GKR Trust

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November 21, 2023

Iman Ki Alamat

ईमान की अलामत

ईमान क्या है?

हज़रत अबु उमामा रदीअल्लाहु से रिवायत है कि एक शख्स ने नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वस्सलम से पूछा ईमान क्या है? आप ने फ़रमाया तुम्हारे अच्छे अमल से ख़ुशी (सुकून) हासिल हो और बुरे अमल बुरे काम (गुनाह) से रंज (गम) हो तो तुम मोमिन हो अर्ज किया या रसूलल्लाह गुनाह क्या है फ़रमाया जो तुम्हारे दिल मे चुभे उसे छोड़ दो। (मुसनद अहमद)

अल्लाह से डरना ईमान है
अल्लाह का फ़रमान है : (तर्जमा) ऐ ईमान वालो, अल्लाह से डरो और छोड़ दो जो बाक़ी रह गया है सूद, अगर ईमान वाले हो (सूरह बकराह, आयत नं. 278)

शैतान से न डरो अल्लाह से डरो

अल्लाह का फ़रमान है : (तर्जमा) वह तो शैतान ही है कि अपने दोस्तों से धमकाता है तो उनसे न डरो और मुझसे डरो अगर ईमान रखते हो (सूरह इमरान, आयत नं. 175)

कुफ़्फार से न डरो अल्लाह से डरो

अल्लाह का फ़रमान है : (तर्जमा) क्या उनसे (काफ़िरों से) डरते हो, तो अल्लाह इसका ज़्यादा मुस्तहक़ है कि उससे डरो अगर ईमान रखते हो ।(सूरह तौबा, आयत नं. 13)

अल्लाह ही पर भरोसा करो अगर मोमिन हो
अल्लाह का फ़रमान है : (तर्जमा) अल्लाह ही पर भरोसा करो अगर ईमान रखते हो । (सूरह मायदा, आयत नं. 23)

हुक़्म मानों अगर ईमान रखते हो

अल्लाह फ़रमाता हैः अल्लाह व रसूल का हुक्म मानो अगर ईमान रखते हो। (सूरह अनफाल, आयत नं. 1)

अगर ईमान वालें हो तो
अल्लाह फ़रमाता है : (तर्जमा) ऐ ईमान वालो जिन्होंने तुम्हारे दीन को हंसी खेल बना लिया है वो जो तुमसे पहले किताब दिये गए (यानी यहूदी और ईसाई) और काफ़िर (हिन्दु व गै़र सुन्नी), उनमें किसी को अपना दोस्त न बनाओ और अल्लाह से डरते रहो अगर ईमान रखते हो।(सूरह मायदा, आयत नं. 57)

ईमान वाले काफ़िरो पर सख़्ति और जेहाद करेगें
कुरआन में है (तर्जमा) ऐ ईमान वालो तुम में जो कोई अपने दीन से फिरेगा तो अन्क़रीब अल्लाह ऐसे लोग लाएगा कि वो अल्लाह के प्यारे और अल्लाह उनका प्यारा, मुसलमानों पर नर्म और काफ़िरों पर सख़्त अल्लाह की राह में लड़ेंगे और किसी मलामत (गम) करने वाले की मलामत का अन्देशा न करेंगे यह अल्लाह का फ़ज़्ल है जिसे चाहे दे, और अल्लाह वुसअत वाला इल्म वाला है।(सूरह माइदा, आयत न. 54)

मोमिन को बेवकूफ ख्याल करना

हज़रते सय्यिदुना अबू हुरैरा रदीयल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि हुज़ूर नबिय्ये पाक ने इरशाद फ़रमाया : “मोमिन इतना नर्म तबीअत, नर्म ज़बान वाला होता है कि उस की नर्मी की वजह से लोग उसे अहमक़ (बेवकूफ) ख़याल करते हैं।” (शुअबुल ईमान)

मोमिन की मिसाल ऊंट की तरह है

हज़रते सय्यिदुना इरबाज़ बिन सारिया रदीयल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि हुज़ूर नबिय्ये करीम ने इरशाद फ़रमाया : “मोमिन नकील वाले ऊंट की तरह होता है कि अगर उसे बांध दिया जाए तो ठहर जाता है और अगर चलाया जाए तो चल पड़ता है और अगर किसी पथरीली जगह पर बिठाया जाए तो बैठ जाता है। (इब्ने माजाअ)

मोमिन की मिसाल खजूर के दरख़्त सी

हज़रते सय्यदुना अब्दुल्लाह बिन उमर रदीयल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि एक बार मुस्तफा ﷺ ने सहाबए किराम से इस्तिफ़्सार फ़रमाया कि “मुझे ऐसे दरख़्त के बारे में बताओ जो मोमिन मर्द के मुशाबेह होता है और उस के पत्ते नहीं गिरते वोह अपने रब के हुक्म से हर वक्त फल देता है।“ हज़रते सय्यदुना अब्दुल्लाह बिन उमर फ़रमाते हैं कि मेरे दिल में ख़याल आया कि हो न हो येह खजूर का दरख़्त है लेकिन मैं ने अमीरुल मोअमिनीन हज़रते सय्यिदुना अबू बक्र सिद्दीक़ और अमीरुल मोअमिनीन हज़रते सय्यिदुना उमर फारूक की मौजूदगी में बोलना मुनासिब ख्याल न किया। जब वोह दोनों भी न बोले तो हुज़ूर नबिय्ये पाक ने खुद ही इरशाद फ़रमाया कि “वोह खजूर का दरख्त है।“ (हुस्ने अख़लाक़, पेज 47 )

मोमिन सीधा- साधा होता है
हदीस – तिर्मिज़ी ने अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि मोमिन न तअन (भड़काव) करने वाला होता है, न लानत करने वाला, न फाहश (गंदी बातें करने वाला, बेहूदा बातें करने वाला, गालियाँ देने) वाला बकने वाला होता है। (बहारे शरीअत, हिस्सा 16, जबान की हिफाज़त,)

मोमिन खामोश और ग़मगिन होता है
हुज़ूर सरकारे दो आलम ﷺ ने फ़रमाया के मोमिन आरिफे इलाही (अल्लाह को पहचान लेने वाला) होता है और उसमें ये ख़ासियत होती है के ज़्यादातर ख़ामोश और ग़मगिनी की हालत (अल्लाह की याद, ख़ौफ़ और रज़ा) में रहता है और आम मुसलमान, कोशिश करने वाला और अन्दर से सूखा होता है।(असरारे हक़ीकी, ख़्वाजा ग़रीब नवाज)

मोमिन लानत करने वाला नहीं होता है
हदीस – तिर्मिज़ी ने इग्ने उमर रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से रिवायत की कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया मोमिन को ये न चाहिए कि लानत करने वाला हो। (बहारे शरीअत, हिस्सा 16, जबान की हिफाज़त,)

मोमिन महब्बत करने वाले होते है

हज़रते सय्यिदुना अनस रदीयल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि हुज़ूर नबिय्ये करीम, रऊफुर्रहीम ने इरशाद फ़रमाया : “मोमिन एक दूसरे के खैरख्वाह और आपस में मोहब्बत वाले होते हैं अगर्चे उन के शहर मुख्तलिफ़ हों और मुनाफिक़ एक दूसरे से धोका करने वाले होते हैं अगर्चे उन के शहर एक ही हों।’’ (हुस्ने अख़लाक़)

