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November 30, 2023

Iman Ki Hifazat

ईमान की हिफाज़त

क़ुरआन में है: (तर्जुमा) “तो क्या वह जिसका सीना अल्लाह ने इस्लाम के लिये खोल दिया तो वह अपने रब की तरफ़ से नूर पर है,“ (सूरह ज़ुमर, आयत न. 22)

शाने नुज़ूल: रसूले करीम ﷺ ने जब यह आयत तिलावत फ़रमाई तो सहाबा ने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह, सीने का ख़ुलना किस तरह होता है फ़रमाया कि जब नूर दिल में दाखि़ल होता है तो व खुलता है और उसमें फैलावा होता है. सहाबा ने अर्ज़ किया इसकी निशानी क्या है. फ़रमाया, ’इस फ़ानी दुनिया से कनाराकशी, आखि़रत की तरफ़ रुजू, मौत आने से पहले मौत की तैयारी“ (खजाइनुल ईरफ़ान)

ईमान पर खा़त्मा
अल्लाह त‘आला की नेयमतों में सब से बड़ी नेमत ईमान की दौलत है। इसकी हिफ़ाज़त हर मुसलमान को महबूब फ़र्ज़ होना चाहिए। बाज़ अकाबिर औलियाए कराम से मंकूल है के जो शख़्स मगरिब के बाद की दो सुन्नतों में से पहली रकअत में सूरह फातिहा के बाद सूरह फलक और दूसरी रक-अत में सूरह फातिहा के बाद सूरअ नास हमेशा पढा करे तो इस का ईमान भी महफ़ूज़ रहेगा और ख़तमा ईमान पर होगा।
हज़रत इमाम अबू हनीफ़ा रहमतुल्लाह अलैह ने फरमाया के जो शख़्स ईमान की दौलत मुयस्सर आने पर हमेशा ख़ुदाय-ए ताला का शुक्रिया अदा करता रहेगा, इस का ईमान भी महफ़ूज़ रहेगा और ख़ात्मा ईमान पर होगा। बल्कि खुदा-ए -त‘आला के वादा के मुताबिक के: (तर्जुमा) के अगर तुम हमारी नेमतों का शुक्र अदा करो तो हम उन नेमतों में इज़ाफ़ा कर देंगे।
ख़ुदाय-ए त‘आला के इस वादे के मुताबिक ईमान में क़ुव्वत और ईमानी कामों में बरकत होगी इंशा अल्लाह (गंजिनाए असरार, पेज न. 16)

Iman Ki Shakhain

ईमान की 60 या 70 से ज़्यादा शाखेंः
हज़रते अबू हुरैरह रदीअल्लाहु त’आला अन्हु नबी अलैहिस्सलाम से रिवायत करते हैं कि आप ﷺ इरशाद फरमाते हैं ईमान की साठ या 70 से ज़्यादा शाखें हैं और इनकी सबसे आ’ला जड़ और बुनियाद ला इलाहा इल्लल्लाह पर यकीन रखना है और सबसे अदना ईमान तकलीफ देह चीज़ का रास्ते से हटा देना और हया ईमान की एक शाख है। (शुअबुल ईमान जिल्द 1)

Iman Ki Quwwat

ईमान की ताकत सबसे बढ़ कर 

अल्लाह फ़रमाता है : न सुस्ती करो और न ग़म खाओ तुम्ही ग़ालिब आओगे अगर ईमान रखते हो (कन्जुल ईमान, सूरह इमरान, आयत न 139)

तख़्लीक़े ईमान व कुफ्र
हदीस : जब अल्लाह त’आला ने ईमान को पैदा फ़रमाया तो उसने अर्ज की ऐ अल्लाह! मुझे कुव्वत अता फ़रमा, तो अल्लाह त’आला ने उसे हुस्ने खुल्क और सखावत से तक़‌वियत बख़्शी और जब अल्लाह तआला ने कुफ्र को पैदा फ़रमाया तो उसने अर्ज़ की ऐ अल्लाह मुझे कुव्वत बख़्श तो उसने उसे बुख़्ल (कंजूसी) और बद-खुल्की से त‌वियत बख़्शी।(मुकाशफतुल क़ुलूब, बाब न. 85, पेज न. 481)

ईमान की अलामत
हज़रते अबू सईद से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ने फ़रमाया कि दो खस्लतें मोमिन में जम्अ नहीं होगी, बखीली और बद अख़्लाकी । (सुनन तिर्मिज़ी )

मतलब येह है कि जो मोमिन होगा अगर बखील होगा तो बद अख्लाक नहीं होगा और अगर बद अख़लाक़ होगा तो बखील नहीं होगा येह दोनों बुरी खस्लतें एक साथ मोमिन में नहीं पाई जाएंगी। (जहन्नम के ख़तरात, पेज 164)

बुख़्ल की हलाक़ते
हज़रते इब्ने अम्र से रिवायत है कि इस उम्मत इब्तिदाई दौर के लोग यकीन और ज़ोहद की वजह से नजात पा गए और आख़िरी दौर के लोग बखीली (कंजूसी) और हिर्स की वजह से हलाक़ होंगे। (कंजुल उम्माल, ज़िल्द 3, हदीस 141)

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