Iman Ki Ahmiyat
ईमान की अहमियत

ईमान की अहमियत
आज मुसलमानों को दीनदार बनकर अपना ईमान मजबूत करने की जरूरत है । ये बात समझ लेना चाहिए कि दुनियादारी के वजह से ईमान व अक़ीदे में कमजोरी और बिगाड़ पैदा हुआ और कमजोर ईमान के सबब ज़हालत व बदअमालियां और मुआशरे में तमाम खराबियां, बुराइयाँ और गुमराहियाँ पैदा हुई है नतीजतन अल्लाह का अजा़ब, दुश्मने इस्लाम (कुफ्फार) के हौसले बढ़े,नफ्स और शैतान गालिब हुए, ज़ालिम बादशाह मुसल्लत किये गए, भगवा लव ट्रेप, मोबलीचिंग और यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड जैसे मामले पैदा हुए, आपसी महब्बत खत्म हुई, बालितो से जिहाद व मुखालफल के बजाय इत्त्तेहाद और मुहब्बत की चाहत है । तमाम हालात का ईलाज यही है कि दुनियादारी को तर्क किया जाए और दीनदारी की चाहत दिल में पैदा करके ईमान, इल्म व अमल में दुरूस्तगी और मज़बूती लाए।
कम ईमान की अहमियत
हज़रते इब्ने मस्ऊद से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ने फ़रमाया जिस के दिल में राई के दाने के बराबर भी ईमान होगा वोह जहन्नम में दाखिल नहीं होगा और जिस शख़्स के दिल में राई के दाने के बराबर तकब्बुर होगा वोह जन्नत में दाखिल नहीं होगा। (मुस्लिम शरीफ)
भलाई ईमान लाने में है
अल्लाह फ़रमाता है : (तर्जमा कंज़ुल ईमान) : ऐ लोगो तुम्हारे पास ये रसूल हक़ के साथ तुम्हारे रब की तरफ़ से तशरीफ़ लाए तो ईमान लाओ अपने भले को । (सूरह निसा, आयत नं. 170)
निजात का ज़रिया ईमान है
हुज़ूर दाता गंज बख़्स हजवेरी की किताब, कशफुल महजूब जो तसव्वुफ़ की किताब है के तीसरा कश्फ मे अहले सुन्नत व जमात का अक़ीदे की मुताबिक लिखते है : “ अज़ाबे इलाही से महफूज़ रहने का ज़रिया ईमान है न कि अमल?अगरचे अमल भी मौजूद हो। जब तक ईमान व अक़ीदा न हो तो अमल फायदा नहीं पहुंचाता। लेकिन जब ईमान मौजूद हो अगरचे नेक अमल मौजूद न हो तो आखि़र में वह निजात पायेगा अगरचे यह बात मुसल्लम है कि निजात यानी बख्शिश अल्लाह के हुक़्म से ही होगी। अगर अल्लाह चाहे तो वह अपने फ़ज़्ल से दरगुज़र फ़रमाये या हुज़ूरे अकरम ﷺ की शफाअत से बख्श दे या चाहे तो उसके जुर्म के मुताबिक सज़ा दे और दोज़ख में भेज दे फिर सजा काटने के बाद बंदे को जन्नत में दाल दिया जाये। लिहाज़ा दुरुस्त ईमान व अक़ीदा वाला अगरचे अमली तौर से मुजरिम होतो हमेशा दोजख में न रहेगा और वोह अमल वाले जो वे बेईमान या बदअकीदा हैं जन्नत में नहीं जायेंगे। इससे मालूम हुआ कि अमल महफूज़ रहने का अस्ल ज़रिया नहीं है। हुजूर अकरम ﷺ का इरशाद है कि-
“तुम में से कोई भी अपने अमल की वजह से हरगिज़ निजात नहीं पायेगा । (काशफुल महज़ूब, पेज 387, हिन्दी)
असल ईमान सिर्फ तस्दीक़ का नाम है यानी जो कुछ अल्लाह जल्ला व आ’ला व रसूल ﷺ ने फ़रमाया उसको दिल से हक़ मानना जैसा कि क़ुरआन में अल्लाह फ़रमाता है : (तर्जमा) “ईमान वाले तो वही हैं जो अल्लाह और उसके रसूल पर यक़ीन लाए“ (कन्जुल ईमान, सूरह नूर, आयत न. 62)
ईमान का ताअल्लूक दिल से है
क़ुरआन में है (तर्जुमा) : जो ईमान लाकर अल्लाह का मुनकिर (न मानने वेला) हो सिवा उसके जो मजबूर किया जाए और उसका दिल ईमान पर जमा हुआ हो हाँ वो जो दिल खोलकर काफ़िर हो उनपर अल्लाह का ग़ज़ब है। (सूरह नहल, आयत न. 106)
ईमान के बदौलत ज़न्नत में दाख़ला
