आखि़रत क्या है?
ईमाने मुफ़स्सल में जिन 7 चीज़ों पर ईमान लाने का ज़िक्र है उनमें एक आख़िरत है । जानना और मानना चाहिए कि आखि़रत इंसान का आख़री ठिकाना है । आख़िरत क़ब्र, क़यामत के दिन और उसके बाद जन्नत या दोज़ख़ का नाम है। मौत के बाद इंसान क़ब्र में तब तक रहेगा जब तक क़यामत न आ जाए। क़यामत से पहले इंसान क़ब्र में ही जन्नत या जहन्नम का नमूना चखता रहेगा। क़यामत क़ाइम होने के बाद जन्नत या जहन्नम का फ़ैसला होगा।
जन्नत की ने’मत :* जन्नत में मौत नहीं , जिस तरह इंसान इस दुनिया में एक जगह से दूसरी जगह सफ़र करता है और सफ़र की तकलीफें बर्दाश्त करने के बाद जब अपने घर में दाख़िल होता है तो बहुत आराम महसूस करता है, चैन की नींद सोता है, खाता पीता है और पुर सुकून हो जाता है ठीक उसी तरह येह दुनिया इंसान के लिए मुसाफ़िर ख़ाना है और वोह मुसाफ़िर और इसका ठिकाना आख़िरत में जन्नत है। सफ़र (दुनिया की ज़िंदगी) अगर कामयाब रहा तो इसका ठिकाना आख़िरत में जन्नत होगा जहां बड़े आराम से रहेगा। वहाँ मुसीबत, आज़माइश, परेशानी, खौफ़ व गम की कोई जगह नहीं। लेकिन इस सफ़र में 3 घाटियों से गुज़रना पड़ता है: 1. दुनिया और जों कुछ दुनिया में है यानी दुनिया का फा़नी साज़ो सामान, 2. शैतान और शैतान का लश्कर और 3. नफ्स और इसकी ख्वाहिशात। जो इन से पार हो जाता है वो सिराते मुस्तकीम (सीधा रास्ता) इख़्तियार कर पाता है वरना भटक कर शिर्को कुफ़्र, निफ़ाक़, फिस्क़ व फुज़ूर और गुमरही में मुबतला होकर हलाक हो जाता है।
त़लबे आख़िरत
जानना चाहिए कि दुनियां आखि़रत की खेती है। हम इस ज़िन्दगी में अपने ईमान, इल्म व अमल से जो बोएंगे वही आखि़रत में काटेंगे। अगर हमने इस मुख़्तसर ज़िन्दगी में अपने किमती वक़्त, सेहत और दौलत की क़द्र करते हुए इसे नेकी के कामों में लगाया तो आख़िरत में इसका फल कामयाबी और जन्नत व जन्नती नेअमत की सूरत में मिलेगा और कहा जाएगाः ’’ख़ूब लुत्फ़ अंदोज़ी से खाओ और पियो, उन आमाल के बदले में जो तुम गुज़िश्ता अय्याम में आगे भेज चुके थे’’।(अल हाक़्क़ह) इसके बर अक़्स अगर हम इस ज़िन्दगी में वक़्त की क़द्र नहीं करेंगे और इसे दुनिया हासिल करने, ग़फ़लत और सुस्ती के साथ अल्लाह और रसूलﷺ की नाफरमानी में गुज़ारेंगे तो रौज़े महशर मायूसी और नदामत का सामना करना पड़ेगा और आख़िरत में जहन्नम का हक़दार होना पड़ेगा।
क़ुरआन में अल्लाह फरमाता है : (तर्जुमा) “तुम दुनिया और आख़रित के काम सोच कर करो ” (कंजूल ईमान, सुरह बक़रह, आयत न. 220)
अल्लाह फ़रमाता हैः (तर्जुमा) जो दुनियाँ की ज़िन्दगी और उसकी आराइश चाहता है हम उसे दुनियाँ में पूरा फल देंगे और कुछ भी कमी न करेंगे लेकिन आखिरत में उनका कोई हिस्सा नहीं होगा और उनके लिये आग (जहन्नम) है और उनके आमाल जो वहाँ (दुनिया मे) करते थे सब अकारत (बर्बाद) गये। (कंजूल ईमान, सुरह हूद, आयत न. 15-16)
तख्ली़के जन्नत और जहन्नम’
हज़रते अबू हुरैरह रदिअल्लाहु अन्हु से मरवी है कि अल्लाह के रसूल ﷺ ने फ़रमाया जब अल्लाह त’आला ने जन्नत को तख़लीक़ फ़रमाया तो जिब्रईल अलैहिस्सलाम को हुक्म दिया कि जिब्रईल जाओ और जन्नत को देखो। जिब्रईल अलैहिस्सलाम गए और जन्नत देखी, फिर रब्बे करीम की बारगाह में हाज़िर होकर अर्ज़ किया ऐ परवरदिगार! तेरी इज़्ज़त की क़सम जो भी इसके बारे में सुनेगा वोह इसमें दाखि़ल हो जाएगा, फिर जन्नत को बाज़ मुश्किल आमाल से ढांप कर अल्लाह त’आला ने इरशाद फ़रमाया ऐ जिब्रईल जाओ और जन्नत को (दुबारा) देखो। जिब्रईल अलैहिस्सलाम गए और (दुबारा) जन्नत को देखा, फिर रब की बारगाह में हाज़िर होकर अर्ज़ किया ऐ रब! तेरी इज़्ज़त की क़सम मुझे अंदेशा है कि इसमें कोई दाखि़ल नही हो पाएगा।।