मोमिन झुटा नहीं होता 

हदीस :- इमाम अहमद व बयहकी ने अबू उमामा रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत की कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया मोमिन की तबा में तमाम खसलतें हो सकती है मगर ख़यानत और झूट यानी ये दोनों चीजें ईमान के खिलाफ है। मोमिन को इनसे दूर रहने की बहुत ज़्यादा ज़रूरत है।(बहारे शरीअत, हिस्सा 16, जबान की हिफाज़त,)

हदीस :- इमाम मालिक व बयहकी ने सफ़‌वान इब्ने सुलैम से रिवायत की कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से पूछा गया क्या मोमिन बुज़दिल होता है। फरमाया हाँ – फिर अर्ज की गयी क्या मोमिन बखील (कंजूस) होता है। फरमाया हाँ फिर कहा गया क्या मोमिन कज़्ज़ाब (झूटा) होता है फरमाया नहीं।(बहारे शरीअत, हिस्सा 16, जबान की हिफाज़त,)

झूट ईमान से मुखालिफ है।

हदीस :- इमाम अहमद ने हज़रते अबूबक्र रदियल्लाहु तआला अन्हु से. रिवायत की कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया झूट से बचो क्यूँकि झूट ईमान से मुखालिफ है।(बहारे शरीअत, हिस्सा 16, जबान की हिफाज़त,)

मजा़क में भी झूट न बोलो

हदीस :- इमाम अहमद ने अबू हुरैरा रदियल्लाहु त‘आला अन्हु से रिवायत की’ कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु त‘आला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया बन्दा पूरा मोमिन नहीं होता जब तक मज़ाक में भी झूट को न छोड़ दे और झगड़े करना न छोड़ दे अगरचे सच्चा हो। (बहारे शरीअत, हिस्सा 16, जबान की हिफाज़त,)

मोमिन की मिसाल दीवार की ईंट की तरह

हज़रते अबू मूसा अशअरी रदीयल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूले अकरम ﷺ ने इरशाद फ़रमाया : “एक मोमिन दूसरे मोमिन के लिये इमारत की तरह है। जिस का बाज़ हिस्सा बाज़ को मजबूती पहुंचाता है। (हुस्ने अख़लाक़, 45)

मोमिनीन की मिसाल एक जान की तरह है
हजरते सय्यिदुना नोमान बिन बशीर से रिवायत है कि हुज़ूर नबी ए रहमत, शफीए उम्मत ﷺ ने इरशाद फ़रमाया : “मोमिनीन की आपस में रहम, महब्बत और सिलए रेहमी करने की मिसाल एक जिस्म की सी है कि जब उस के किसी उज़्व (अंग) को तकलीफ़ पहुंचती है तो पूरा जिस्म बुखार और बे ख़्वाबी का शिकार हो जाता है। (हुस्ने अख़लाक़, 46)

ईमानी रिश्ता

तिर्मिज़ी व अबू दाऊद ने अबू हुरैरा रदीअल्लाहु त’आला अन्हु से रिवायत की कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया एक मोमिन दूसरे मोमिन का आइना है और मोमिन मोमिन का भाई है उसकी चीज़ों को हलाक होने से बचाये और गीबत में उसकी हिफाज़त करे।( इस्लामी अख़लाक़ व आदाब, पेज 194)

कामिल ईमान की अलामत

तर्जुमा :- हज़रते अनस रदीअल्लाहु त’आला अन्हु से रिवायत है कि हुज़ूर नबीए करीम ﷺ ने फरमाया कि तुम में से कोई मोमिन (कामिल) नहीं होगा। जब तक कि अपने भाई (मोमिन ) के लिए वही चीज़ न पसन्द करे जो अपनी ज़ात के लिए पसन्द करता है। (बुखारी जिल्द 1, सफा 6 किताबुल ईमान )
शरहे हदीस : यह हदीस दर हकीकत इस लिए पहले वाली – हदीस का ततिम्मा और तकमिल्म (पूरक) है और सिलसिला ए हुकूकुल इबाद की दूसरी कड़ी है। पहली कड़ी तो यह थी कि एक मुसलमान पर लाज़िम है कि वह अपनी ज़िन्दगी का वह दस्तूर बनाले कि मेरी ज़ात से किसी मुसलमान को किसी तरह कोई ईज़ा न पहुँचे और दूसरी कड़ी यह है कि मुसलमान इस जरी उसूल को अपना ज़ाब्तए हयात बनालें कि जो कुछ और जैसे सुलूक व मुआमलात को वह अपने लिए पसन्द करता है वही दूसरे मुसलमानों के लिए भी पसन्द करे।
मसलन हर शख़्स अपनी ज़ात के लिए यह पसन्द करता है कि कोई मुझ को नुकसान न पहुँचाए, कोई मेरी बे आबरुई न करे, कोई मेरे साथ बदसुलूकी न करे। कोई मुझे धोका और फ़रेब न दे। कोई मुझको और मेरे रिश्तादारों और मुहब्बत वालों को न सताए यूँ ही हर शख़्स अपने लिए यह पसन्द करता है कि मुझे इज़्ज़त आबरु माल व दौलत और तन्दरुस्ती व सलामती मिले मेरी हर चीज़ अच्छी हो मेरी जिन्दगी अच्छी गुजरे मुझे हर तरह का आराम व राहत मिले, वगैरह वगैरह । (मुन्तख़ब हदीस, पेज 61, अब्दुल मुस्तफ़ा आजमी)

ईमान की 3 अलामात

अताअ रज़ियल्लाहु अन्हु ने इब्ने अब्बास रदीअल्लाहु अन्हुमा से रिवायत की हैं कि हुज़ूर ﷺ जब अन्सार में तशरीफ लाये तो फ़रमाया क्या तुम मोमिन हो ? वह चुप रहे, हज़रते उमर रदीअल्लाहु अन्हु बोले, हां या रसूल ﷺल्लाह ! आपने फरमाया तुम्हारे ईमान की अलामत क्या है? उन्होंने अर्ज की, हम नेअमतों का शुक्र अदा करते हैं, मुसीबतों में सब्र करते हैं और तक़दीर पर राज़ी रहते हैं, आपने यह सुनकर फ़रमाया रब्बे कअबा की कसम तुम मोमिन हो। (मुकाशफतुल क़ुलूब, बाब 73)

ईमान की खास 4 अलामतें

हज़रत अनस बिन मालिक से रिवायत है कि हुज़ूर सरवरे आलम नूरे मुजस्सम ने फरमाया चार बातें ऐसी है जो मोमिन में पाई जाती है ।

1. खामोशी जो अव्वलैन इबादत है।

2. तवाज़ोअ करना (यानी ख़ुद को हक़ीर समझना) 

3. ज़िक्रे इलाही करना।

4. फ़साद बरपा न करना। (तंबीहुल गाफिलीन, जिल्द 1, पेज 283)

मोमिन होने की 6 निशानिया
हदीस : इमाम अहमद व बैहकी ने उबादा इन्ने सामित रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की कि नबीए करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया मेरे लिए छः चीज़ों के ज़ामिन हो जाओ मैं तुम्हारे लिए जन्नत का ज़िम्मेदार होता हूँ :-
1. जब बात करो सच बोलो।
2. जब वादा करो उसे पूरा करो।
3. जब तुम्हारे पास अमानत रखी जाये उसे अदा करो।
4. अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करो।
5. अपनी निगाहें नीची रखो।
6. अपने हाथों को रोको यानी हाथ से किसी को ईज़ा न पहुँचाओ। (बहारे शरीअत, हिस्सा 16, जबान की हिफाज़त,)

