Ushra

उश्र का बयान

हज़रत अब्दुल मुस्तफ़ा की किताब “जन्नती ज़ेवर” बाब 4 इबादात से नकल की गई है।

ज़मीन से जो भी पैदावार हो गेहूं, जव, चना, बाजरा, धान वग़ैरा हर किस्म के अनाज, गन्ना, रूई हर किस्म की तरकारियां फूल फल मेवे सब में उश्र वाजिब है थोड़ी पैदा हो या ज़ियादा । (आलमगीरी, ज़िल्द 1, पेज 174)

मस्अला :- जो पैदावार बारिश या जमीन की नमी से पैदा हो उस में दसवां हिस्सा वाजिब होता है और जो पैदावार चरसे, डोल, पम्पिंग मशीन या ट्यूबवेल वगैरा के पानी से या खरीदे हुए पानी से पैदा हो उस में बीसवां हिस्सा वाजिब होता है। (आलमगीरी, ज़िल्द 1, पेज 174)

मसला :- खेती के अखराजात निकाल कर उश्र नहीं निकाला जाएगा बल्कि जो कुछ पैदावार हुई हो उन सब का उश्र या निस्फ़ उश्र देना वाजिब है गवर्नमेन्टको माल गुज़ारी दी जाती है वोह भी उश्र की रकम से मुजरा नहीं की जाएगी। पूरी पैदावार का उश्र या निस्फ़ उश्र खुदा की राह में निकालना पड़ेगा। (जन्नती जेवर, पेज 209)

मसला :- ज़मीन अगर बटाई पर दे कर
खेती कराई है तो ज़मीन वाले और खेती करने वाले दोनों को जितनी जितनी पैदावार मिली है दोनों को अपने अपने हिस्से की पैदावार का दसवां या बीसवां हिस्सा निकालना वाजिब है। (रद्दुलमुहतार, ज़िल्द 2, पेज 56)