Zalim Badshah Allah Ke Huqm Se

ज़ालिम बादशाह अल्लाह के हुक्म से

हर काम अल्लाह के हुक़्म से
जान लो और मान लो कि हर काम अल्लाह के हुक़्म से ही होता है। क़ुरआन में है ” उसके (अल्लह के) हुक्म से आसमान और ज़मीन क़ायम हैं। (सूरह रूम, आयत 25)

क़ुरआन में दूसरी जगह है ” उसी के हैं जो कोई आसमानों और ज़मीन में हैं, सब उसके (अल्लाह के) ज़ेरे हुक्म हैं।(सूरह रूम, आयत 26)

आगर किसी के साथ बुरा हुवा तो वो भी अल्लाह का हुक़्म से हुवा क्योंकि किसी के साथ बुरा इसलिये हुवा की वो उसी लायक था, अगर किसी के साथ अच्छा हुआ तो वो भी अल्लाह के हुक़्म से हुवा क्योंकि वो उसी लायक था। अल्लाह फ़रमाता है : जो शुक्र करे वह अपने भले को शुक्र करता है और जो नाशुक्री करे तो बेशक अल्लाह बेपर्वाह है। (सुरह लुकमान, आयत न 12)

बुराई खुद की तरफ से
अल्लाह फ़रमाता है तर्जमा : ऐ सुनने वाले तुझे जो भलाई पहुँचे वो अल्लाह की तरफ से है और जो बुराई पहुंचे वो तेरी अपनी तरफ से है। (कंजुल ईमान, सूरह निसा, आयात न 79)

मुसीबत खुद की वजह से
अल्लाह फ़रमाता है (तर्जुमा) : जो मुसीबत पहुंची वह इसके सबब से है जो तुम्हारे हाथों ने कमाया (यानी खुद से गुनाह किया) । (सूरह शूरा, आयत न. 30)

मुसलमान अपनी परेशानी का वजह खुद है

क़ुरआन में है : बेशक हम उस शहर वालों पर आसमान से अज़ाब उतारने वाले हैं बदला उनकी नाफ़रमानियों का। (सूरह-अंकबूत, आयात न. 34)

क़ुरआन में है : बेशक जो ईज़ा (तकलीफ) देते हैं अल्लाह और उसके रसूल को उनपर अल्लाह की लअनत है दुनिया और आखि़रत में और अल्लाह ने उनके लिये ज़िल्लत का अज़ाब तैयार कर रखा है।(सूरह अहजाब, 57)

अल्लाह को भूलने का अंजाम
अल्लाह फ़रमाता है (तर्जुमा) : उन जैसे न हो जो अल्लाह को भूल बैठे तो अल्लाह ने उन्हें बला में डाला कि अपनी जानें याद न रही वही फ़ासिक़ हैं । (सूरह  हस्र, आयत न. 19)

जैसा करेगा वैसा भरेगा
सरकारे दो आलम का फरमाने आलीशान है कि “नेकी पुरानी नही होती और गुनाह भुलाया नही जाता, जजा देने वाला यानी अल्लाह कभी फ़ना नही होगा, लिहाजा जो चाहे कर, तू जैसा करेगा वैसा भरेगा।“ (बहरूद्दमुअ, पेज 38)

ज़ालिम लोग पर ज़ालिम बादशाह
हज़रत यहया बिन हाशिम और हजरत यूसुफ बिन इस्हाक से रिवायत है कि नबी सलल्लाहो अलैहे वसल्लम का इरसद पाक है कि “जैसे तुम होगे वैसे ही तुम्हारे सरदार (हाकिम) मोकर्रर किये जायेंगे।“ (वैहेकी)

गुनाहगार अजाब का हक़दार
जो लोग अल्लाह तआला के अहकामात की मुखालिफत करते हैं वह इस अमर (अंजाम ) से डरें कि उन्हें फितना या दर्दनाक अज़ाब पहुँचे।“ (मुकाशफुतुल कुलूब, बाब 52)

ज़ालिम बादशाह (मोदी) गुनाहों के वजह से
हज़रत अबूदर्दा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है हुज़ूर ﷺ ने इरशाद फ़रमाया : नेकी का हुक्म देते रहना और गुनाहों से रोकते रहना नही तो अल्लाह तआला तुम पर ऐसे जालिम हाकिम (मोदी सरकार जैसा) मुकर्रर कर देगा । जो तुम्हारे बुजुर्गों का ऐहतिराम नही करेगा, तुम्हारे बच्चों पर रहम नही करेगा, तुम्हारे बड़े बुलायेंगे लेकिन उनकी बात नही मानी जायेगी, वह मदद तलब करेंगे मगर उन की मदद नही की जायेगी और वह बख़्सिस तलब करेंगे मगर उन्हें नही बख़्शा जायेगा । (सुन्नी फजाईले आमाल, सफा न. 792)

