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December 2023

Tarke Duniya

इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह किताब मुकाशफतुल क़ुलूब में लिखते है “कुरआने मजीद में दुनिया की मजम्मत और दुनिया से तवज्जोह हटा कर आखिरत की जानिब माइल करने के लिए बेशुमार आयतें हैं बल्कि अम्बियाए किराम अलैहिमुस्सलाम को भेजने का सबब यही तर्के दुनिया थी (मुकाशफतुल क़ुलूब, बाब 31)

दुनिया को तर्क क्यों करे?

हदीस : हुज़ूर ﷺ ने इरशाद फ़रमाया : दुनिया की महब्बत तमाम गुनाहों की जड़़ (असल) है।(मुकाशिफतुल क़ुलूब, बाब 31)
वाज़ेह हो जब इंसान आखि़रत की बजाए दुनिया की ज़िन्दगी को पसन्द करता है तो गुनाह को करने के लिए मजबूर और अल्लाह त‘आला से दूर हो जाता है।
अल्लाह फ़रमाता है (तर्जुमा) : क़ाफ़िर दुनिया की ज़िन्दगी पर इतरा गए और दुनिया की ज़िन्दगी आख़रित के मुक़ाबले नहीं मगर कुछ दिन बरत लेना (सूरह-रअद, आयत न. 26)

इसलिए दुनिया को तर्क करे
गुनाहों की तमाम अक़साम जैसे कुफ़्र व शिर्क व निफ़ाक़, सगीरा व कबीरा, फ़िस्क़ व फ़ुजूर, नाजाइज़ व हराम, ऐलानिया व ख़ूफ़िया में मुब्तला हो जाने की वजह यही दुनिया की महब्बत है यानी आख़रित को भूल कर दुनिया को तरजीह देना।

तर्के दुनिया का हुक़्म
हजरते अबू मूसा अशअरी रज़ियल्लाहु अन्हु से मरवी है कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया जिस ने दुनिया से मुहब्बत की उस ने आखिरत को नुकसान पहुंचाया और जिस ने आखिरत से मुहब्बत की उस ने दुनिया को किसी लाइक न समझा। तुम फानी दुनिया पर बाकी रहने वाली चीजों को तर्जीह दो (यानी आख़िरत से मुहब्बत करो और दुनिया से जरूरत का मामला रखो)।(मुकाशफतुल क़ुलूब, )

दुनिया को दुनियादारों के लिए छोड़ दो:
फरमाने नबवी है कि दुनिया दुनियादारों के लिए छोड़ दो, जिस ने अपनी ज़रूरत से ज़्यादा दुनिया ले ली. उस ने बेख़बरी में अपने लिए हलाकत ले ली। राहे खुदा में खर्च होने वाला माल बाक़ी रहता है (मुकाशफतुल क़ुलूब)

दुनिया को तरजीह (मान्यता) न दो
हज़रत ज़हाक रदियल्लाहु अन्हु बयान करते हैं कि नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के पास एक शख़्स आया और सवाल किया कि ऐ अल्लाह के रसूल! लोगों में ज़ाहिद कौन है? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया जो क़ब्र और क़ब्र में जिस्म के गल जाने को नहीं भुलाता और दुनिया की बेजा ज़ेब व जीनत से गुरेज करता है और फ़ानी ( दुनिया ) पर बाक़ी ( आख़रत) को तरजीह देता है रोज़े फ़रदा को ज़िन्दगी में शुमार नहीं करता और अपने आप को मुर्दों में शुमार करता है। (तरगीब जि. 4)

तर्के दुनिया का सही माना
दुनियावी ज़िन्दगी मे आख़िरत का तलब दिल मे रखते हुवे तमाम हक़ वालों से दिली मुहब्बत करना और दुनिया को दीन का दुश्मन मानकर दुनिया और दुनिया की तमाम फ़ानी चीज़ों से मुहब्बत ना करना, सिर्फ जरूरतन इस्तेमाल करना वो भी अल्लाह, रसूलअल्लाह और औलिया अल्लाह के हुक़्म के दायरे में रहकर इसी काम का नाम तर्के दुनिया है।