मुक़द्दस महफ़िल में ईमान की अलामत

एक मरतबा हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हज़रत अबू कर सिद्दीक रदीअल्लाहु अन्हु हज़रत उमर फारूक रदीअल्लाहु अन्हु और हज़रत उस्मान गनी रदीअल्लाहु अन्हु के साथ हज़रत अली मुर्तज़ा के मकान पर तशरीफ ले गये। हज़रत अली ने ख़ातिर तवाज़ो के लिए एक तश्त में शहद पेश किया। हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया तश्त ख़ूबसूरत है। शहद मीठा है। मगर उस में बाल है यह बाल- किस चीज़ की निशानदेही करता है, हज़रत अबू बकर सिद्दीक ने फरमाया मोमिन का दिल तश्त से ज़्यादा ख़ूबसूरत है ईमान शहद से ज़्यादा मीठा है लेकिन आख़री वक़्त तक ईमान को संभालना बाल से ज़्यादा बारीक है। हज़रत उमर फारूके आज़म रदीअल्लाहु अन्हु ने फरमाया बादशाहत तश्त से ज्यादा खूबसूरत है हुक्मरानी शहद से ज़्यादा मीठी है लेकिन उसमें अदल क़ाइम रखना बाल से ज़्यादा बारीक है।
हज़रत उस्मान ग़नी रदीअल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया इल्मे दीन तश्त से ज्यादा खूबसूरत है उसका सीखना शहद से ज़्यादा मीठा है लेकिन उस पर अमल करना बाल से ज़्यादा बारीक है।
हज़रते अली मुर्तज़ा ने फरमाया कि मेहमान तश्त से ज़्यादा ख़ूबसूरत है उसकी तवाज़ो शहद से ज़्यादा मीठी हैं लेकिन मेहमान की खुशी का ख़्याल रखना बाल से ज़्यादा बारीक है। हज़रत फातिमतुज्ज़हरा रदीअल्लाहु अन्हा ने फरमाया औरत का चेहरा तश्त से ज़्यादा ख़ूबसूरत है। हया शहद से ज़्यादा मीठी है मगर नामहरम की नज़र से बचना बाल से ज़्यादा बारीक है। हुज़ूरे अक्दस सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया अल्लाह का दीन इस तश्त से ख़ूबसूरत है उसकी मारिफ़त शहद से ज़्यादा मीठी है मगर उसको दिल में मख़फ़ी रखना बाल से ज़्यादा बारीक है। हज़रत जिब्रील ने फरमाया जन्नत तश्त से ज़्यादा ख़ूबसूरत है उसकी नेमतें शहद से ज़्यादा मीठी हैं मगर उसे हासिल करना बाल से ज्यादा बारीक़ है, सिराते मुस्तकीम पर चलना बाल से ज़्यादा बारीक है। (इस्लामी तारीखे आलम, पेज, 354)

Iman Ki Ahmiyat

ईमान की अहमियत

ईमान की अहमियत

आज मुसलमानों को दीनदार बनकर अपना ईमान मजबूत करने की जरूरत है । ये बात समझ लेना चाहिए कि दुनियादारी के वजह से ईमान व अक़ीदे में कमजोरी और बिगाड़ पैदा हुआ और कमजोर ईमान के सबब ज़हालत व बदअमालियां और मुआशरे में तमाम खराबियां, बुराइयाँ और गुमराहियाँ पैदा हुई है नतीजतन अल्लाह का अजा़ब, दुश्मने इस्लाम (कुफ्फार) के हौसले बढ़े,नफ्स और शैतान गालिब हुए, ज़ालिम बादशाह मुसल्लत किये गए, भगवा लव ट्रेप, मोबलीचिंग और यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड जैसे मामले पैदा हुए, आपसी महब्बत खत्म हुई, बालितो से जिहाद व मुखालफल के बजाय इत्त्तेहाद और मुहब्बत की चाहत है । तमाम हालात का ईलाज यही है कि दुनियादारी को तर्क किया जाए और दीनदारी की चाहत दिल में पैदा करके ईमान, इल्म व अमल में दुरूस्तगी और मज़बूती लाए।

कम ईमान की अहमियत

हज़रते इब्ने मस्ऊद से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ने फ़रमाया जिस के दिल में राई के दाने के बराबर भी ईमान होगा वोह जहन्नम में दाखिल नहीं होगा और जिस शख़्स के दिल में राई के दाने के बराबर तकब्बुर होगा वोह जन्नत में दाखिल नहीं होगा। (मुस्लिम शरीफ)

भलाई ईमान लाने में है

अल्लाह फ़रमाता है : (तर्जमा कंज़ुल ईमान) : ऐ लोगो तुम्हारे पास ये रसूल हक़ के साथ तुम्हारे रब की तरफ़ से तशरीफ़ लाए तो ईमान लाओ अपने भले को ।  (सूरह निसा, आयत नं. 170)

निजात का ज़रिया ईमान है
हुज़ूर दाता गंज बख़्स हजवेरी की किताब, कशफुल महजूब जो तसव्वुफ़ की किताब है के तीसरा कश्फ मे अहले सुन्नत व जमात का अक़ीदे की मुताबिक लिखते है : “ अज़ाबे इलाही से महफूज़ रहने का ज़रिया ईमान है न कि अमल?अगरचे अमल भी मौजूद हो। जब तक ईमान व अक़ीदा न हो तो अमल फायदा नहीं पहुंचाता। लेकिन जब ईमान मौजूद हो अगरचे नेक अमल मौजूद न हो तो आखि़र में वह निजात पायेगा अगरचे यह बात मुसल्लम है कि निजात यानी बख्शिश अल्लाह के हुक़्म से ही होगी। अगर अल्लाह चाहे तो वह अपने फ़ज़्ल से दरगुज़र फ़रमाये या हुज़ूरे अकरम ﷺ की शफाअत से बख्श दे या चाहे तो उसके जुर्म के मुताबिक सज़ा दे और दोज़ख में भेज दे फिर सजा काटने के बाद बंदे को जन्नत में दाल दिया जाये। लिहाज़ा दुरुस्त ईमान व अक़ीदा वाला अगरचे अमली तौर से मुजरिम होतो हमेशा दोजख में न रहेगा और वोह अमल वाले जो वे बेईमान या बदअकीदा हैं जन्नत में नहीं जायेंगे। इससे मालूम हुआ कि अमल महफूज़ रहने का अस्ल ज़रिया नहीं है। हुजूर अकरम ﷺ का इरशाद है कि-
“तुम में से कोई भी अपने अमल की वजह से हरगिज़ निजात नहीं पायेगा । (काशफुल महज़ूब, पेज 387, हिन्दी)
असल ईमान सिर्फ तस्दीक़ का नाम है यानी जो कुछ अल्लाह जल्ला व आ’ला व रसूल ﷺ ने फ़रमाया उसको दिल से हक़ मानना जैसा कि क़ुरआन में अल्लाह फ़रमाता है : (तर्जमा) “ईमान वाले तो वही हैं जो अल्लाह और उसके रसूल पर यक़ीन लाए“ (कन्जुल ईमान, सूरह नूर, आयत न. 62)

