्बत दीन से हो जाए तो उसकी सारी कोशिशें आख़िरत और उख़रवी ने’मतों को हासिल करने के लिए होंगी। अगर महबूब हक़ वाला (अम्बिया, औलिया, औलमा में से) है तो अपने चाहने वाले को अल्लाह की तरफ़ ले जाता है लेकिन अगर महबूब बातिल है तो अपने चाहने वाले को शैतान की तरफ़ ले जाता है। क़ुरआन-ओ-हदीस में जहां भी अल्लाह के लिए महब्बत करने का हुक्म है वहां सिर्फ़ हक़ वालों की तरफ़ इशारा है जैसे अम्बिया, औलिया, शोहदा, सालेहीन, मोमिनीन वग़ैरहुम और जहां अल्लाह के लिए नफ़रत करने (बुग्ज़ रखने) का हुक़्म हुआ वहां सिर्फ़ बातिल और बातिल वालों की तरफ़ इशारा है जैसे नफ़्स ओ शैतान, दुनिया, कुफ़्फ़ार, मुनाफ़िकीन, मुर्तद्दीन और तमाम बदमज़हब। वल्लाहु अ’अलम। (मुसन्निफ़)
अल्लाह के लिए नफ़रत व मुहब्बत ईमान है
हदीस :- ईमान की चीज़ों में सब में मज़बूत अल्लाह के बारे में मुवालात (महब्बत ) है और अल्लाह के लिए महब्बत करना और नफ़रत रखना । (बहारे शरीअत, हिस्सा 16)
हदीस :- रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया तुम्हें मालूम है अल्लाह के नज़दीक सबसे ज्यादा कौन सा अमल है किसी ने कहा नमाज़ रोज़ा ज़कात और किसी ने कहा जिहाद । हुज़ूर ने फरमाया सबसे ज़्यादा अल्लाह को प्यारा अल्लाह के लिए मुहब्बत (दोस्ती) और नफ़रत (बुग़ज़) रखना है। (बहारे शरीअत, हिस्सा 16)
अल्लाह के लिए मुहब्बत का मतलब
अल्लाह के लिए मुहब्बत का मतलब यह है कि अल्लाह की रज़ा के लिए तमाम हक़ वालों (उलमाए हक़ व हक़ अवमुन्नास) से मुहब्बत व दोस्ती रखना। उनसे मिलना जुलना, सलाम, कलाम, रिश्तेदारी, हाज़तरवाई, ख़िदमत, सख़ावत, ईसार का जज्बा वगैरह
अल्लाह के लिए नफ़रत का मतलब
इसी के बरअक्स अल्लाह के लिए नफ़रत का मतलब है कि अल्लह की रज़ा के लिए तमाम बतिलों जैसे कुफ़्फ़ार, मुनाफिक़ीन, बदअक़ीदों, मबमज़हबों, गुमराहों से नफ़रत, अदावत, दिली दुश्मनी, करना और उनकी मुसाबीहत न करना। उनसे मेल जोल से बचना , सलाम , कलाम, रिश्तेदारी, दोस्ती वग़ैरह से तर्क व परहेज़ करना।
महब्बत की अहमियत
अल्लाह के लिए महब्बत, ईमानी खसलत का नाम है। हुक़ूकुल इबाद (बंदों के हक़) की अदाएगी के लिए आपसी महब्बत का होना बहुत ही ज़रूरी है। इसके बग़ैर दूसरे मुसलमानों का हक़ अदा करने का जो हुक्म है उस पर अमल नामुमकिन है। जब कोई किसी से महब्बत करता है तो उसे उसके अंदर खूबियां नज़र आतीं हैं , उसकी ज़रूरत को अपनी ज़रूरत समझता है, उसके लिए रहम के जज़्बात रखता है, उसके लिए वही पसंद करता है जो अपने लिए पसंद करता है। येह तमाम खसलतें ईमानी खसलतें है। इस महब्बत के रहते एक मुसलमान के दिल में दुसरे मुसलमान के लिए हसद, कीना, नफ़रत जैसी बुरी खस्लतें जमा नहीं होंगी, उसकी ज़बान मुसलमान भाई की ग़ीबत, चुग़ली, उसे गाली देने और उसके खिलाफ़ झूठ से महफूज़ रहेगी और उसका हाथ क़त्लो गारत, ख़यानत, लड़ाई झगड़ा जैसे कामों से बचा रहेगा।
अल्लाह के लिए मोहब्बत
अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है कि जो लोग मेरी वजह से आपस में महब्बत रखते हैं और मेरी वजह से एक दूसरे के पास बैठते हैं और आपस में मिलते जुलते है और माल खर्च करते हैं उनसे मेरी महब्बत वाजिब हो गई। (बहारे शरीयत, हिस्सा 16, पेज 245 )
मुहब्बत करने का हुक़्म
हजरत अब्बास रदियाल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूले मकबूल ﷺ ने फरमाया: जो नेमतें अल्लाह त’आला तुम (उम्मती) को दे रहा है उनके बाइस उनसे महब्बत रखो और मुझसे खुदाए त’आला की महब्बत की वजह से महब्बत रखो और मेरी महब्बत की वजह से मेरे अहले बैत से महब्बत रखो। (तिर्मिजी शरीफ-जिल्द 2 सफा 768)
हक़ वालो से मुहब्बत रखो
अल्लाह और उस के रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की मोहब्बत के बाद अपने दूसरे मोमिन भाइयो से प्यार और मोहब्बत रखनी चाहिए और ऐसे लोगो से दोस्ती और मुहब्बत इख्तियार करना चाहिए जो मुत्तक़ी, नमाज़ी हो और ज़कात देने वाले हों और रुकूअ करने वाले हो उस से मालूम हुआ कि सिराते मुस्तकीम के मुसाफिर आपस में भाई भाई हैं और अहले ईमान का एक गिरोह है जो अल्लाह का गिरोह कहलाता है उस के मुकाबिले में शैतान का गिरोह है लिहाज़ा अल्लाह वालो के लिए ताकीद है कि वह ऐसे लोगो ही को दोस्त और साथी बनायें । जो अल्लाह के गिरोह को छोड़ कर गैरो से यानी शैतान वालो (कुफ़्फ़ार, मुनाफिक़ीन, बदअकीदा, बदमज़हबो) से तअल्लुक रखेगा तो अल्लाह उसका मददगार, नासिर और हामी न होगा। यानी ताईदे खुदावन्दी उस के शामिल हाल न होगी, लिहाजा हमें सबक मिला कि हम नमाज़ी ज़कात देने वाले मुत्तकी परहेज़गारो और अल्लाह वालों को दोस्त बनायें और दीनदार लोगो की सोहबत इख़्तियार करें।