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Khidmate Khalk

जन्नत में दाखि़ला

हदीस न. 1 : फ़रमाने मुस्तफा़ ﷺ है, मेरी उम्मत के लोग जन्नत में नमाज़ व रोज़ों की ज़्यादती से नहीं बल्कि दिलों की सलामती, सखा़वत और मुसलमानों पर रहम करने की बदौलत दाखि़ल होगे। (मुकाशफूतुल क़ुलूब, बाब 18, पेज 130)

रहम की हकी़क़त और फ़ज़ीलत
हदीस न. 2 : रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इरशाद है, जन्नत में रहम करने वाला ही दाखिल होगा। सहाबए किराम ने कहा क्या हम सब रहम करने वाले हैं। आप ने फ़रमाया रहीम (रहम करने वाला) वह नहीं जो अपने आप पर रहम करे बल्कि रहीम वह है जो अपने आप पर और दूसरों पर रहम करे।
अपने आप पर रहम करने का मतलब यह है कि खुलूस दिल से इबादत कर के गुनाहों से अलग होकर और तौबा कर के अपने वजूद को अल्लाह के अज़ाब से बचाये और दूसरों पर रहम यह है कि किसी मुसलमान को तक़लीफ न दे । (मुकाशफतुल क़ुलूब, बाब 18, पेज 129)

हदीस न. 3 : फ़रमाने हुजूरे अनवर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम है, मुसलमान वह है जिस के हाथ और ज़बान से लोग महफूज़ रहें और वह जानवरों पर रहम करे, उन से उन की ताकत के मुताबिक काम ले । (मुकाशफतुल क़ुलूब, बाब 18, पेज 129)

कुत्ता पर रहम करने का बदला
हिकायतः – हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का फ़रमान है। एक शख़्स सफर में जा रहा था कि उसे रास्ते में सख्त प्यास लगी। उसे करीब ही एक कुआँ नज़र आया, जब कुएं से पानी पी कर चला तो देखा एक कुत्ता प्यास के मारे ज़बान बाहर निकाले पड़ा है। उसे रहम और ख़्याल आया कि उसे भी मेरी तरह प्यास लगी होगी। वह वापस गया, मुँह में पानी भर कर कुत्ते के पास आया और उसे पिला दिया, अल्लाह तआला ने सिर्फ इसी रहम की बदौलत उस के गुनाहों को माफ कर दिया।(मुकाशफतुल क़ुलूब, बाब 18, पेज 129)
रहम की नियत भी बेहतर है
हिकायतः – बनी इस्राईल पर सख्त कहत का जमाना था। एक आबिद का रेत के टीले से गुजर हुआ तो उसके दिल में ख्याल आया, काश यह रेत का टीला आटे का टीला होता और मैं उस से बनी इस्राईल के पेट भरवाता, अल्लाह तआला ने बनी इस्राईल के नबी की तरफ वही भेजी, मेरे उस बन्दे से कह दो कि तुझे इस टीले के बराबर बनी इस्राईल को आटा खिलाने से जितना सवाब मिलता हमने तुम्हारी इस नीयत की बदौलत ही उतना सवाब दे दिया है। इसी लिए नबी का फरमान है, मोमिन की नीयत उस के अमल से बेहतर है।(मुकाशफतुल क़ुलूब, बाब 18, पेज 130)

जानवरों पर हमदर्दी

हदीस न. 4 : सहाबए किराम ने सवाल किया या रसूलल्लाह ! (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) जानवरों पर हमदर्दी करने से भी हमें सवाब मिलता है? आपने फ़रमाया हर जानदार पर हमदर्दी का सवाब मिलता है। (मुकाशफतुल क़ुलूब, बाब 18, पेज 129)

चिड़ियाँ खरीद कर उड़ा देते 

हज़रते अबू दरदा रज़ियल्लाहु अन्हु बच्चों से चिड़ियाँ खरीद कर उन्हें छोड़ देते और फ़रमाते जाओ आज़ादी की ज़िन्दगी गुज़ारो ।(मुकाशफतुल क़ुलूब, बाब 18, पेज 130)

हदीस न. 5: सही बुखारी व मुस्लिम में जरीर इब्ने अब्दुल्लाह रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया अल्लाह तआला उस पर रह़म नहीं करता जो लोगों पर रह़म नहीं करता। (इस्लामी अख़लाक़ व आदाब, पेज 237)

हदीस न. 6 : अबू दाऊद व तिर्मिज़ी ने अब्दुल्लाह इब्ने उमर रदियल्लाहु तआ़ला अन्हुमा से रिवायत की कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया रहम करने वालों पर रहमान रहम करता है। ज़मीन वालों पर रहम करो तुम पर वह रहम फ़रमायेगा जिसकी हुकूमत आसमान में है । (बहारे शरीअत, हिस्सा 16 , पेज 237)