ज़ालिम बादशाह (मंत्री) का हुकूमत अल्लाह के हुक़्म से
हज़रत अबू दरदा रज़ियल्लाहु अन्हु से मरवी है- उन्होंने कहा, नेकी का हुक्म देते रहना और बुराई से रोकते रहना, नहीं तो अल्लाह तआला तुम पर ऐसे हाकिम मुर्कार कर देगा जो तुम्हारे बुजुर्गों का एहतेराम नहीं करेगा, तुम्हारे बच्चों पर रहम नहीं करेगा, तुम्हारे बड़े बुलायेंगे लेकिन उन की बात नहीं मानी जायेगी, वह मददगार तलब करेंगे मगर उन की मदद नहीं की जाएगी और वह बख़्शिश तलब करेंगे मगर उन्हें नहीं बख़्शा जाएगा। (मुकाशफतुल कुलूब, बाब 15)

ज़ालिम बादशाह अल्लाह की नाराज़गी के वजह से
हज़रत कतादा से रिवायत है के हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने अल्लाह तआला से अर्ज़ किया की तेरी रज़ा और नाराज़गी का अलामत क्या है? अल्लाह तआला ने इरशाद फ़रमाया तुम्हारे (लोगों के) ऊपर नेक लोगों को बादशाह बनाना मेरे राजी़ होने की अलामत है और बुरे लोगों (जैसे मोदी और योगी) को बादशाह बनाना मेरे नाराज़ होने की आलमत है। (अज़ाबे इलाही और उसके असबाब, पेज 97)

इस उम्मत में ज़ालिम बादशाह का खास अज़ाब
हदीस: हज़रत उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया आखिरी ज़माने में मेरी उम्मत को अपने हुक्मरानों (मोदी जैसो) से सख्त तकलीफें पहुँचेंगी उन से निजात नहीं पायेगा मगर वह शख्स जिस ने अल्लाह के दीन को पहचाना और उस पर अपनी जबान, हाथ और दिल के साथ जिहाद किया यह वह शख्स है जो पूरी तरह सबक़त ले गया दूसरा वह आदमी जिस ने अल्लाह के दीन को पहचाना और उस की तसदीक की, तीसरा वह आदमी जिस ने अल्लाह के दीन को पहचाना और उस पर खामोश रहा। अगर किसी को नेकी करते देखा तो उस से मोहब्बत करने लगा और अगर किसी को गलत काम करते देखा तो उस से नाखूश रहा। यह सब अपनी अन्दरूनी हालत के बाइस निजात पा जायेंगे। (बैहकी)

ज़ालिम बादशाह का ज़ुल्म का असर
हज़रत मुजाहिद फरमाते हैं के एक बादशाह ने तवील उमर पाई इस के दरबान बहुत सख्त थे एक दिन इस ने कहा मुझे मेरे मुल्क के बहुत कम लोग जानते हैं क्यों नहीं मैं लोगों में फिरूं ताके मुझे इल्म हो जाए के लोग क्या कहते हैं। इस ने -अपने दरबान से कहा मेरे पास कोई नहीं आए और लोगों को बता दो कि बादशाह बीमार है बादशाह वहां से निकल कर ऐक ऐसे आदमी के पास ठहरा जिसकी गाय 3 गाय के बराबर दूध देती थी। बादशाह हेरान हुवा और कहने लगा अगर में इस गाय को ले लूं तो इसका का दूध 3 गायों में के दूध से किफायत केरे गा, पस उस गाय की एक तिहाई दूध ख़ुश्क हो गया। बादशाह ने इस के मालिक से कहा तू ने इस को किसी और चरागाह में चराया है या किसी दूसरे चश्मे से पानी पिलाया है के इस का दूध कम हो गया इस ने कहा नहीं मेरे ख्याल में बादशाह के दिल में जुल्म का ख्याल पैदा हुआ जिसकी वजह से गाये के दूध की बरकत चली गई। बादशाह ने कहा बादशाह को तेरी क्या खबर।
उस ने कहा हक बात वही है जो मैंने तुझे कही है बादशाह के दिल में जब जुल्म का ख्याल पैदा होता है तो बरकत चली जाती है। बादशाह ने अल्लाह तआला से वादा किया कि वो कभी इस शख़्स की गाय नहीं ले सकता। बादशाह के अदल की वजह से गाये का दूध लौट आया। वह बादशाह कहने लगा. मुझे इल्म हो गया के बादशाह के ज़ुल्म की वजह से बरकत उठ जाती है।

हज़रत मूस इब्न ऐन फ़रमाते हैं हम हज़रत उमर बिन अब्दुल अल अज़ीज़ के ज़माना ख़िलाफ़त में किरमान के इलाक़े में बकरीयाँ चराते थे और जंगली जानवर और भेड़ें एक ही जगह में चरते थे एक रात अचानक एक भेड़िया एक बकरी पर हमलावर हुआ हम ने कहा जरूर किसी नेक आदमी का इंतकाल हुआ है। हज़रत हम्माद कहते हैं कि मुझ से हज़रत मूसा इब्न ऐन या किसी और ने बयान किया के उन्हों ने हिसाब लगाया तो इसी रात हज़रत उमर बिन अब्दुल अल अज़ीज़ का इंतक़ाल हुआ था। (अज़ाबे इलाही और उसके असबाब)