ईमान का ताअल्लूक दिल से है

क़ुरआन में है (तर्जुमा) : जो ईमान लाकर अल्लाह का मुनकिर (न मानने वेला) हो सिवा उसके जो मजबूर किया जाए और उसका दिल ईमान पर जमा हुआ हो हाँ वो जो दिल खोलकर काफ़िर हो उनपर अल्लाह का ग़ज़ब है। (सूरह नहल, आयत न. 106)

ईमान के बदौलत ज़न्नत में दाख़ला 

सय्यिदुना अबू हुरैरा रदीअल्लाहो त’आला अनहो फरमाते हैं, हम जंगे हुनैन में थे के सय्यदे आलम ने एक कलीमा गो (कलीमा पढ़ने वाला) शख्स के मुतल्लिक फ़रमाया के ये दोज़खी है और जब जंग शुरू हुई तो वो शख़्स काफ़िरों से ख़ूब लड़ा और ख़ूब जौहर दिखाये, ये मंज़र देख कर एक साहबी ने दरबारे रिसालत में हाज़िर हो कर अर्ज़ किया या रसूलल्लाह! जिस शख्स के मुतल्लिक (संबंधित) आपने फ़रमाया के ये दोजखी है वो तो इस्लाम की तरफ से काफिरों के साथ खूब लड़ रहा है हत्ता के वो जख्मो से चूर हो चूका है, ये सुन कर फ़रमाया: हां! खबरदार! बेशक वो दोज़खी है रसूलुल्लाह का ये इरशाद सुन कर करीब था के कुछ लोग शको शुबा में मुबतला हो जाते, इसी असना (वक़्त) मैं शख़्से मज़कूर को जब ज़ख़्मो की तकलीफ़ ज़्यादा हुई तो उसने ख़ुदकुशी कर ली और हराम मौत मर गया ये देख कर लोग हिम्मत और दरबारे रिसालत में हाज़िर हो कर अर्ज़ किया या रसूलल्लाह अल्लाह त’आला ने आपकी बात को मजबूत साबित कर दिया, ये सुन कर। हुज़ूर ने फ़रमाया: यानी ऐ बिलाल उठ और एलान कर दे के जन्नत में वही जा सकता है जो ईमान वाला हो (सुन्नी अक़ाइद, पेज २)

हिकायत : ईमान जन्नत जाने का ज़रिया
बसरह के क़रीब हज़रत मालिक बिन दीनार रदीयल्लाहु अन्हु ने देखा कि एक जनाज़े को महज़ चार लोग लिये जा रहे थे, उनको पांचवां सहारा देने वाला कोई नहीं है। हजरत मालिक बिन दीनार जा पहुंचे और पूछा भई क्या बात है सिर्फ आप ही लोग हैं पांचवां कोई नहीं? जवाब यह शख्स नेहायत बदकार और गुनहगार था।
हज़रत मालिक बिन दीनार रदियल्लाहु अन्हु ने मिलकर इन चारों के साथ उनकी नमाज़े जनाज़ा पढ़ी और अपने हाथों से उसे कब्र मे उतारा और तदफ़ीन के बाद क़रीब ही एक दरख़्त के साये में जा लेटे । गुनूदगी छाई और इसकी क़ब्र का सारा माजरा मुलाहज़ा फरमाया दो फरिश्ते 1 क़ब्र शक़ करके अन्दर दाखिल हुए। एक ने दूसरे से कहा इसे अहले जहन्नम में लिखो इसका कोई उज़वे बदन गुनाहों से बरी नहीं। दूसरे ने कहा जरा इसकी आँखों पर गौर करो देखो इसकी अांंखे अमले हराम और बदनज़री से लब्रेज़ हैं, और कान? कान मुनकिरात और हराम सुनने के अरतकाब से भरे हुए हैं, जरा ज़बान पर भी तवज्जोह दो, ज़बान भी हराम ख़ोरी की तलवीष से पुर है और इसके हाथों का क्या हाल है, बदकारी की ज़ुल्मत हाथों में भी पाई जाती है। आखरी हिस्सा बदन पाँव को भी देखो ? इसके तो पाँव भी नापाक रूख पर जाने के ऐब से वज़नी हैं। अब पूछने वाला फरिश्ता खुद मुर्दे के क़रीब आकर उसके दिल पर गौर करने लगा और उसने कहा मगर इसका दिल तो ईमान से भरा हुआ है। इसको मरहूम और नेक लिखना चाहिये क्योंकि अल्लाह त’आला का फज़लों करम इसकी मआसियातों और गलतियों को माफ फरमा देगा।(क़ब्र की पहली रात, पेज 45)

ईमान वालों के दर्जे बुलंद होंगे

अल्लाह ईमान वालों के और उनके जिन को इल्म दिया गया दर्जे बुलन्द फ़रमाएगा। (सूरह मुजादला, आयत न. 11)

ईमान वालों को अल्लाह अज़ाब नहीं देगा

अल्लाह फ़रमाता है : (तर्जमा कंज़ुल ईमान) : अल्लाह तुम्हें अज़ाब देकर क्या करेगा अगर तुम हक़ मानो और ईमान लाओ।(सूरह निसा, आयत 147)

अल्लाह मोमिनों पर फ़ज़्ल करता है

कुरअ़ान में हैः अल्लाह मोमिनों पर फ़ज़्ल करता है।(सूरह इमरान, आयत न. 152)

ईमान वालों को मर्तबा दिया जाएगा?

अल्लाह फ़रमाता है (तर्जमा ) : अगर तुम्हें कोई तकलीफ पहुँची तो वो लोग भी वैसी ही तकलीफ पा चुके हैं और ये दिन है जिनमें हमने लोगों के लिये बारियाँ रखी है और इसलिये कि अल्लाह पहचान करा दे ईमान वालों की, और तुम में से कुछ लोगों को शहादत का मरतबा दे और अल्लाह दोस्त नहीं रखता ज़ालिमों को।(सूरह इमरान, आयत न. 140)

ये उम्मत नमाज़ रोज़े की ज्यादती के वजह से जन्नत में नही जाएगी

फरमाने मुस्तफा ﷺ है, मेरी उम्मत के लोग जन्नत में नमाज़ व रोज़ों की ज्यादती से नहीं बल्कि दिलों की सलामती, सखावत और मुसलमानों पर रहम करने की बदौलत दाखिल होगे। (मुकाशफूतुल क़ुलूब, बाब 18, पेज 130)

ईमान की ताकत सबसे बड़ी है

अल्लाह फ़रमाता है : न सुस्ती करो और न ग़म खाओ तुम्ही ग़ालिब आओगे अगर ईमान रखते हो (कन्जुल ईमान, सूरह इमरान, आयत न 139)

ईमान वालों पर शैतान का क़ाबू नहीं

बेशक उसका (शैतान काकोई क़ाबू उनपर नहीं जो ईमान लाए और अपने रब ही पर भरोसा रखते हैं। (सूरह, नहल, आयत 99)

मोमिन शैतान को रूला देता है

हदीस : जब शैतान किसी बंदा ए मोमिन को फ़ितने में मुब्तला नही कर पाता है तो बहुत रोता हैः हज़रते सफवान अपने एक शैख़ से रिवायत करते हैं, उन्होंने फरमायाः जब कोई मोमिन दुनिया मे शैतान के फ़ितने में मुब्तला हुए बग़ैर मर जाता है तो शैतान इस पर खूब रोता है। (मकाइदुश्शैतान, पेज 37)