सय्यिदुना अबू हुरैरा रदीअल्लाहो त’आला अनहो फरमाते हैं, हम जंगे हुनैन में थे के सय्यदे आलम ने एक कलीमा गो (कलीमा पढ़ने वाला) शख्स के मुतल्लिक फ़रमाया के ये दोज़खी है और जब जंग शुरू हुई तो वो शख़्स काफ़िरों से ख़ूब लड़ा और ख़ूब जौहर दिखाये, ये मंज़र देख कर एक साहबी ने दरबारे रिसालत में हाज़िर हो कर अर्ज़ किया या रसूलल्लाह! जिस शख्स के मुतल्लिक (संबंधित) आपने फ़रमाया के ये दोजखी है वो तो इस्लाम की तरफ से काफिरों के साथ खूब लड़ रहा है हत्ता के वो जख्मो से चूर हो चूका है, ये सुन कर फ़रमाया: हां! खबरदार! बेशक वो दोज़खी है रसूलुल्लाह का ये इरशाद सुन कर करीब था के कुछ लोग शको शुबा में मुबतला हो जाते, इसी असना (वक़्त) मैं शख़्से मज़कूर को जब ज़ख़्मो की तकलीफ़ ज़्यादा हुई तो उसने ख़ुदकुशी कर ली और हराम मौत मर गया ये देख कर लोग हिम्मत और दरबारे रिसालत में हाज़िर हो कर अर्ज़ किया या रसूलल्लाह अल्लाह त’आला ने आपकी बात को मजबूत साबित कर दिया, ये सुन कर। हुज़ूर ने फ़रमाया: यानी ऐ बिलाल उठ और एलान कर दे के जन्नत में वही जा सकता है जो ईमान वाला हो (सुन्नी अक़ाइद, पेज २)
हिकायत : ईमान जन्नत जाने का ज़रिया
बसरह के क़रीब हज़रत मालिक बिन दीनार रदीयल्लाहु अन्हु ने देखा कि एक जनाज़े को महज़ चार लोग लिये जा रहे थे, उनको पांचवां सहारा देने वाला कोई नहीं है। हजरत मालिक बिन दीनार जा पहुंचे और पूछा भई क्या बात है सिर्फ आप ही लोग हैं पांचवां कोई नहीं? जवाब यह शख्स नेहायत बदकार और गुनहगार था।
हज़रत मालिक बिन दीनार रदियल्लाहु अन्हु ने मिलकर इन चारों के साथ उनकी नमाज़े जनाज़ा पढ़ी और अपने हाथों से उसे कब्र मे उतारा और तदफ़ीन के बाद क़रीब ही एक दरख़्त के साये में जा लेटे । गुनूदगी छाई और इसकी क़ब्र का सारा माजरा मुलाहज़ा फरमाया दो फरिश्ते 1 क़ब्र शक़ करके अन्दर दाखिल हुए। एक ने दूसरे से कहा इसे अहले जहन्नम में लिखो इसका कोई उज़वे बदन गुनाहों से बरी नहीं। दूसरे ने कहा जरा इसकी आँखों पर गौर करो देखो इसकी अांंखे अमले हराम और बदनज़री से लब्रेज़ हैं, और कान? कान मुनकिरात और हराम सुनने के अरतकाब से भरे हुए हैं, जरा ज़बान पर भी तवज्जोह दो, ज़बान भी हराम ख़ोरी की तलवीष से पुर है और इसके हाथों का क्या हाल है, बदकारी की ज़ुल्मत हाथों में भी पाई जाती है। आखरी हिस्सा बदन पाँव को भी देखो ? इसके तो पाँव भी नापाक रूख पर जाने के ऐब से वज़नी हैं। अब पूछने वाला फरिश्ता खुद मुर्दे के क़रीब आकर उसके दिल पर गौर करने लगा और उसने कहा मगर इसका दिल तो ईमान से भरा हुआ है। इसको मरहूम और नेक लिखना चाहिये क्योंकि अल्लाह त’आला का फज़लों करम इसकी मआसियातों और गलतियों को माफ फरमा देगा।(क़ब्र की पहली रात, पेज 45)
ईमान वालों के दर्जे बुलंद होंगे
अल्लाह ईमान वालों के और उनके जिन को इल्म दिया गया दर्जे बुलन्द फ़रमाएगा। (सूरह मुजादला, आयत न. 11)
ईमान वालों को अल्लाह अज़ाब नहीं देगा
अल्लाह फ़रमाता है : (तर्जमा कंज़ुल ईमान) : अल्लाह तुम्हें अज़ाब देकर क्या करेगा अगर तुम हक़ मानो और ईमान लाओ।(सूरह निसा, आयत 147)
अल्लाह मोमिनों पर फ़ज़्ल करता है
कुरअ़ान में हैः अल्लाह मोमिनों पर फ़ज़्ल करता है।(सूरह इमरान, आयत न. 152)
ईमान वालों को मर्तबा दिया जाएगा?