तर्के दुनिया का गलत माना
बहुत सारे लोग तर्के दुनिया का गलत माना जानकर दुनियावी चीजो को इस्तेमाल करना ही छोड़ देता है जबकि दुनियावी सामान का इस्तेमाल उस चीज से मुहब्बत किये बगैर जरूरत के लिए इस्तेमाल करना जायज है जैसे माल की जरूरत जायज है लेकिन माल की मुहब्बत नाज़ायज़ है। जो आबादी से दूर रहकर जंगलों में ज़िन्दगी गुजारने की चाहत तय कर लेते है। खूब जान लेना चाहिए कि दौर के हिसाब से शैतान का ग़लबा एडवांस हुआ और जो सख्स दौर के मुताबिक शैतान का मुखालफ़त न करे ऐसा शख़्स मोहताजी का शिकार हो जाएगा जो शैतान के तरफ से है यानी उसपर शैतान का ग़लबा होगा , मोहताजी इंसान को कुफ्र की हद तक पहुचा सकता है। इसलिए मुआशरे में रहकर ज़िन्दगी जीना चाहिए ताकि हुक़ूक़ूल इबाद के फावायद से महरूम न रह जाये।

अक़्ल से दुनिया को तर्क करो
जो कुछ चीज़ तुम्हें दी गई है वह दुनियावी ज़िन्दगी का बर्तावा और उसका सिंगार और जो अल्लाह के पास है और वह बेहतर और ज़्यादा बाक़ी रहने वाला तो क्या तुम्हें अक़्ल नहीं। (सुरह कसस, आयत न. 60)

दुनियादारो के लिए आख़िरत में कुछ हिस्सा नहीं
कोई आदमी यूँ कहता है कि ऐ रब हमारे हमें दुनिया में दे, और आख़िरत में उसका कुछ हिस्सा नहीं.
(सुरह बकरा , आयत न. 200)

काफ़िरों की निगाह में दुनिया की ज़िन्दगी आरास्ता की गई और मुसलमानों से हंसते हैं और डर वाले उनसे ऊपर होंगे क़यामत के दिन और ख़ुदा जिसे चाहे बेगिनती दे
(सुरह बकरा , आयात न. 212)

दुनियादारी से बचो
क़ुरआन में अल्लाह फ़रमाता है (तर्जमा) : तुम्हारे लिये रात और दिन बनाए कि रात में आराम करो और दिन में उसका फज़ल ढूंढो और इसलिये कि तुम हक़ मानो (यानी दीनदारी अपनाओ)। (कंजूल ईमान, सूरह क़सस, आयत नं. 73)

दुनिया को तर्क करना असल नेकी है

दुनिया की महब्बत दिल से निकाले बगै़र तौबा मुम्किन नहीं। बगै़र तौबा के हकी़की नेकी नहीं। हकी़की़ नेकी व तौबा के लिए दुनिया की महब्बत दिल से निकालना शर्त है। जो आख़रित से महब्बत करके उख़रवी ज़िन्दगी को हासिल करने के लिए सिर्फ़ दुनियवी चीज़ों को ज़रूरत के तहत इस्तेमाल करे वोह कामयाब हो जाएगा । अगर आख़रित को भूल कर दुनियवी चीज़ों से महब्बत करे और कुफ़्फ़ार की तरह दुनियवी ज़िन्दगी को पसन्द करे और कुफ़्फ़ार के तौर तरीके को अपनाए वोह हलाक़ हो जाएगा।

