इल्मे दीन की हक़ीक़त

इल्मे दीन क्या है
हज़रत इब्ने अब्बास से रीवायत है कि रसूले अकरम इरशाद फ़रमाया इल्म को लाजिम पकडो इस लिए कि इल्म मोमीन का गहरा दोस्त है।
मेरे प्यारे आक़ा के प्यारे दिवानो। आप ने देखा होगा कि मुसीबत के वक़्त अच्छे अच्छे दोस्त साथ छोड़ देते हैं यहां तक की जिस माल को हासिल करने में हम रात दिन एक कर देते हैं वो भी साथ छोड़ देता है। लेकिन मेरे आक़ा फ़रमाते हैं के इल्म मोमीन का गहरा दोस्त है ये कभी साथ नहीं छोड़ता, ज़मीन के ऊपर भी साथ देता है और क़ब्र में भी साथ देगा। लिहाजा आज़ ही से इल्म को दोस्त बनाओ ताके इसकी दोस्ती क़ब्र व हसर हर जगह हमे काम आए। अल्लाह हम सब को इल्म हासिल करने की तौफीक़ अता फरमाए। आमीन
इल्म की 3 अक़साम
इल्म की 3 अक़साम है जिसे सीखना हर आक़िल बालिग मुसलमान (मर्द औरत) पर फर्ज़ है?
पहला : अक़ाइद का इल्म
जैसे अल्लाह के ज़ात व सिफ़ात, नुबुव्वत व रिसालत, ईमान व कुफ्र, जन्नत व दोज़ख़, हश्र व नश्र, जिन व मलाइका (फरिश्ते) बातिलों का रद्द वगैरह (यानी क्या और कैसे माना जाए)
इस क़िस्म के बाद ही इल्मे फ़िक़्ह और इल्मे तसव्वुफ़ हासिल करना चाहिये। वरना दोनों इल्म और उस पर किया गया अमल रद्द और बर्बाद होगा। जैसा कि 72 फ़िरकों का हाल है और सुल्लाहकुल्लीओ का भी।
दूसरा : इल्में फ़िक़्ह,
जिस्मानी जाहिरी अमल जैसे नमाज़, (वुज़ू, गुस्ल, पाकी नपाकी) रोज़ा, हज, ज़कात, निकाह, तलाक़, तिजारत, हैज़, निफास, पर्दा, हुक़ूक़े वालिदैन व हुक़ूक़े शौहर बीवी, वगैरा और इन सबके सारे अहकाम (नेकी को कैसे किया जाए) लेकिन ईमान व अक़ाइद और बातीनीद इस्लाह इस इल्म से मुमकिन नही। सिर्फ इतना ही काफ़ी नहीं
तीसरा : इल्मेंं तसव्वुफ़
क़ल्बी बातिनी अमल जैसे तर्के दुनिया, ज़ोहद, तक़वा, खौफ़, अख़लास , सखावत, रहम, नरम दिली वग़ैरह बातीनी अमल करने का इल्म और
बुग्ज़, हसद, लालच, ग़फ़लत, जलन, बद गुमानी, बद शुगूनी, गिबत, चुगलखोरी, रियाकारी, सूद वगैरा बातीनी गुनाहों से बचने का इल्म (यानी बातीनी अमल क्या करे और क्या ना करे) इस किस्म के बग़ैर जाहिरी अमल ना मक़बूल होने का अंदेशा है।
इल्म की फ़ज़ीलत और ज़िहालत की मज़म्मत
इल्म की अहमियत (ला-इल्म से नुक़सान )

इल्म वाले ही अल्लाह से डरते है
अल्लाह फ़रमाता है : (तर्जमा) अल्लाह से वही डरते हैं जो इल्म वाले हैं। (कंज़ुल ईमान, सूरह फ़ातिर, आयत न 28)
इल्म की फ़ज़ीलत (इल्म से फ़ायदे)

हर मर्द व औरत पर इल्मे दीन सीखना फर्ज़ है
हुजूर नबीए करीम सल्लल्लाहो अलैहे व सल्लम का फ़रमाने आली शान है- “तलबुल इल्मी फरीदतुन अला कुल्ले मुस्लिमंव वा मुस्लेमह“ यानी हर मुसलमान मर्द व औरत को इल्मे दीन का हासिल करना फर्ज़ है। (इब्ने माजाअ)
इल्म I ईमान I अमल
इल्म और ईमान

इल्म ईमान नहीं
ये बात भी ज़ेहन नशीन करनी चाहिए के नबीए करीम ﷺ को सिर्फ सच्चा नबी जान लेने का नाम ही ईमान नहीं बल्कि दिल से उसकी तस्दीक़ करना भी ज़रूरी है क्योंकि इल्म (यानी जानना) और चीज़ है और तस्दीक़ (यानी मानना) और चीज़ है।
(तकमीले ईमान, पेज 113)
इल्म और अमल