अल्लाह फ़रमाता है (तर्जमा ) : अगर तुम्हें कोई तकलीफ पहुँची तो वो लोग भी वैसी ही तकलीफ पा चुके हैं और ये दिन है जिनमें हमने लोगों के लिये बारियाँ रखी है और इसलिये कि अल्लाह पहचान करा दे ईमान वालों की, और तुम में से कुछ लोगों को शहादत का मरतबा दे और अल्लाह दोस्त नहीं रखता ज़ालिमों को।(सूरह इमरान, आयत न. 140)
ये उम्मत नमाज़ रोज़े की ज्यादती के वजह से जन्नत में नही जाएगी
फरमाने मुस्तफा ﷺ है, मेरी उम्मत के लोग जन्नत में नमाज़ व रोज़ों की ज्यादती से नहीं बल्कि दिलों की सलामती, सखावत और मुसलमानों पर रहम करने की बदौलत दाखिल होगे। (मुकाशफूतुल क़ुलूब, बाब 18, पेज 130)
ईमान की ताकत सबसे बड़ी है
अल्लाह फ़रमाता है : न सुस्ती करो और न ग़म खाओ तुम्ही ग़ालिब आओगे अगर ईमान रखते हो (कन्जुल ईमान, सूरह इमरान, आयत न 139)
ईमान वालों पर शैतान का क़ाबू नहीं
बेशक उसका (शैतान का) कोई क़ाबू उनपर नहीं जो ईमान लाए और अपने रब ही पर भरोसा रखते हैं। (सूरह, नहल, आयत 99)
मोमिन शैतान को रूला देता है
हदीस : जब शैतान किसी बंदा ए मोमिन को फ़ितने में मुब्तला नही कर पाता है तो बहुत रोता हैः हज़रते सफवान अपने एक शैख़ से रिवायत करते हैं, उन्होंने फरमायाः जब कोई मोमिन दुनिया मे शैतान के फ़ितने में मुब्तला हुए बग़ैर मर जाता है तो शैतान इस पर खूब रोता है। (मकाइदुश्शैतान, पेज 37)
शैतान से ईमान वालों की हिफा़ज़त
हदीसः शैतान से अल्लाह पाक के फरिश्ते मो’मिन की हिफा़ज़त करते हैंः हज़रते अबु उमामा रदी़अल्लाहु अ़न्हु से रिवायत है, उन्होंने कहा नबीए पाकﷺ ने इरशाद फ़रमायाः हर मोमिन बंदे के साथ 360 फरिश्ते मुक़र्रर है जो उसकी उन तमाम चीज़ों से हिफा़ज़त करते रहते हैं जिन पर वोह क़ुदरत नही पाता, सात फ़रिश्ते इंसान की उसी तरह हिफाज़त करते हैं जैसे मौसमे सरमा में शहद के प्याले को मक्खियों से बचाया जाता है। अगर वह फरिश्ते ज़ाहिर हो जाएं तो तुम उन्हें हर नरम और सख़्त ज़मीन पर हाथ को फैलाए हुए और मुंह को खोले हुए देखोगे। अगर बंदा एक लम्हे के लिए अपनी हिफाज़त करने पर मुक़र्रर कर दिया जाए तो शयातीन उसे उचक लेंगे। (मकाइदुश्शैतान, पेज 37)
ईमान वालों के लिए अमान
अल्लाह फ़रमाता है : (तर्जमा कंज़ुल ईमान) : वो जो ईमान लाए और अपने ईमान में किसी नाहक़ (बातिल) चीज़ की आमेज़िश (मिलावट) न की उनहीं के लिये अमान (हिफाज़त) है और वही राह पर हैं। (सूरह अन’आम, आयत न. 82)
ईमान वालों के लिए हिदायत
क़ुरआन में है : (तर्जमा) हिदायत और रहमत ईमान वालों के लिये । (सूरह नहल, आयत 64)
ईमान वालों के लिए साबित कदमी
क़ुरआन से ईमान वालों को साबित क़दम करे और हिदायत और बशारत ईमान वालों को। (सूरह नहल, आयत न. 102)