दुनिया की मिसाल गधे की तरह है जैसे कि मुसाफ़िर अपनी मंज़िल तक पहुंचने के लिए गधे का इस्तेमाल करता है वैसे ही तू आख़रित का मुसाफ़िर है और दुनियवी ज़िन्दगी एक सफ़र है और जितने भी इस्तेमाल के सामान है सब गधे की मानिन्द है लिहाज़ा तेरा माल व दौलत, सोना, चांदी, मकान, दुकान, मोबाईल, कंप्यूटर, कार, बाइक वग़ैरह चीज़े सब लानत के क़ाबिल हैं जो मौत के बाद साथ नहीं जाती। लिहाज़ा इन दुनियवी चीज़ों से महब्बत न करते हुए सिर्फ ज़रूरतन इस्तेमाल कर और हो सके तो जरूरत भी कम कर ले ये ख़ास लोगों यानी अल्लाह वालों की अलामत हैं। याद रख दुनिया व दुनियवी चीज़ों की ज़रूरत जाइज़ है लेकिन महब्बत नाजाइज़ है यहां तक की कुफ़्र है।

Duniya Ki Haqiqat

दुनिया की हक़ीक़त 1 (अल्लाह के नज़दीक)
अल्लाह फरमाता है: जान लो कि दुनिया की ज़िन्दगी तो (कुछ भी) नहीं मगर खेल कूद (मौज मस्ती, मनोरंजन) और आराइश और तुम्हारा आपस में बड़ाई मारना (यानी किसी भी मामले में तकब्बूर करना) और माल और औलाद में एक दूसरे पर ज़ियादती चाहना (कम्पटीशन करना) उस मेंह की तरह जिसका उगाया सब्ज़ा किसानों को भाया फिर सूखा कि तू उसे ज़र्द देखे फिर रौंदन हो गया (यानी फ़ानी दुनिया की मिसाल फसल की हरियाली खेती की तरह है जो किसानों के लिए खुश का सबब है लेकिन कुछ ही दिन के लिए) और आख़िरत में सख़्त अज़ाब है और अल्लाह की तरफ़ से बख़्शिश और उसकी रज़ा और दुनियावी ज़िन्दगी तो नहीं मगर धोखे का माल। (सूरह हदीद, आयत नो. 20)

खास तौर पर 5 चीज़ो का नाम दुनियादारी है
1. दौलत की लालच – ये तमाम गुनाहो की बुनियाद है। यानी दौलत के वजह से नफ्सानी और शैतानी खसलतों को अपनाया जाता है।
2.नफ़्सनी ख़्वाहिशात – इसके वजह से स्वार्थ, मनमर्जी, बेहयाई, रियाकारी तकब्बुर, खुद को बेहतर समझना, नामो नमूद जैसे ख़्याल दिल मे आते है।
3.शैतानी खसलतें- यानी हसद, कत्ल, जलन, झुट, धोखा, जु़ल्म, ख्यानत,
4. कुफ़्फ़ार के मुसाबिहत – यानी कुफ्फ़ार व मुर्शिकीन (जैसे ईसाई, यहूदी, हिन्दू वगैरह गैर का़ैम) के तौर तरीके को अपना कर शरीअत व सुन्नत को छोड़ना।
5. जिहालत – दीनी तालिम से दूर रहना, सुस्ती, मस्ती, खेल तमाशा, आराईस, हंसी – मज़ाक़, टाईम पास वगैरह इन पाँचों के वजह से इन्सान गुनाह में मुलविश रहता है।

दुनिया की हक़ीक़त 2 (अल्लाह के नज़दीक)
मरवी है कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का एक मुर्दा बकरी के पास से गुजर हुआ। आप ने फरमाया क्या यह बकरी अपने मालिक को पसन्द है? सहाबए किराम ने अर्ज की इस की बदबू ही की वजह से तो यहां फेक दिया गया है। आप ने फरमाया बख़ुदा दुनिया अल्लाह तआला के यहां इस मुर्दा बकरी से भी ज्यादा बे वकार है, अगर अल्लाह तआला के यहां दुनिया का मकाम मच्छर के पर के बराबर भी होता तो कोई काफिर इस दुनिया से एक घूंट भी पानी न पी सकता। (मुकाशफतुल क़ुलूब, बाब 31)

