Duniya Ki Haqiqat
दुनिया की हक़ीक़त 1 (अल्लाह के नज़दीक)
अल्लाह फरमाता है: जान लो कि दुनिया की ज़िन्दगी तो (कुछ भी) नहीं मगर खेल कूद (मौज मस्ती, मनोरंजन) और आराइश और तुम्हारा आपस में बड़ाई मारना (यानी किसी भी मामले में तकब्बूर करना) और माल और औलाद में एक दूसरे पर ज़ियादती चाहना (कम्पटीशन करना) उस मेंह की तरह जिसका उगाया सब्ज़ा किसानों को भाया फिर सूखा कि तू उसे ज़र्द देखे फिर रौंदन हो गया (यानी फ़ानी दुनिया की मिसाल फसल की हरियाली खेती की तरह है जो किसानों के लिए खुश का सबब है लेकिन कुछ ही दिन के लिए) और आख़िरत में सख़्त अज़ाब है और अल्लाह की तरफ़ से बख़्शिश और उसकी रज़ा और दुनियावी ज़िन्दगी तो नहीं मगर धोखे का माल। (सूरह हदीद, आयत नो. 20)
खास तौर पर 5 चीज़ो का नाम दुनियादारी है
1. दौलत की लालच – ये तमाम गुनाहो की बुनियाद है। यानी दौलत के वजह से नफ्सानी और शैतानी खसलतों को अपनाया जाता है।
2.नफ़्सनी ख़्वाहिशात – इसके वजह से स्वार्थ, मनमर्जी, बेहयाई, रियाकारी तकब्बुर, खुद को बेहतर समझना, नामो नमूद जैसे ख़्याल दिल मे आते है।
3.शैतानी खसलतें- यानी हसद, कत्ल, जलन, झुट, धोखा, जु़ल्म, ख्यानत,
4. कुफ़्फ़ार के मुसाबिहत – यानी कुफ्फ़ार व मुर्शिकीन (जैसे ईसाई, यहूदी, हिन्दू वगैरह गैर का़ैम) के तौर तरीके को अपना कर शरीअत व सुन्नत को छोड़ना।
5. जिहालत – दीनी तालिम से दूर रहना, सुस्ती, मस्ती, खेल तमाशा, आराईस, हंसी – मज़ाक़, टाईम पास वगैरह इन पाँचों के वजह से इन्सान गुनाह में मुलविश रहता है।
दुनिया की हक़ीक़त 2 (अल्लाह के नज़दीक)
मरवी है कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का एक मुर्दा बकरी के पास से गुजर हुआ। आप ने फरमाया क्या यह बकरी अपने मालिक को पसन्द है? सहाबए किराम ने अर्ज की इस की बदबू ही की वजह से तो यहां फेक दिया गया है। आप ने फरमाया बख़ुदा दुनिया अल्लाह तआला के यहां इस मुर्दा बकरी से भी ज्यादा बे वकार है, अगर अल्लाह तआला के यहां दुनिया का मकाम मच्छर के पर के बराबर भी होता तो कोई काफिर इस दुनिया से एक घूंट भी पानी न पी सकता। (मुकाशफतुल क़ुलूब, बाब 31)
दुनिया की हक़ीक़त (रसूलअल्लाह के नज़दीक)
हजरते अबू हुरैरा रजियल्लाहु अन्हु से मरवी है, मुझ से हुजूरﷺ ने फरमाया तुझे दुनिया की हक़ीक़त दिखलाऊ? मैने अर्ज़ की हां या रसूलल्लाह! आप मेरा हाथ पकड़ कर मुझे मदीना की एक वादी में ले गये जहां कूड़ा पड़ा था और उस में गन्दगी, चीथड़े और इंसान के सर की बोसीदा हड्डियां (कंकाल) थी, आपने फरमाया ऐ अबू हुरैरा यह सर (कंकाल) भी तुम्हारे सरों की तरह लालची थे और इन में तुम्हारी तरह बहुत आरजुएं थी मगर आज यह खाली हड्डियां बन चुकी हैं जिन पर खाल भी नहीं रही और जल्द ही यह मिट्टी हो जायेंगे। यह गन्दगी उन के खानों के रंग है जिन्हें उन्होंने कमा-कमा कर खाया, आज लोग उन (कंकाल) से मुंह फेर कर गुज़रते हैं। यह पुराने चीथडे (कपड़े) जो कभी उन के पहनावे थे, आज हवा उन्हें उड़ाये फिरती है और यह उन की सवारियों की हड्डिया है जिन पर सवार होकर वह शहरों-शहरों घूमा करते थे, जो दुनिया के अंजाम पर रोना पसन्द करता हो उसे रोना चाहिए। हज़रते अबू हुरैरा फ़रमाते है फिर मैं और हुजू़र ﷺ बहुत रोए। (मुकाशफतुल क़ुलूब, बाब 31)
दुनिया की हक़ीक़त (ईसा अलैहिसालाम के नज़दीक)
हजरते ईसा अलैहिस्सलाम का फरमान है ऐ मेरे साथियो। मैंने दुनिया को औधे मुंह डाल दिया है तुम मेरे बाद कहीं उसे गले न लगा लेना। दुनिया की सब से बड़ी बुराई यह है कि उस में आदमी अल्लाह का नाफरमान बन जाता है और उसे छोड़े बगैर आखिरत की भलाई नामुमकिन है। दुनिया में दिलचस्पी न लो उसे इबरत की निगाह से देखो और बा-खबर रहो। दुनिया की मुहब्बत हर बुराई की असल है और एक लम्हा की ख्वाहिशे नफ़सानी अपने पीछे लम्बी शर्मिन्दगी छोड़ जाती है और फरमाया कि दुनिया तुम्हारे लिए सवारी बनाई गई और तुम उस की पीठ पर सवार हो गये तो अब बादशाह और औरतें तुम्हे उस से न उतार दे। रहा बादशाहों का मुआमला तो उन से दुनिया की वजह से मत झगड़ो वह तुम्हारी दुनिया और तुम्हारी छोड़ी हुई चीजों को तुम्हें वापस न देंगे। रही औरतें तो उनके नमाज रोज़े से होशियार रहो।
मज़ीद फरमाया दुनिया तालिब भी है और मतलूब भी है। जो खुशनूदीए खुदा का तालिब होता है दुनिया उसकी तालिब रहती है (यानी दुनिया अपनी तरफ खिंचती है) और उसे रिज़्क़ बहम पहुंचाती है और जो दुनिया का तालिब होता है उसे आखिरत तलब करती है और मौत उसे गुद्दी से पकड़ कर ले जाती है।
हज़रत फुजैल बिन अयाज़ नज़दीक दुनिया की हक़ीक़त
दुनिया एक पागलखाना है जिसके अंदर पागल (इंसान) जमा है और ये पागल बेड़ियो (दौलत) और हथकड़ियों (ख़्वाहिशात) में कैद है। (अक़वाले औलिया)
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