Harut Maarut Ka Wakiya

नफ़्स ने 2 फ़रिस्तो से भी गुनाह कराया
तफ़सीरे अज़ीज़ी ने इब्ने जरीर और इब्ने अबी हातिम वगै़रा के हवाले से बयान किया है कि हज़रत इद्रीस अलैहिस्सलाम के ज़माने में इन्सान बहुत बदअमल हो गए। फरिश्तों ने अल्लाह त’आला की बारगाह में अर्ज किया कि मौला इन्सान बहुत बदकिरदार है।
(ख़्याल रहे कि हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की पैदाइश से पहले फरिश्तों ने ख़िलाफत के लिए अपना हक़ जताया था। अब उन का मक़सद यह इज़्हार करना था कि इन्सान खलीफ़ा के काबिल नहीं है, उसे मअजूल किया जाए या कम से कम यह खलीफा रहे और वज़ीर हम ताकि उसके बिगड़े हुए काम सम्भाल लिया करें।)
रब तआला ने फरमायाः उसे गुस्सा और शहवत दी गई है जिससे वह गुनाह करता है। अगर यह चीजें तुम्हें मिलें तो तुम भी गुनाह करने लगोगे। फरिश्ते बोलेः मौलाए करीम, हम तो गुनाह के पास भी न जाएंगे चाहे कितना ही गुस्सा और शहवत हो। अल्लाह त’आला का हुक्म हुआः अच्छा तुम अपनी जमाअत में से आला दर्जे के परहेज़गार फरिश्तों को छांट लो। हम उन्हें गुस्सा और शहवत दे देते हैं फिर इम्तिहान हो जाएगा। चुनान्चे हारूत और मारूत जो बड़े ही इबादत गुज़ार फरिश्ते थे, चुने गए। अल्लाह त’आला ने उन्हें गुस्सा और शहवत देकर बाबुल शहर में उतार दिया और फ़रमाया कि तुम काज़ी बनकर लोगों का फैसला किया करो और इस्मे आज़म के ज़रिये रोज़ाना शाम को आसमान पर आ जाया करो। यह दोनों एक माह तक ऐसे ही आते जाते रहे। इतने अर्से में उनके अदलो इन्साफ का चर्चा हो गया और बहुत मुकदमे उनके पास आने लगे ।
एक रोज एक बहुत खूबसूरत औरत आई जिसका नाम ज़ोहरा था। यह मुल्के फारस की रहने वाली थी। हज़रत अली रज़ियल्लाह अन्हु की रिवायत है कि उसका नाम बेदुख़्त था और ज़ोहरा लक़ब। इस औरत ने अपने शौहर के ख़िलाफ मुकदमा दायर किया। हारूत मारूत इसे देखते ही फरेफ़्ता हो गए और उससे बुरे काम (ज़िना) की ख़्वाहिश ज़ाहिर की।
उसने कहा कि मेरा दीन और है तुम्हारा और, यह इख़्तिलाफ हमारे मिलन में आड़ है। दूसरे मेरा शौहर बहुत गैरत वाला है, अगर उसे ख़बर हो गई तो मुझे कत्ल कर देगा। लिहाज़ा पहले तो तुम मेरे बुत को सज्दा करके मेरे दीन में आओ फिर मेरे शौहर को कत्ल करो फिर मैं तुम्हारी और तुम मेरे। इन्हों ने इन्कार किया। वह चली गई मगर इन के दिलों में इश्क की आग भड़क उठी थी। आख़िर उसे पैग़ाम भेजा कि हम तेरे घर आना चाहते हैं। वह बोलीः मेरे सर आँखों पर, यह दोनों उस के घर पहुंचे। उसने अपने आप को खूब सजाया सँवारा और उन से बोलीः आप मुझे इस्मे आज़म सिखा दें या बुतों को सज्दा करें या मेरे शौहर को कत्ल करें या शराब पी लें। उन्हों ने सोचा कि इस्मे आज़म अल्लाह तआला के राज़ों में से है उसको ज़ाहिर करना जुल्म है, बुत परस्ती करना शिर्क है और क़त्ल बन्दों के हक़ की ख़िलाफवर्जी। लाओ शराब पी लें। चुनान्चे उन्हों ने शराब पी ली। जब शराब पीकर मस्त हो गए तो उसने उन से बुतों को सज्दा भी करा लिया। उनके हाथों शौहर को कत्ल भी करा लिया और इस्मे आज़म भी सीख लिया। वह तो इस्मे आज़म पढ़ कर सूरत बदल कर आसमान पर पहुँच गई। हक तआला ने उसकी रूह को ज़ोहरा सितारे से जोड़ दिया और उसकी शक्ल ज़ोहरा सितारे की तरह हो गई। जब हारूत और मारूत का नशा उत्तरा तो यह इस्मे आज़म भूल चुके थे और अपने किये पर नादिम थे। हक़ तआला ने फरिश्तों से फ़रमाया कि इन्सान मेरी तजल्ली से दूर रहता है।
यह दोनों शाम को हाज़िरे बारगाह होते थे फिर भी शहवत से मग़लूब हो कर सब कुछ कर बैठे। अगर इन्सानों से गुनाह सरज़द हों तो क्या तअज्जुब है। तमाम फरिश्तों ने अपनी ख़ता का एतराफ किया और ज़मीन वालों पर लअन तअन करने की जगह उनके लिए मग़फिरत की दुआ करने लगे। फिर हारूत मारूत हज़रत इद्रीस अलैहिस्सलाम की बारगाह में हाज़िर होकर शफाअत के तालिब हुए। आप ने उनके हक़ में मग़फ़ित की हुआ की। बहुत रोज़ के बाद अल्लाह तआला का हुक़्म आया कि इन को इख़्तियार दीजिये कि यह या तो दुनियावी अज़ाब कुबूल करें या आख़िरत का। हज़रत इद्रीस अलैहिस्सलाम ने इन्हें अल्लाह का हुक्म पहुँचाया। उन्हों ने अर्ज कियाः ऐ अल्लाह के नबी दुनिया का अज़ाब फ़ानी है और आख़िरत का अज़ाब हमेशा के लिए है हमको दुनियावी अज़ाब मंजूर है। चुनान्चे अल्लाह त’आला ने फ़रिशतो को हुक़्म दिया कि इन दोनों को लोहे की ज़न्जीरों में जकड़ कर बाबुल के कुंवे में औंधा लटका दिया जाए। इस कुंवे में आग भड़क रही है और यह लटके हुए हैं और फरिश्ते बारी बरी कोड़े मारते हैं। सख़्त प्यास की बजह से उन की ज़बानें बाहर लटकी हुई हैं। (तफसीरे नईमी) (क्या आप जानते है , पेज 226)