अल्लाह त’आला सिर्फ एक चीज का मुतालबा करता है
क़ुरआन में अल्लाह का फ़रमान है : (तर्जुमा) ऐ महबूब तुम फ़रमाओ मैं इस (नेअमतों व फ़ज़्ल) पर तुम से कुछ उजरत नहीं मांगता मगर क़राबत की महब्बत (का मुतालबा करता हूं), (सूरह शूरा , आयात 23)
अल्लाह वालों से महब्बत
रिवायत है कि अल्लाह त’आला ने मूसा अलैहिस्सलाम से फ़रमाया, तुम ने कभी मेरे लिए भी अमल किया है? मूसा अलैहिस्सलाम ने अर्ज किया! बारे इलाहा! मैं ने तेरे लिए नमाजें पढ़ीं, रोजे रखे, सदके दिए, तेरे आगे सज्दे किये, तेरी हम्द की, तेरी किताब को पढ़ा और तेरा जिक्र करता रहा। अल्लाह तआला ने फरमाया ऐ मूसा। नमाज़ तेरी दलील, रोजा तेरे लिए ढाल, सद्का तेरे लिए साया, तस्बीह तेरे लिए जन्नत में दरख्त, किताब की किराअत (पढ़ाई) तेरे लिए जन्नत में हूर व महल और मेरा जिक्र तेरा नूर है। (यानी ये तूने अपने लिए किया ) बता तूने मेरे लिए क्या अमल किया है? मूसा अलैहिस्सलाम ने अर्ज की ऐ रब्बे. जुलजलाल। मुझे बता। वह कौन सा अमल है जो मैं तेरे लिए करू? अल्लाह पाक ने फ़माया तू ने कभी मेरी वजह से किसी से मुहब्बत की? तू ने मेरी वजह से कभी किसी से दुश्मनी रखी? तब मूसा अलैहिस्सलाम समझ गये कि सब से अच्छा अमल अल्लाह – के लिए मुहब्बत और अल्लाह के लिए दुश्मनी रखना है। (मुकाशफतुल क़ुलूब, बाब 15, पेज न. 105)
पता चला कि तमाम आमाल इंसान अपने लिए करता है और सिर्फ एक अमल है जो अल्लाह के लिये है यानी अल्लाह के क़ुर्बा (क़रीब वालो, अहले बैत, परहेजगारो) से महब्बत और यही खास अमल अल्लाह को राज़ी करने का जरिया है।
जिसके दिल मे ये अमल यानी अल्लाह वालो से मुहब्बत न हो वो अपने बाकी आमाल के साथ जहन्नम में जायेगा उसका आमाल उसे जन्नत में दाख़िल नहीं कर सकता।
लेकिन महब्बत ज़न्नत में दाख़िल कर सकता है क्योंकि मुहब्बत ही ईमान है और ज़न्नत में सिर्फ ईमान वाले जाएंगे।
आमाल वाला तो इब्लीस भी है लेकिन वो अपने आमाल के साथ जहन्नम में जायेगा और ज़न्नत में इसलिए नही जाएगा क्योंकि उस ने अल्लाह वालो से मुहब्बत, ताज़ीम और अदब न किया ।
महब्बते अहले बैत का इन’आम
हिकायत : शैख ज़ैनुद्दीन अब्दुल रहमान खिलाल बगदादी फरमाते हैंः मुझे एक अमीर ने बताया कि जब मर्ज़े मौत (सुक्रात) में मुब्तिला हुआ तो एक दिन उस पर सख्त इज़्तिराब तारी हुआ, मुंह सियाह हो गया और रंग बदल गया, जब इफा़का हुआ तो लोगों से उसने सूरत बयान की, तो उसने कहाः मेरे पास अज़ाब के फरिश्ते आए इतने में रसूले अकरम तशरीफ लाए और फरमायाः “उसे छोड़ दो क्योंकि यह मेरी औलाद से महब्बत रखता था और उनकी खिदमत करता था।“ चुनान्चे वह (फरिश्ते ) चले गए। अगर आखि़रत को आराम दह बनाना है तो सादाते किराम से महब्बत रखें, उनकी इज़्ज़त एहतराम बजा लाऐं, एहतराम से इस तरह पेश आऐं जिस तरह सरदार से पेश आया जाता है। इर्द गिर्द माहोल का जाइज़ा लें, पड़ौस में एक नज़र डालें, सादाते किराम को ढूंढें और उनकी ज़रूरियात को पूरा करें और सरापा खादिम बन जाऐं यही तुम्हारी आखिरत के लिए बेहतर है। (ज़ैनुल बरकात)