हदीस न. 7 : तिर्मिज़ी ने इब्ने अब्बास रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से रिवायत की किं रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया वह हममें से नहीं जो हमारे छोटे पर रहम न करें और हमारे बड़े की तौकीर न करे और अच्छी बात का हुक्म न करे और बुरी बात से मना न करे। (बहारे शरीअत, हिस्सा 16 , पेज 237)

हदीस न. 8 : तिर्मिज़ी ने अनस रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की जवान अगर बूढ़े का इकराम उसकी उमर की वजह से करेगा तो उसकी (बुढ़ापे के वक़्त) उमर के वक़्त अल्लाह तआला ऐसे को मुक़र्रर कर देगा जो उसका काम (ख़िदमत) करे।

हदीस न. 9: इमाम अहमद व बयहकी ने अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से की कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि मोमिन उलफ़त (महब्बत) की जगह है और उस शख्स में कोई भलाई नहीं जो न उलफ़त (महब्बत) करे न उससे उलफ़त (महब्बत) की जाये। (बहारे शरीअत, हिस्सा 16 , पेज 237)

महब्बत की अहमियत

अल्लाह के लिए महब्बत, ईमानी खसलत का नाम है। हुक़ूकुल इबाद (बंदों के हक़) की अदाएगी के लिए आपसी महब्बत का होना बहुत ही ज़रूरी है। इसके बग़ैर दूसरे मुसलमानों का हक़ अदा करने का जो हुक्म है उस पर अमल नामुमकिन है। जब कोई किसी से महब्बत करता है तो उसे उसके अंदर खूबियां नज़र आतीं हैं , उसकी ज़रूरत को अपनी ज़रूरत समझता है, उसके लिए रहम के जज़्बात रखता है, उसके लिए वही पसंद करता है जो अपने लिए पसंद करता है। येह तमाम खसलतें ईमानी खसलतें है। इस महब्बत के रहते एक मुसलमान के दिल में दुसरे मुसलमान के लिए हसद, कीना, नफ़रत जैसी बुरी खस्लतें जमा नहीं होंगी, उसकी ज़बान मुसलमान भाई की ग़ीबत, चुग़ली, उसे गाली देने और उसके खिलाफ़ झूठ से महफूज़ रहेगी और उसका हाथ क़त्लो गारत, ख़यानत, लड़ाई झगड़ा जैसे कामों से बचा रहेगा।

हदीस न. 10 : बयहक़ी ने अनस रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत्त की कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया जो मेरी उम्मत में किसी की हाजत पूरी कर दे जिससे मकसूद उसको ख़ुश करना है उसने मुझे खुश किया और जिसने मुझे खुश किया उसने अल्लाह को खुश किया और जिसने अल्लाह को खुश किया अल्लाह उसे ज़न्नत में दाखि़ल फ़रमायेगा । (बहारे शरीअत, हिस्सा 16 , पेज 237)

हदीस न. 11 : बहकी ने अनस रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया जो किसी मज़लूम की फरयादरसी करे अल्लाह तआला उसके लिए तिहत्तर मगफिरतें लिखेगा। उनमें से एक से उसके तमाम कामों की दुरूस्ती हो जायेगी और बहत्तर से, कियामत के दिन उसके दर्जे बलन्द होंगें। (बहारे शरीअत, हिस्सा 16 , पेज 237)

हदीस न. 12 : सही बुखारी व मुस्लिम में अनस रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया अपने भाई की मदद कर ज़ालिम हो या मज़लूम हो किसी ने अर्ज की या रसूलल्लाह मज़लूम हो तो मदद करूँगा। जालिम हो तो क्यूँकर मदद करूँ । फ़रमाया कि उसको जुल्म करने से रोक दे यही मदद करना है। (बहारे शरीअत, हिस्सा 16 , पेज 237)

हदीस न. 13 : सही बुखारी व मुस्लिम में इब्ने उमर रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से मरवी कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया मोमिन मोमिन का भाई है न उस पर जुल्म करे न उसकी मदद छोड़े और जो शख़्स अपने भाई की हाजत में है अल्लाह उसकी हाजत में है और जो शख्स मोमिन से किसी एक तकलीफ़ को दूर करे अल्लाह तआला कयामत की तकलीफ़ में से एक तकलीफ़ उसकी दूर कर देगा और जो शख़्स मुस्लिम की पर्दापोशी करेगा अल्लाह तआला कियामत के दिन उसकी पर्दापोशी करेगा । (बहारे शरीअत, हिस्सा 16 , पेज 237)

हदीस न. 14 : सही बुख़ारी व मुस्लिम में अनस रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया क़सम है उसकी जिसके हाथ में मेरी जान है बन्दा मोमिन नहीं होता जब तक अपने भाई के लिए वह पसन्द न करे जो अपने लिए पसन्द करता है। (बहारे शरीअत, हिस्सा 16 , पेज 237)