दुनिया की हक़ीक़त (रसूलअल्लाह के नज़दीक)
हजरते अबू हुरैरा रजियल्लाहु अन्हु से मरवी है, मुझ से हुजूरﷺ ने फरमाया तुझे दुनिया की हक़ीक़त दिखलाऊ? मैने अर्ज़ की हां या रसूलल्लाह! आप मेरा हाथ पकड़ कर मुझे मदीना की एक वादी में ले गये जहां कूड़ा पड़ा था और उस में गन्दगी, चीथड़े और इंसान के सर की बोसीदा हड्डियां (कंकाल) थी, आपने फरमाया ऐ अबू हुरैरा यह सर (कंकाल) भी तुम्हारे सरों की तरह लालची थे और इन में तुम्हारी तरह बहुत आरजुएं थी मगर आज यह खाली हड्डियां बन चुकी हैं जिन पर खाल भी नहीं रही और जल्द ही यह मिट्टी हो जायेंगे। यह गन्दगी उन के खानों के रंग है जिन्हें उन्होंने कमा-कमा कर खाया, आज लोग उन (कंकाल) से मुंह फेर कर गुज़रते हैं। यह पुराने चीथडे (कपड़े) जो कभी उन के पहनावे थे, आज हवा उन्हें उड़ाये फिरती है और यह उन की सवारियों की हड्डिया है जिन पर सवार होकर वह शहरों-शहरों घूमा करते थे, जो दुनिया के अंजाम पर रोना पसन्द करता हो उसे रोना चाहिए। हज़रते अबू हुरैरा फ़रमाते है फिर मैं और हुजू़र ﷺ बहुत रोए। (मुकाशफतुल क़ुलूब, बाब 31)

दुनिया की हक़ीक़त (ईसा अलैहिसालाम के नज़दीक)
हजरते ईसा अलैहिस्सलाम का फरमान है ऐ मेरे साथियो। मैंने दुनिया को औधे मुंह डाल दिया है तुम मेरे बाद कहीं उसे गले न लगा लेना। दुनिया की सब से बड़ी बुराई यह है कि उस में आदमी अल्लाह का नाफरमान बन जाता है और उसे छोड़े बगैर आखिरत की भलाई नामुमकिन है। दुनिया में दिलचस्पी न लो उसे इबरत की निगाह से देखो और बा-खबर रहो। दुनिया की मुहब्बत हर बुराई की असल है और एक लम्हा की ख्वाहिशे नफ़सानी अपने पीछे लम्बी शर्मिन्दगी छोड़ जाती है और फरमाया कि दुनिया तुम्हारे लिए सवारी बनाई गई और तुम उस की पीठ पर सवार हो गये तो अब बादशाह और औरतें तुम्हे उस से न उतार दे। रहा बादशाहों का मुआमला तो उन से दुनिया की वजह से मत झगड़ो वह तुम्हारी दुनिया और तुम्हारी छोड़ी हुई चीजों को तुम्हें वापस न देंगे। रही औरतें तो उनके नमाज रोज़े से होशियार रहो।
मज़ीद फरमाया दुनिया तालिब भी है और मतलूब भी है। जो खुशनूदीए खुदा का तालिब होता है दुनिया उसकी तालिब रहती है (यानी दुनिया अपनी तरफ खिंचती है) और उसे रिज़्क़ बहम पहुंचाती है और जो दुनिया का तालिब होता है उसे आखिरत तलब करती है और मौत उसे गुद्दी से पकड़ कर ले जाती है।

हज़रत फुजैल बिन अयाज़ नज़दीक दुनिया की हक़ीक़त
दुनिया एक पागलखाना है जिसके अंदर पागल (इंसान) जमा है और ये पागल बेड़ियो (दौलत) और हथकड़ियों (ख़्वाहिशात) में कैद है। (अक़वाले औलिया)

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