शैतान से ईमान वालों की हिफा़ज़त

हदीसः शैतान से अल्लाह पाक के फरिश्ते मो’मिन की हिफा़ज़त करते हैंः हज़रते अबु उमामा रदी़अल्लाहु अ़न्हु से रिवायत है, उन्होंने कहा नबीए पाकﷺ ने इरशाद फ़रमायाः हर मोमिन बंदे के साथ 360 फरिश्ते मुक़र्रर है जो उसकी उन तमाम चीज़ों से हिफा़ज़त करते रहते हैं जिन पर वोह क़ुदरत नही पाता, सात फ़रिश्ते इंसान की उसी तरह हिफाज़त करते हैं जैसे मौसमे सरमा में शहद के प्याले को मक्खियों से बचाया जाता है। अगर वह फरिश्ते ज़ाहिर हो जाएं तो तुम उन्हें हर नरम और सख़्त ज़मीन पर हाथ को फैलाए हुए और मुंह को खोले हुए देखोगे। अगर बंदा एक लम्हे के लिए अपनी हिफाज़त करने पर मुक़र्रर कर दिया जाए तो शयातीन उसे उचक लेंगे। (मकाइदुश्शैतान, पेज 37)

ईमान वालों के लिए अमान

अल्लाह फ़रमाता है : (तर्जमा कंज़ुल ईमान) : वो जो ईमान लाए और अपने ईमान में किसी नाहक़ (बातिल) चीज़ की आमेज़िश (मिलावट) न की उनहीं के लिये अमान (हिफाज़त) है और वही राह पर हैं। (सूरह अन’आम, आयत न. 82)

ईमान वालों के लिए हिदायत

क़ुरआन में है : (तर्जमा) हिदायत और रहमत ईमान वालों के लिये । (सूरह नहल, आयत 64)

ईमान वालों के लिए साबित कदमी

क़ुरआन से ईमान वालों को साबित क़दम करे और हिदायत और बशारत ईमान वालों को। (सूरह नहल, आयत न. 102)

ईमान के बदौलत साबित कदमी

अल्लाह साबित रखता है ईमान वालों को हक़ बात पर दुनिया की ज़िन्दगी में और आख़िरत में। (सूरह इब्राहिम, आयत न. 27)

ईमान वालों के लिए अच्छी ज़िन्दगी 

जो अच्छा काम करे मर्द हो या औरत और हो ईमान वाला तो ज़रूर हम उसे अच्छी ज़िन्दगी जिलाएंगे और ज़रूर उन्हें उनका नेग देंगे जो उनके सब से बेहतर काम के लायक़ हों। (सूरह नहल, आयत न. 97)

ईमान वालों के लिए जन्नत

अल्लाह फ़रमाता है : (तर्जमा कंज़ुल ईमान) : जो ईमान लाए और ताक़त भर अच्छे अमल किये हम किसी पर ताक़त से ज़्यादा बोझ नहीं रखते, वो जन्नत वाले हैं उन्हें उस में हमेशा रहना (सुरहः अराफ़, आयत न. 42)

मोमिन की इज़्ज़त का’बे से ज़्यादा है

हज़रते अब्दुल्लाह बिन उमर रदीअल्लाहु त’आला अन्हुमा फरमाते हैं मैंने हुजूर सैय्यदे आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम को देखा कि काबा मुअज्जमा का तवाफ़ करते और फ़रमातेः ऐ काबा तू कितना पाकीज़ा है और तेरी खुशबू कितनी पाकीज़ा है, तू कैसा अज़ीम है और तेरी हुर्मत कितनी बड़ी है, क़सम उसकी जिसके कब्ज़-ए-कुदरत में मुहम्मद (सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम) की जान है बेशक अल्लाह तआला के नज़दीक मोमिन की इज़्ज़त तेरी इज़्ज़त से बहुत ज़्यादा है। (फ़ैज़ाने आला हज़रत, पेज न. 79)

ईमान वालों की वजह से दुनिया आबाद है

अगर दुनिया ईमान वालो के वजूद से ख़ाली हो जाती तो ज़मीन वाले हलाक व बरबाद हो जाते अहले ईमान की बरकत से यह दुनिया हलाक न हुई। (फैजाने आला हज़रत, पेज 79)
हदीस में है रू-ए-ज़मीन पर हर ज़माने में कम से कम सात ईमान वाले ज़रूर रहे हैं ऐसा न होता तो ज़मीन व अहले ज़मीन सब हलाक हो जाते। (बुखारी)

दूसरी हदीस में है नूह अलैहिस्सलातु वस्सलाम के बाद जमीन कभी सात मोमिनों से खाली न हुई जिनके सबब अल्लाह तआला अहले जमीन से अज़ाब दफा फरमाता है। (मुसन्निफ अब्दुर्रज़्ज़ाक़) (फ़तावा रज़विया जिल्द 11, पेज 155)

ईमान वालों के अमल की क़द्र किया जाएगा

अल्लाह फ़रमाता है : तर्जमा : जो कुछ भले काम करेगा मर्द हो या औरत और हो ईमान वाले तो वो जन्नत में दाखि़ल किये जाएंगे और उन्हें तिल भर नुक़सान न दिया जाएगा (कंज़ुल ईमान, सुरह निसा, आयत न. 124)ईमान की अहमियत

हज़रते इब्ने मस्ऊद से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ने फ़रमाया जिस के दिल में राई के दाने के बराबर भी ईमान होगा वोह जहन्नम में दाखिल नहीं होगा और जिस शख़्स के दिल में राई के दाने के बराबर तकब्बुर होगा वोह जन्नत में दाखिल नहीं होगा। (मुस्लिम शरीफ)

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Iman Ki Haqiqat I ईमान की हक़ीक़त

ईमान की हक़ीक़त

ईमान की हक़ीक़त

ईमान इंसानी दिल के अंदर एक खस्लत का नाम है जिसके बाइस इंसान इस क़ाबिल बनता है कि उससे अल्लाह राज़ी हो जाता है, वो अश्रफ़ुल मख़लूक़ात कहलाता है। रहम दिली, अक़्ले सलीम, इल्मे नाफ़े और अमले सालेह के हुसूल , हुक़ूकुल्लाह और हुक़ूकुल इबाद की अदाएगी में खुलूस, कमाल और कबूलियत इसी ईमान के सबब हो सकते हैं। दरअस्ल ईमान वालों के साथ अल्लाह की मदद, उसकी रहमत और क़ुव्वत होती है। ईमानी खस्लतें शैतानी और नफ़्सानी खस्लतों के बर अक्स है यानी जिस इंसान के अंदर ईमानी खस्लतें जिस क़दर हों उससे शैतानी और नफ़्सानी खस्लतें उसी क़दर दूर होंगी। अगर इंसान की गफ़लत या गलती की वजह से शैतानी और नफ़्सानी खस्लतें उसमें पैदा होने लगे तो उसमें ईमान की शाख़ें ख़ुद ब ख़ुद मुरझाने लगेंगी और नतीजा येह होगा कि ईमान का दरख़्त या तो कमज़ोर पड़ जाएगा या बिल्कुल ख़त्म हो जाएगा। लेकिन ऐसा किसी के साथ तब होगा जब वोह इंसान अपने वजूद को भूल जाए, आख़िरत को तरजीह देना छोड़ दे, अल्लाह और उसके रसूल के फ़रमान से मुँह मोड़ ले, ख़ालिक़ से डरने की बजाए मख़लूक़ से डरे, अल्लाह और उसके रसूल से सबसे बढ़कर मुहब्बत करने की बजाए दुनिया और दुनियवी चीज़ों से ज़्यादा मुहब्बत करे। ऐसे हालात में अल्लाह की नाराज़गी के सबब अल्लाह के हुक़्म से इंसान के अंदर शैतानी और नफ़्सानी खस्लतों का ग़लबा वाके होगा नतीजतन इंसान नाक़िसुल ईमान या बेईमान बन कर रह जाएगा जिसकी अलामत उसका अमल ही होगा यानी ऐसा अमल जो शरीयत व सुन्नत के खिलाफ़ उससे सादिर होगा।
वल्लाहु आलम