हदीस न. 15 : अबू दाऊद ने हज़रते आइशा रदियल्लाहु तआला अन्हा से रिवायत की कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि लोगों को उनके मरतबे में उतारो यानी हर शख़्स के साथ उस तरह पेश आओ जो उसके मरतबे के मुनासिब हो। सबके साथ एक सा बरताव न हो मगर उसमें ये लिहाज़ ज़रूर करना होगा कि दूसरे की तहकीर व तजलील न हो ।

हदीस न. 16 : तिर्मिज़ी व बयड़की ने अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया – तुम में अच्छा वह शख़्स है जिससे भलाई की उम्मीद हो और जिसकी शरारत से अमन हो और तुममें बुरा वह शख़्स है जिससे भलाई की उम्मीद न हो और जिसकी शरारत से अमन न हो। (बहारे शरीअत, हिस्सा 16 , पेज 237)

हदीस न. 17 : बयहकी ने अनस रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया तमाम मख़लूक अल्लाह तआला की है और अल्लाह तआला के नज़दीक सब में प्यारा वह है जो उसकी अयाल के साथ ऐहसान करे। (बहारे शरीअत, हिस्सा 16 , पेज 237)

हदीस न. 18 : फ़रमाने नबीए करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम है, जो किसी पर रहम नहीं करता, उस पर रहम नहीं किया जाता जो किसी को नहीं बख्शता उसे नहीं बख्शा जाता। (मुकाशफतुल क़ुलूब, बाब 18, पेज 129)

मख्लूक पर रहम का ईनाम 

रिवायत है कि हज़ते मूसा अलैहिस्सलाम ने अल्लाह तआला से सवाल किया ऐ अल्लाह! तूने मुझे किस वजह से सफी बनाया है? अल्लाह तआला ने फ़रमाया मख्लूक पर रहम करने की वजह से। (मुकाशफतुल क़ुलूब, बाब 18, पेज 130)

फरमाने नबवी है कि रहमत, शफक़त, और मुहब्बत में तमाम मुसलमान एक जिस्म की तरह हैं। जब जिस्म का कोई हिस्सा तकलीफ में पड़ जाता है तो सारा जिस्म उस दर्द और तकलीफ में मुब़्तला हो जाता है। (मुकाशफतुल क़ुलूब, बाब 18, पेज 130)

यतीमों से नफ़रत शैतानी काम है
हिकायतः – हज़रते ईसा अलैहिस्सलाम एक बार कहीं जा रहे थे, आपने शैतान को देखा, एक हाथ में शहद और दूसरे में राख लिए चला जा रहा था, आपने पूछा ऐ दुश्मने खुदा! यह शहद और राख तेरे किस काम आती है? शैतान ने कहा, शहद गीबत करने वालों के होंटों पर लगाता हूँ ताकि यह और आगे बढ़ें! राख यतीमों के चेहरों पर मलता हूं ताकि लोग उनसे नफरत करें ।(मुकाशफतुल क़ुलूब, बाब 18, पेज 130)

हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ्रमाया, जब यतीम को दुख दिया जाता है तो उस के रोने से अल्लाह तआला का अर्श काँप जाता है और अल्लाह तआला फ़रमाता है, ऐ फ़रिश्तो इस यतीम को जिस का बाप मिट्टी तले दफन हो चुका है, किस ने रुलाया है?।(मुकाशफतुल क़ुलूब, बाब 18, पेज 130)

हुजूरे अनवर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इरशाद है कि जिसने यतीम के कपड़े और खाने की ज़िम्मेदारी ले ली अल्लाह तआला ने उसके लिए जन्नत को वाजिब कर दिया। (मुकाशफतुल क़ुलूब, बाब 18, पेज 131)

खाना खिलाने का फ़ज़ीलत 

रौज़तुलउलमा में है कि हज़रते इब्राहीम अलैहिस्सलाम खाने से पहले मील दो मील का चक्कर लगाकर मेहमानों को तलाश किया करते थे। (मुकाशफतुल क़ुलूब, बाब 18, पेज 131)

एक बार हज़रते अली कर्रमल्लाहु वजहहु रो पड़े, पूछा गया आप क्यों रोये? आपने फ़रमाया एक हफ़्ता हो गया, मेरे यहाँ कोई (मोमिन) मेहमान नहीं आया। शायद अल्लाह तआला मुझ से खुश नहीं है। (मुकाशफतुल क़ुलूब, बाब 18, पेज 131)

फ़रमाने नबवी है, जो किसी भूके को फी सबीलिल्लाह खाना खिलाता है उस के लिए जन्नत वाजिब हो जाती है और जिस ने किसी भूके से खाना रोक लिया, अल्लाह तआला कियामत के दिन उस शख्स से अपना फ़ज़्ल व करम रोक लेगा और उसे अज़ाब देगा। (मुकाशफतुल क़ुलूब, बाब 18, पेज 131)

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