फिर हुज़ूर अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया जब अल्लाह ने दोज़ख को तख़लीक़ फ़रमाया तो जिब्रईल अलैहिस्सलाम से कहा ऐ जिब्रईल जाओ और दोज़ख को देखो। जिब्रईल अलैहिस्सलाम गए और दोज़ख देखी, फिर अपने रब की बारगाह में हाज़िर होकर अर्ज़ किया ऐ परवरदिगार! तेरी इज़्ज़त की क़सम इसके बारे में जो भी सुनेगा वोह हरगिज़ इसमें दाखि़ल न होगा, फिर अल्लाह तआला ने दोज़ख को बाज़ शहवानी नफसानी ख़ाहिशात से ढांप कर फ़रमाया कि जिब्रईल अब जाओ और दोज़ख को देखो, तो जिब्रईल अलैहिस्सलाम गए और दोज़ख देखी, फिर अर्ज़ किया ऐ परवरदिगार! तेरी इज़्ज़त की क़सम मुझे अंदेशा है कि कोई ऐसा न बचेगा जो इसमें दाखि़ल न हो। (अबू दाउद, किताबुल सना, बाब फी खल्की जन्नत व नार)
हिकायतः- हजरते यहया अलैहिस्सलाम ने एक रात जौ की रोटी पेट भर कर खा ली और इबादते इलाही में हाज़िर न हुए अल्लाह तआला ने वही की ऐ यहया! क्या तू ने इस दुनिया को आखिरत से बेहतर समझा है या मेरे जवारे रहमत से बेहतर तूने कोई और जवार पा लिया है। मुझे इज्जत व जलाल की कसम गर तू जन्नतुल फिरदौस का नजारा कर ले और जहन्नम को देख ले तो आंसूओं के बदले ख़ून रोये और इस अच्छे लिबास की जगह लोहे का लिबास पहने। (मुकाशफतुल कुलूब, बाब 4, पेज 56)
फिक्रे आख़रित
हुज्जतुल इस्लाम इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह मुकाशिफतुल क़ुलूब में नक़्ल करते हैं कि मीज़ाने अमल और नामए आमाल के दाएं या बाएं हाथ में दिए जाने के बारे में ग़ौर करते रहना तुम्हारे लिए ज़रूरी है क्योंकि हिसाब के बाद लोगों की तीन जमाअतें होंगी, एक जमाअत वह होगी जिस की कोई नेकी नहीं होगी, तब से एक सियाह गर्दन नमूदार होगी जो उन्हें इस तरह उचक लेगी जैसे परिन्दा दाने उचक लेता है और उन्हें लपेट कर आग में डाल देगी और आग उन्हें निगल लेगी, फिर पुकार कर कहा जाएगा, इन की बद बखती दाईमी है और इन के लिए किसी भलाई की उम्मीद नहीं है, दूसरी जमाअत वह होगी जिस की कोई बुराई नहीं होगी, उस दिन आवाज आएगी कि हर हाल में अल्लाह की हम्द करने वाले खड़े हो जाएं, वह खड़े हो जाएंगे और निहायत इतमिनान से जन्नत में दाखिल होंगे, फिर रातों को इबादत करने वालों, तिजारत और खरीद व फरोख्त के सबब जिक्रे खुदा से न रुकने वालों को इसी तरह जन्नत में भेजा जाएगा और कहा जाएगा कि इन के लिए दाईमी सआदत है जिस के बाद कोई दुख तकलीफ नहीं है, तीसरी जमाअत वह होगी जिन के नामाए आमाल में नेकियां और गुनाह दोनों दर्ज होंगे लेकिन उन्हें ख़बर नहीं होगी, जब तक अल्लाह तआला अपनी रहमत और अपने ग़ज़ब का इज़हार फरमाए, उन लोगों के नामए आमाल में गुनाह और नेकियाँ लिपटी हुई होंगी, उन के आमाल मीज़ान किए जाएंगे और उन की आंखें नामए आमाल की तरफ होंगी कि कौन से हाथ में आता है और मीज़ान का पल्ला किधर झुकता है और यह ऐसी खौफनाक हालत होगी जिस से लोगों के होश उड़ जाएंगे।
फिक्रे आख़रित के मुतअल्लिक़ फ़रमाने मुस्तफा ﷺ
हुजूर नबिय्ये करीम ने खुत्बा देते हुए इर्शाद फ़रमाया : ऐ लोगो ! यक़ीनन दुन्या तुम्हारे लिये जाए अमल है तो अपने आ’माल को ब खूबी पूरा करो । और तुम्हारा एक अन्जाम (मौत) है तो अपने अन्जाम की तैयारी करो । मुसल्मान दो ख़ौफ़ों के दरमियान रहता है (1) एक उस मुद्दत का ख़ौफ़ जो गुज़र चुकी, वोह नही जानता कि अल्लाह -१) ने उस के बारे में क्या फ़ैसला फ़रमाया है। और (2) दूसरे उस मुद्दत का ख़ौफ़ जो अभी बाक़ी है, वोह नही जानता कि अल्लाह उस के साथ क्या मुआमला फ़रमाता है पस बन्दे को चाहिये कि में बुढ़ापा आने से क़ब्ल जवानी ही में आखिरत के लिये जादे राह इकठ्ठा कर ले, क्यूंकि तुम आखि़रत के लिये पैदा किये गए हो और दुन्या तुम्हारे लिये बनाई गई है, क़सम है उस जात की जिस के क़ब्ज़ए कुदरत में मेरी जान है ! मौत के बा’द (इबादत के लिये) थकने का कोई मौकअ नहीं और दुन्या के बाद जन्नत और दोज़ख़ के इलावा कोई घर नहीं मैं अल्लाह तआला से अपने और तुम्हारे लिये इस्तिफ़ार करता हूं।“ (अल मर्जउस्साबिक, अल हदीसः 10571, स. 360)