ईमान मानने का नाम है

ईमान मानने का नाम है यानी हक़ को हक़ और बातिल को बातिल मानने का नाम ईमान है जिसका ताअल्लुक़ दिल से है । हुज़ूरे अक़दस सल्लल्लाहु त’आला अलैहि व सल्लम खुदा की तरफ से जो लेकर आए जैसे तौहिद (यानी अल्लाह के जात, सिफात, अफ्आल, अहक़ाम के बारे अका़इद ) और रिसालत (यानी अल्लाह के रसूल ﷺ के जात, सिफात, अफ्आल, अहक़ाम के बारे अका़इद ),आसमानी किताबों, फरिश्तों, अच्छे बुरे तक़दीर, आखि़रत, क़यामत ये तमाम हक़ है इन सबको दिल से मान लेने का नाम ईमान है और इंकार करने का नाम कुफ्र है । ईमान एक बड़ी दौलत है जिसे यह मिल जाए वह बड़ा खुश नसीब है और उसकी हलावत व लज्ज़त से जो आशना हो जाए वह दुनिया से बेनियाज़ व ला तअल्लुक़ हो जाता है।

क़ुरआन में है : रसूल ईमान लाया उसपर जो उसके रब के पास से उस पर उतरा और ईमान वाले सब ने माना ,अल्लाह और उसके फ़रिश्तों और उसकी किताबों और उसके रसूलों को , यह कहते हुए कि हम उसके किसी रसूल पर ईमान लाने में फ़र्क़ नहीं करते, और अर्ज़ की कि हमने सुना और माना। (कंजूल ईमान, सूरह बक़रह, आयत न. 285)

ईमाने मुजमल 

امَنتُ بِاللَّهِ كَمَا هُوَ بِأَسْمَائِهِ وَصِفَاتِهِ وَقَبِلْتُ جَمِيعَ أَحْكَامِهِ إِقْرَارُ بِاللَّسَانِ وَتَصْدِيقُ بِالْقَلْبِ 

तर्जुमा :– मैं ईमान लाया अल्लाह पर जैसा कि वोह अपने नामों और अपनी सिफ्तों के साथ है और मैं ने कुबूल किये उस के तमाम अहकाम मुझे इस का ज़बान से इकरार है और दिल से यकीन ।

 

ईमाने मुफस्सल (7 बातों पर ईमान लाना)
امَنتُ بِاللهِ وَمَلئِكَتِهِ وَكُتُبِهِ وَرُسُلِهِ وَالْيَوْمِ الْآخِرِ وَالْقَدْرِ خَيْرِهِ وَشَرِّهِ مِنَ اللَّهِ تَعَالَى وَالْبَعْثِ بَعْدَ الْمَوْتِ

“आमन्तु बिल्लाहि व मलाइकतिही व कुतुबिही व रूसुलिही वल यौमिल आखिर वल क़दरि खैरिही व शर्रिही मिनल्लाहि त’आला वल बअसि बा’दल मौत“
तर्जुमा :– मैं ईमान लाया अल्लाह पर और उस के फरिश्तों पर। और उसकी किताबों पर। और उसके रसूलों पर और आखि़रत के दिन पर । और उस पर कि अच्छी और बुरी तक़दीर का खालिक़ अल्लाह है। और मौत के बाद उठाऐ जाने (कियामत) पर ।

इल्म (जानने) का नाम ईमान नहीं

हुज़ूर अब्दुल हक़ मोहद्दीस देहलवी तहरीर फ़रमाते है ये बात भी ज़ेहन नशीन करनी चाहिए के नबीए करीम ﷺ को सिर्फ सच्चा नबी जान लेने का नाम ही ईमान नहीं बल्कि दिल से उसकी तस्दीक़ करना भी ज़रूरी है क्योंकि इल्म (यानी जानना) और चीज़ है और तस्दीक़ (यानी मानना) और चीज़ है। तस्दीक़ (मानने) का ताल्लुक़ दिल से है जबकि जानने (इल्म) का ताल्लुक़ अक़्ल से है)। हकीकत में दिल रंगे कबूल से रंगा जाता है और नूरे यक़ीन से मुनव्वर हो जाता है। इल्म सिर्फ जानने को कहते है। तमाम कुफ़्फ़ारे अरब बिल ख़ुसूस अहले यहूद तो हुज़ूर ﷺ को सच्चा नबी जानते थे और ये इल्म इतना मज़बूत था जैसे के वो अपने बेटे को पहचान रहे हो। क़ुरआन में है (तर्जुमा) : वो (नबी ﷺ को) ऐसे पहचानते है जैसे अपने बेटे को। हुज़ूर ﷺ के पैदा होने की खबरें, आप की सूरत व सीरत, आदत व ख़साइल, नाम व निशान, मकामे पैदाईश यहूद की किताबो में लिखा था। उनकी ज़बानो पर जारी था। बहुत से यहूदी इसी इंतजार में दुनिया के मुख्तलिफ मुमालिक से उठ कर मदीने में आबाद हो गए थे और अपनी उमरें इसी शौक़ में गुज़ार दीं और मरने से पहले अपनी औलादों को वसिय्यत करते रहे कि अगर नबी ﷺ आखि़रुज़्ज़मां तशरीफ लाए तो हमारा सलाम पहुँचाओ, हमारे इस्लाम लाने की ख्वाहिश का इज़हार करो। गर्ज़ के यहूद से बढ़ कर हुज़ूर ﷺ के मुतअल्लिक़ किसी दूसरे फिरके को इल्म न था। मगर जब नबूवत का आफताब तुलू हुआ यहूदियों की सक़ावते अज़ली ने इनकी अक़्लो पर पर्ददे डाल दिए और हसद व इनाद से हकीकते हाल को न पा सके। कुफ़्र व इनकार के गढ्डों में गिर गए और निजात की सारी रहो से महरूम हो गए (इस दौर में वहाबी देवबंदी और तमाम बतिल फिरके क़ुरआन और हदीस के मुताबिक नबी और औलिया की शान व अज़मत को तो जानते जरूर है लेकिन मानते  नही जैसे इल्मे ग़ैबे मुस्तफ़ा, हाज़िर व नाज़ीर, इख़्तियार वाला, हुज़ूर का वसीला, हयात, सफाअते मुस्तफ़ा, मज़ार, करामात वग़ैरह )।
इस से ये बात भी सामने आ जाती है के इल्म व अक़्ल बग़ैर इनायते इलाही अज़्ज व जल्ल और हिदायते खुदा वंदी के किसी काम नहीं आते और उसका कुछ भी असर नहीं होता। (तकमीले ईमान, पेज 113)

अमल (करने का नाम) ईमान नहीं

अमले जवारेह (ज़िस्मानी ज़ाहिरी अमल ) यानी हाथ पैर वग़ैरह से किए जाने वाले अमल या काम (जैसे, नमाज़, रोजा, तिलावत, तस्बीह वगैरह ) ईमान के अन्दर दाखिल नहीं है।(बहारे शरीयत, हिस्सा 1, ईमान व कुफ़्र का बयान, पेज 48, हिन्दी)