ईमान के बदौलत साबित कदमी
अल्लाह साबित रखता है ईमान वालों को हक़ बात पर दुनिया की ज़िन्दगी में और आख़िरत में। (सूरह इब्राहिम, आयत न. 27)
ईमान वालों के लिए अच्छी ज़िन्दगी
जो अच्छा काम करे मर्द हो या औरत और हो ईमान वाला तो ज़रूर हम उसे अच्छी ज़िन्दगी जिलाएंगे और ज़रूर उन्हें उनका नेग देंगे जो उनके सब से बेहतर काम के लायक़ हों। (सूरह नहल, आयत न. 97)
ईमान वालों के लिए जन्नत
अल्लाह फ़रमाता है : (तर्जमा कंज़ुल ईमान) : जो ईमान लाए और ताक़त भर अच्छे अमल किये हम किसी पर ताक़त से ज़्यादा बोझ नहीं रखते, वो जन्नत वाले हैं उन्हें उस में हमेशा रहना (सुरहः अराफ़, आयत न. 42)
मोमिन की इज़्ज़त का’बे से ज़्यादा है
हज़रते अब्दुल्लाह बिन उमर रदीअल्लाहु त’आला अन्हुमा फरमाते हैं मैंने हुजूर सैय्यदे आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम को देखा कि काबा मुअज्जमा का तवाफ़ करते और फ़रमातेः ऐ काबा तू कितना पाकीज़ा है और तेरी खुशबू कितनी पाकीज़ा है, तू कैसा अज़ीम है और तेरी हुर्मत कितनी बड़ी है, क़सम उसकी जिसके कब्ज़-ए-कुदरत में मुहम्मद (सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम) की जान है बेशक अल्लाह तआला के नज़दीक मोमिन की इज़्ज़त तेरी इज़्ज़त से बहुत ज़्यादा है। (फ़ैज़ाने आला हज़रत, पेज न. 79)
ईमान वालों की वजह से दुनिया आबाद है
अगर दुनिया ईमान वालो के वजूद से ख़ाली हो जाती तो ज़मीन वाले हलाक व बरबाद हो जाते अहले ईमान की बरकत से यह दुनिया हलाक न हुई। (फैजाने आला हज़रत, पेज 79)
हदीस में है रू-ए-ज़मीन पर हर ज़माने में कम से कम सात ईमान वाले ज़रूर रहे हैं ऐसा न होता तो ज़मीन व अहले ज़मीन सब हलाक हो जाते। (बुखारी)
दूसरी हदीस में है नूह अलैहिस्सलातु वस्सलाम के बाद जमीन कभी सात मोमिनों से खाली न हुई जिनके सबब अल्लाह तआला अहले जमीन से अज़ाब दफा फरमाता है। (मुसन्निफ अब्दुर्रज़्ज़ाक़) (फ़तावा रज़विया जिल्द 11, पेज 155)
ईमान वालों के अमल की क़द्र किया जाएगा
अल्लाह फ़रमाता है : तर्जमा : जो कुछ भले काम करेगा मर्द हो या औरत और हो ईमान वाले तो वो जन्नत में दाखि़ल किये जाएंगे और उन्हें तिल भर नुक़सान न दिया जाएगा (कंज़ुल ईमान, सुरह निसा, आयत न. 124)ईमान की अहमियत
हज़रते इब्ने मस्ऊद से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ने फ़रमाया जिस के दिल में राई के दाने के बराबर भी ईमान होगा वोह जहन्नम में दाखिल नहीं होगा और जिस शख़्स के दिल में राई के दाने के बराबर तकब्बुर होगा वोह जन्नत में दाखिल नहीं होगा। (मुस्लिम शरीफ)
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