इल्म सीखना, इबादत से बेहतर है :
हज़रते हुज़ैफा बिन यमान रदीअल्लाहु अन्हु बयान करते हैं कि रसूले खुदा सललल्लाहो अलैहे व सल्लम ने फरमाया “इल्म की फज़ीलत, इबादत की फज़ीलत से बेहतर है“ (यानी पहले इल्म फिर अमल)
(बज़्ज़ाज़)
इल्म के अकसाम
इल्मे मुकाशफ़ा व इल्मे मुआमला

1. इल्मे मुकाशफ़ा – इल्मे मुकाशफ़ा से मुराद वोह इल्म है जिससे सिर्फ मालूमात का पता चलता है और इब्रत हासिल की जाती है और दिल की कैफियत को बदला जाता है जैसे -वाक़ियात, हिकायात, मोजिज़ात, करामात वगैरह का इल्म।
2. इल्मे मुआमला – इल्मे मुआमला से मुराद वोह इल्म है जिस में मालूमात जानने के साथ साथ इन पर अमल भी किया जाता है। इससे ज़ाहिरी अरकान को सुधारा और संवारा जाता है जैसे नमाज़ का तरीका, वज़ू, ग़ुस्ल का तरीका वगैरह। (इहयाउल उलूम, जिल्द 1)
इल्मे ज़ाहिर व इल्मे बातिन

इल्मे दीन 2 तरह का है
इल्मे ज़ाहिरी और इल्मे बातिनी यानी इल्मे शरीअत और इल्मे तरीक़त। शरीअत का हुक़्म हमारे ज़ाहिर और तरीक़त का हमारे बातीन पर नाफ़िज़ होता है।
इल्म माल से बेहतर

इल्म माल से अफ्ज़ल (बेहतर) है
हुज़रते मौलाए काएनात अलिय्युल मुर्तजा फ़रमाते हैं कि इल्मे दीन माल पर सात वजह से अफ़ज़ल है : (1) इल्म पैगम्बरों की मीराष और माल फ़िरऔन, हामान, और नमरूद की (2) माल खर्च करने से घटता है मगर इल्म बढ़ता है (3) माल की इन्सान हिफाज़त करता है मगर इल्म इन्सान की हिफाज़त करता है (4) मरने के बाद माल तो दुन्या में रह जाता है और इल्म क़ब्र में साथ जाता है (5) माल मोमिन व काफ़िर सब को मिल जाता है मगर इल्मे दीन का नफ्अ ईमान दार ही को हासिल होता है (6) कोई भी आलिम से बे परवाह नहीं लेकिन बहुत से लोगों को मालदारों की ज़रूरत नहीं ( 7 ) इल्म से पुल सिरात पर गुज़रने की कुव्वत हासिल होगी और माल से कमज़ोरी ।(तफ़्सीरे कबीर)
Co-Education Najaij

Co-Education की खराबियां:
मुफ़्ती अहमद यार खान नईमी अपनी किताब “इस्लामी ज़िन्दगी“ में लिखते है अक़्ल के अन्धों ने लड़कियों और लड़कों की एक ही जगह तालीम शुरू करा दी और शारदा एक्ट जारी कराया जिसके माने यह थे कि अट्ठारह साल से पहले कोई निकाह न कर सके फिर लड़कियों और लड़कों को सिनेमा के इशकिया ड्रामे दिखाए। बेहूदा नाविलों की रोक थाम न की, जिसका मतलब साफ़ यह हुआ कि उनके जज्बात को भड़काया गया और निकाह रोक कर भड़के हुए जज़्बात को पूरा होने से रोक दिया गया जिसका मनशा सिर्फ यह है कि हराम कारी बढ़े। क्योंकि भड़की हुई शहवत जब हलाल रास्ता ना पाएगी तो हराम की तरफ़ खर्च होगी और ऐसा हो रहा है। अब इस वक्त यह हालत है कि जब स्कूलों और कॉलेजों की लड़कियां सुबह व शाम ज़र्क – बर्क लिबास में रास्तों से आपस में मज़ाक दिल-लगी करती हुई ज़ोर-ज़ोर से बातें करती हुई अतर लगाए, दोपट्टा सर से उतारते हुए निकलती हैं तो मालूम होता है कि शायद हिन्दुस्तान में पेरिस आ गया और दर्दमन्द दिल रखने वाले खून के आंसू रोते हैं।(इस्लामी ज़िन्दगी, पेज 89)