असल नेकी ईमान और ईमान की खसलतें हैं
अल्लाह फ़रमाता है (तर्जमा) : कुछ असल नेकी येह नहीं कि मुँह मशरिक़ या मग़रिब की तरफ़ करो हाँ असल नेकी येह कि ईमान लायें अल्लाह और कयामत और फरिश्तों और किताब और पैग़म्बरों पर और अल्लाह की महब्बत में अपना प्यारा माल खर्च करे रिश्तेदारों और यतीमों और मिस्कीनों और राहगीर और साइलों को और गरदने छुड़ाने में और नमाज़ कायम रखें और ज़कात दें और जब अहद करें तो अपना कौल (वादा) पूरा करने वाले और मुसीबत, सख्ती में और जिहाद के वक़्त सब्र वाले यही हैं जिन्होंने अपनी बात सच्ची की और यही परहेज़गार है। (सूरह बक़रह, आयत न. 177)

नमाज व रोज़ा ईमान का हिस्सा नहीं

अकीदा :- अस्ले ईमान सिर्फ तस्दीक़ का नाम है यानी जो कुछ अल्लाह व रसूल  ﷺ ने फ़रमाया है उसको दिल से हक़ मानना । आ’माल (यानी नमाज़, रोज़ा वग़ैरह) ईमान का हिस्सा नहीं। (बहारे शरीयत, हिस्सा 1, ईमान व कुफ़्र का बयान, पेज 47, हिन्दी)

वोह नमाज़ी जो मोमिन नहीं

हज़रत अब्दुल्लाह बिन अम्र (रजिअल्लाहु तआला अन्हुमा) से रिवायत है कि नबी अकरम (सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया कि लोगों पर एक ऐसा ज़माना भी आयेगा कि वो मस्जिदों में इकट्ठे होंगे और बा जमाअत नमाज़ पढ़ेंगे लेकिन उनमें मोमिन न होगा। (इब्ने अबी शैबा 6/163-हदीस 30355,  (इमाम हाकिम-अल इमाम मुस्तदरक- 4/489-हदीस-8365)

रोज़ा ईमान का हिस्सा नहीं

हदीस 1 : अगर कोई शख्स झुट बोलना और दगा बाज़ी करना न छोड़े तो अल्लाह को इसकी कोई ज़रूरत नही की वो खाना पीना छोड़ दे यानी रोजा रखे। (बुखारी शरीफ)

हदीस 2 : बहुत से रोज़ेदार ऐसे है जिन्हें उनके रोज़े से सिवाय भूख और प्यास के कुछ हासिल नहीं होता । (सिर्रुल असरार, बाब 17,  पेज 100 )

ईमान, इल्म और अमल
इल्म और अमल, ईमान के ताबे है बग़ैर ईमान के इल्म और अमल बेकार और बग़ैर इल्म व अमल के ईमान नाक़िस (कमजोर) । ईमान दिल से मानने को कहते है, इल्म अक़्ल से जानने को कहते है और अमल जिस्म से करने को कहते है लिहाज़ा इल्म व अमल के बग़ैर दिल से मानना मुमकिन है लेकिन ईमान पर क़ायम रहना मुश्किल है नतीजतन ईमान का नाक़िस होने का अंदेशा है। जैसा कि अब्दुल हक़ मोहद्दीस देहलवी तहरीर फ़रमाते है कि
ईमान बे अमल नाकिस होता है। लेकिन असल ईमान तो तस्दीक बिल कल्ब ही है । ईमान उस दरख़्त की तरह जानना चाहिए जिस का तना तस्दीक है। आ’माल व ताआत इसी तस्दीक का नतीजा होते है। जिस दरखत की टहनियां, पत्ते फल फूल और बर्ग व बार न हो।हकीकत में वो दरखत कहलाने का मुस्तहिक़ नहीं है। लेकिन काम का दरखत वही होता है जिसके बर्ग व बार भी हो। इसी तरह ईमाने कामिल वही है जो नेक अमाल से बर्ग व बार से पुर रौनक़ हो। बे अमल नाकिसे ईमान होगा। नाकिस ईमान को भी ईमान ही कहा जायेगा। कुरान पाक में अकसर जगह ईमान के साथ अमले सलेह को मिलाया है।
तर्जुमाः जो लोग ईमान लाए और नेक काम करते रहे
इस आयते करीमा से ये ज़ाहिर होता है कि असल ईमान की तस्दीक़ है और अमले सालेह जुदा चीज़ है। अगरचे ईमान को कामिल करने वाला यही उन्सुर है। इसकी मिसाल यूँ ज़ेहन नशीन करनी चाहिए के फलां के पास येह चीज़ भी है और वो भी। इससे ये समझा जायेगा के उसके पास दोनो चीज़ें है। मगर वो दोनों जुदा जुदा है। चुनाँचे दोंनों को एक कहना दुरुस्त नहीं और जो दोनों को एक समझते है वो ग़लती पर है। (तकमीले ईमान, पेज 113)

नबी ﷺ की मुहब्बत व इश्क़ कामिल ईमान है

प्यारे नबी ﷺ फरमाते हैंः  तर्जमाः “तुम में कोई मोमिन न होगा जब तक मैं उसके माँ, बाप, औलाद और सब आदमियों से ज़्यादा प्यारा न हो जाऊँ।“

मुहम्मद है मताए आलम ईजाद से प्यारा

पिदर, मादर, बिरादर, जानो माल से प्यारा

आ’ला हज़रत अपनी किताब तमहीदे ईमान में लिखते है यह हदीस सहीह बुख़ारी व सहीह मुस्लिम में अनस इब्ने मालिक अंसारी रदीअल्लाहु त’आला अन्हु से मरवी है इसमें तो यह बात साफ फ़रमा दी कि जो हुजूरे अक़दस ﷺ से ज़्यादा किसी को अज़ीज़ (महबूब) रखे हरगिज़ मुसलमान नहीं। मुसलमानों कहो मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह ﷺ को तमाम जहान से ज़्यादा महबूब रखना मदारे ईमान व मदारे नजात हुआ या नहीं? कहो हुआ और ज़रूर हुआ। यानी उन्ही की मुहब्बत ईमान है और उसी से नजात हासिल होगी। (तम्हीदे ईमान, पेज 6)

हुज़ूर ﷺ की मुहब्बत ही ऐने (असल) ईमान क्यों?