क़ौम पर ज़ालिम बादशाह का अज़ाब
हदीस : हज़रत इब्ने उमर रदियाल्लाहु अन्हु फरमाते है के रसूलल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के पास मुहाजरीन सहाब के दस लोग बैठे हुए थे मैं उनमें से दसवां आदमी था, हुजूर सलल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने चेहरा मुबारक के साथ हमारी तरफ मुतवज्जह हुए और फरमायाः “ जिस कौम में बेहयाई आम हो जाए और लोग उसका खुल्लम खुल्ला बार-बार करने लगे तो वो कौम मुख्तलिफ बीमारी और परेशानी और ताऊन में मुब्तिला कर दी जाती है जो बीमारी उनसे पहले गुजरे हुए लोगों में मौजूद न थी और जो कौम नाप तोल में कमी करती है वो कहतसाली (बेरोजगारी), मशक्कत वो शिद्दत और बादशाह(प्रध्ांनमंत्री) के जुल्म में मुब्तिला कर दी जाती है और जो कौम अपने माल की जकात अदा नही करती वो रहमत की बारिश से महरूम (दूर) कर दी जाती है अगर जानवर न होते तो उनपर बरिश ही न बरसती और जो कौम अहद शिकनी/ वादा खि़लाफी करती हैं तो अल्लाह तआला इनपर इनके गैर (दूसरे धर्म जैसे बजरंग दल) से दुश्मन मुसल्लत कर देते है जो उनके माल वो जायदाद पर कबजा कर लेते हैं। और जब लोगों के हुक्मरान अल्लाह तआला के नाज़िल करदा अहकाम वो क़ुरान के मुताबिक अमल नहीं करते और कुरान मजीद के अहकाम को अहमियत और तरजीह नहीं देते तो अल्लाह तआला उनको आपस (लड़ाई) के अजाब में मुब्तिला कर देता हैं। (इब्ने माजा)

बादशाहों (मोदी व योगी) को बुरा न कहो बल्कि तौबा करो
हज़रत मालिक बिन दीनार फरमाते हैं कि तौरेत शरीफ़ में अल्लाह तआला ने फ़रमाया है कि बादशाहों के दिल मेरे क़ब्ज़े में हैं जो मेरी हुक्म मानेगा मैं उस के लिये बादशाहों को रहमत बनाऊंगा और जो मेरी मुखालफत करेगा उस के लिये उन को अज़ाब बनाऊंगा फिर तुम बादशाहों को बुरा कहने में मश्गूल न हो बल्कि मेरी बारगाह में तौबा करो मैं उन को तुम पर महरबान कर दूंगा। (तम्बीहुल मुग्तरीन, अल बाबुल अव्वल, सब्रहम अला जोरुल हुक्काम, स. 43)

तौबा न करने वाला ज़ालिम है
अल्लाह फ़रमाता है : क्या ही बुरा नाम है मुसलमान होकर फ़ासिक़ कहलाना और जो तौबा न करें तो वही ज़ालिम हैं। (सूरह हुजरात, आयत न. 11)

ज़ालिम क़ौम पर ज़ालिम बादशाह
अल्लाह फ़रमाता है : हम ज़ालिमों में एक को दूसरे पर मुसल्लत करते हैं बदला उनके किये (यानी गुनाह का)। (सूरह – अनआम, आयत न. 129)
अल्लाह फ़रमाता हैः (तर्जमा) : यूंही हम (यानी मेरे हुक़्म से) ज़ालिमों में एक (ज़ालिम) को दूसरे (ज़ालिमों) पर मुसल्लत करते हैं बदला उनके किये का। (सूरह अनआम, आयत न. 129)

’आयत की तफ़्सीर :’ हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हु ने फ़रमाया कि अल्लाह जब किसी क़ौम की भलाई चाहता है तो अच्छों को उनपर मुसल्लत करता है, बुराई चाहता है तो बुरों को. इससे यह नतीजा निकलता है कि जो क़ौम ज़ालिम होती है उसपर ज़ालिम बादशाह मुसल्लत किया जाता है. तो जो उस ज़ालिम के पंजे से रिहाई चाहें उन्हें चाहिये कि ज़ुल्म (नाफरमानी) करना छोड़ दें. (ख़जाइनुल इरफान)
ऊपर के आयत से मालूम हो गया कि नाफ़रमान मुसलमानों पर काफ़िर या मुशरिक इतना ज़ुल्म जो कर रहे है ये मुसलमानों के ज़ुल्म का बदला है।

भलाई वाले हो जाओ
अल्लाह फ़रमाता है (तर्जुमा) : अल्लाह की राह में ख़र्च करो और अपने हाथों हलाक़त में न पड़ो, और भलाई वाले हो जाओ बेशक भलाई वाले अल्लाह के मेहबूब हैं। (सूरह – बक़रह, आयत न. 195)

उम्मीद करता हु इस पोस्ट पर अमल करके आप दुनियादारी (यानी माल की मोहब्बत) से तौबा करेंगे क्योंकिं दुनियादरी ही तमाम गुनाहो का जड़ है