इस उम्मत में एलाने नबूवत से पहले और तौहीद (अल्लाह कौन है,उसकी ज़ात और सिफ़ात क्या हैं) की दावत से पहले हुज़ूर ﷺ ने अपने अख़लाक़, अपने अफ़आल व अक़वाल से अपने आप (ज़ात व सिफ़ात) को मनवाया कि मैं अल्लाह का रसूल हूं और मैं अल्लाह की जानिब से हक़ लेकर आया हूँ (यानी ईमान बिन्नबी यानी नबी पर ईमान लाना)। उस वक़्त और उसके बाद जितने लोग हुज़ूर ﷺ से मुहब्बत करने वाले थे सभी ने हुज़ूर ﷺ की बातों को दिल से माना और अहले ईमान में शुमार हुए मगर वो लोग जो हुज़ूर ﷺ से बुग्ज़ रखते वो शक में पड़े और हुज़ूर ﷺ की अफ़आल व अक़वाल जानने के बावजूद उनकी ज़ात व सिफ़ात मानने से इनकार कर गए । पता चला मुहब्बत करने वाले अपने महबूब पर कमी, ख़ामी या शक का इज़हार नहीं करते और उनकी हर ज़ाहिरी व बातिनी अदा (ज़ात व सिफ़ात) को बिना देखे दिल से मान लेते है । वाज़ेह हुवा की अल्लाह पर ईमान लाने से पहले हुज़ूर ﷺ पर ईमान लाना शर्त है और हुज़ूर ﷺ पर ईमान लाने के लिए हुज़ूर ﷺ की ज़ात व सिफ़ात को मानने के साथ उन तमाम बातों को मानना ज़रुरी जो अल्लाह की ज़ानिब से हुज़ूर ﷺ ले कर आये और साथ ही उनकी बताई हुई बातों पर बिला शुबह ईमान लाने के लिए हुज़ूर ﷺ की मुहब्बत शर्त है। बगैर महब्बत किये हुज़ूर ﷺ की तमाम बातों को मानना मुमकिन नहीं शैतान ज़रूर शक में डाल कर ईमान दिल से निकाल लेगा। शरई मसला है ज़रुरियाते दीन में बात का भी इंकार और ज़र्रा बराबर भी तौहीन कुफ़्र है।

तमाम असहाब पहले हुज़ूर ﷺ पर ईमान लाये फिर हुज़ूर ﷺ के बताने से अल्लाह और अल्लाह की किताब, रसूलों,  फ़रिश्तों, क़यामत, तक़दीर, आखि़रत, मरने के बाद उठाये जाने पर ईमान लाये।

वहीं तमाम बदमज़हबों का हाल ये है कि हुज़ूर ﷺ की बातों पर ईमान लाते है लेकिन शक व शुबहात के साथ और हुज़ूर ﷺ की सिफ़ात में से बहुतर सारी ख़ूबियों पर ईमान लाने से इनकार करते हैं जैसे आपके इल्मे ग़ैब, आपके हाज़िर व नाज़िर होना, आपका वसीला लेना, आपके इख़्तियार, आपके नूर होने, निदाए या रसूलल्लाह, आपके नाम पर अंगूठा चूमना, आपकी क़ब्र ए अतहर पर हाज़री देना, आप पर सलाम पढ़ना, मीलाद मनाना, जुलूस निकालना वग़ैरहुम पर ऐतराज़ करना वहाबियों के अक़ीदे की ख़राबी है और अमल में तअ़ज़ीमें नबी (जो ईमान है) से इनकार करते है। हुज़ूर ﷺ की ताअ़ज़ीम न करना इस बात की दलील है की हुज़ूर ﷺ से मुहब्बत नहीं है। अगर मोहब्बत होती तो हर हाल में तअ़ज़ीम करते जैसा कि असहाब की जमात किया करती थी।

खुदा की रज़ा चाहते हैं दो आ़लम

खुदा चाहता है रज़ाए मुह़म्मद ﷺ

कामिल ईमान की मिसाल और ईमान की शाख़ें

हुज़ूरे अकरम ﷺ से इश्क़ व मुहब्बत ईमान की दरख़्त है और इस दरख़्त की छोटी बड़ी बहुत सी टहनियाँ और शाखें है जिनका ज़िक्र हदीस में 60 या 70 से ज्यादा है इन्ही शाखों की वजह से वह दरख्त हरा भरा सायादार इन्तिहाई खुशनुमा और निहायत ही हसीन व खूबसूरत नज़र आता है। यही मिसाल कामिल ईमान की है कि छोटी बड़ी बहुत से खसलतें हैं कि जिनकी वजह से ईमान की रौनक और खूबी में चार चाँद लग जाते हैं और उसके असरात और समरात की बदौलत साहिबे ईमान की ज़िन्दगी दोनो जहान में हुस्न व जमाल का एक ऐसा जाज़िब नज़र मुरक्कअ बन जाती है कि वह तमाम मखलूक़ की निगाहों में साहिबे वक़ार और काबिले ऐतिबार हो जाता है और दरबारे खुदावन्दी में अज़मते दारैन का हक़दार बन जाता है। लेकिन अगर दरख़्त ही न हो यानी नबी ﷺ से इश्क़ व मुहब्बत ही न हो तो ईमान की शाख़ें कैसी और शाख़ें न होगी तो आ’माल यानी नमाज़, रोज़ा वगैरह का कोई असल नहीं यानी सब बेकार।

ईमान की असल व फरअ
वाज़ेह रहना चाहिये कि अहले सुन्नत व जमाअत और अरबाबे तहक़ीक़ व मारिफ़त के दर्मियान इत्तेफाक़ है कि ईमान में असल भी है और फ़रअ भी, असल ईमान दिल से मानना है और उसकी फरअ जिस्मानी आज़ा से अमल करना है। अहले अरब यानी अलग गिरोह का मौकिफ़ है कि वह किसी फुरई बात को बतौर इस्तेआरा असल कहते हैं जैसे कि तमाम लुग़तों में शुआए आफताब को आफताब कहा गया है। इसी लिहाज़ से वह गिरोह अमल को ईमान कहते है। क्योंकि बंदा नेक अमल के बग़ैर अज़ाबे इलाही से महफूज़ नहीं रहता न ही तसदीक़ महफूज रहने की उम्मीद है, जब तक कि वह दिल से तसदीक़ के साथ अहकाम भी न बजा लाये। लिहाजा जिस की ताअतें ज्यादा होंगी वह अजाबे इलाही से ज्यादा महफूज़ होगा। चूंकि तसदीक व कौल के साथ, अमल महफूज़ रहने का ज़रिया है। इसलिए इसको भी ईमान कह देते है (कशफुल महज़ूब हिन्दी, पेज 386)
मशहूर मुसन्निफ़ अब्दुल मुस्तफ़ा आज़मी अलैहिर्रहमह 40 हदीस की शरह वाली किताब “मुन्तख़ब हदीसें“ में तहरीर फ़रमाते हैंः-
ईमान असल है और आमाल उसकी फरअ हैं। इसलिए कि इस हदीस में या दूसरी हदीसों में जहाँ जहाँ भी आमाल को ईमान कहा गया है, मजाज़ के तौर पर कहा गया है। वरना ज़ाहिर है कि आ’माल ईमान का हिस्सा नहीं हैं। क्योंकि कुरआन व हदीस में बे शुमार जगहों पर ’आमेनू व अमेलुस्सालेहात’ (तर्जमा : ईमान लाओ फिर नेक अमल करो) का लफ़्ज आया है और अमल का ईमान पर अत्फ़ किया गया है और अत्फ़ का तक़ाजा यही है कि मातूफ (2 को मिलना जैसे ईमान और अमल) और मातूफ इलैह में तगार हो। (यानी ईमान के साथ अमल को मिला कर बोला गया लेकिन ईमान का दर्जा बुलंद है और अमल ईमान के ताबे यानी गुलाम है, जिस तरह बादशाह और ग़ुलाम में फर्क है उसी तरह ईमान और अमल में फ़र्क़ है ) लिहाजा साबित हुआ कि अमल और चीज़ है और ईमान और चीज़ है। ईमान असल और आ’माल ईमान की ख़सलतें और अलामतें हैं। या यूँ कह लीजिए कि आ’माल ईमान के असरात व समरात (नतीजे) हैं। (मुन्तख़ब हदीसें, पेज 55, हिन्दी)

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