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Islam ?

अल्लाह के नज़दीक पसंदीदा दीन इस्लाम है
हज़रते बज़्ज़ाज़ रदीअल्लाहु अन्हु ने नबी ए मुकर्रम ﷺ से रिवायत किया है कि आप अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने इरशाद फ़रमाया कि जब मुश्रिकीन ने अपने अपने दीनों पर फख्र करना शुरू किया और हर फरीक़ येह कहने लगा कि हमारे दीन के सिवा कोई दीन हक़ नहीं और वही अल्लाह का दीन है उस वक्त से जब से अल्लाह त’आला आदम अलैहिस्सलाम को मबऊस फ़रमाया तो अल्लाह त’आला ने यह आयते तय्यबा नाज़िल फ़रमाई, “तर्जुमा : बेशक अल्लाह के नज़दीक पसंदीदा दीन दीने इस्लाम है”(सूरह इमरान, आयत न. 19) । और उनको अल्लाह त’आला ने इस क़ौल के साथ झुठलाया कि अल्लाह का दीन तो वोह दीने इस्लाम है जो मुहम्मद ﷺ लाए हैं और यही दीने हक़ है। (ज़ियाउल वाईजिन)

दीने इस्लाम दीने इब्राहीमी है
अल्लाह तआला फरमाता है (तर्जमा) :हमने तुम्हें वही भेजी कि दीन-ए-इब्राहीम की पैरवी करो जो हर बातिल से अलग था और मुशरिक न था (सूरह नहल, आयत नंबर 123)

इस्लाम की अहमियत 
दीने इस्लाम में चलने के लिए जो कानून बना उसे शरीअत कहते है जो शैतान से बचा कर अल्लाह तक पहुॅचाता है। अल्लाह तआला के नज़दीक मकबूल व पसन्दीदा दीन इस्लाम ही है। जब इब्लीस आदम अलैस्सिलाम का ताजिमी सज्दा न करके तौहीन किया और अल्लाह की नाफरमानी करके और आदम अलैहिस्सलाम को सजदा न करके शैतान बना तो कसम खा कर बोला मैं सीधे रास्ते मे बैठ जाऊंगा और तेरे बंदे को गुमराह कर दूंगा और तेरा शुक्रगुजार बन्दा नही रहने दूंगा । शैतान फिर बोला मैं इंसानो को पीस डालूंगा। अल्लाह अपने बंदों को शैतान से बचाने के लिए इस्लाम मजहब में सीधा रास्ता बना दिया इस रास्ते मे चलने के लिए क़ुरआन, अम्बिया, औलिया को इस दुनिया मे जाहिर किया। जो हमे चल के बता गए। सीधा रास्ता का ज़िक्र क़ुरान में यूं है (तर्जुमा) : हमको सीधा रास्ता चला, रास्ता उनका जिन पर तूने एह़सान किया ( सूरह फातेहा, आयत न. 6-7)

अल्लाह तआला इरशाद फरमाता हैः
तर्जुमा : तुम्हारे लिए इस्लाम को दीन पसन्द किया । (सुरहः माएदा, आयात 3)

तर्जमा : इस्लाम के सिवा कोई दीन चाहेगा वह हरगिज़ इससे कबूल न किया जाएगा और वह आख़रित में जियांकारों से। (सूरह इमरान, आयत न. 85)

इस्लाम मे कोई ज़बरदस्ती नहीं
अल्लाह फ़रमाता है : कुछ ज़बरदस्ती नहीं दीन में, बेशक खूब जुदा हो गई है नेक राह गुमराही से, तो जो शैतान को न माने और अल्लाह पर ईमान लाये उसने बड़ी मोहकम (मजबुत) गिरह थामी जिसे कभी खुलना नहीं। (सूरह बक़रह, आयत न. 256)

इस्लाम मे कोई मज़बूरी नहीं
अल्लाह फ़रमाता है : हम किसी जान पर बोझ नहीं डालते मगर उसकी ताक़त भर। (सूरह अनआम, आयत न. 152)
अल्लाह फ़रमाता है : वो जो ईमान लाये और ताकत भर अच्छे काम किये हम किसी पर ताक़त से ज़्यादा बोझ नहीं रखते वो जन्नत वाले हैं उन्हें उसमें हमेशा रहना (सूरह अआराफ, आयत न. 42)

दीने इस्लाम के 2 बाब
1. ईमान और 2. अमल, जिस तरह इंसान रूह और जिस्म का मजमुआ है और रूह असल है, रूह है तो जिस्म ज़िन्दा है वरना बेकार ठीक उसी तरह इस्लाम ईमान और अमल का मजमुआ है लेकिन ईमान असल है, ईमान है तो अमल दरुस्त है वरना बेकार। ईमान की अहमियत और हकीकत को जानो और ईमान की अलामतों और खसलतो को पहचानों । ईमान और ईमानी खसलतों का तअल्लुक़ दिल से है जबकि अमल का तअल्लुक जिस्म से है।
कुरआन में कई जगह है : आमिनू व आमिलुस्सालिहात“(तर्जमाः ईमान लाओ और नेक अमल करो) इस आयत से पता चला की ईमान और अमल अलग अलग है।

इस्लाम और अरकाने इस्लाम
इस्लाम के माना :- इस्लाम के माना लुगत में फरमाँ बरदार होना हुज़ूरﷺ के लाए हुए दीने बरहक़ को इस्लाम इसी लिए कहा जाता है कि जो इस दीन को कबूल करता है वह अपने को बिल्कुल अल्लाह त’आला का फ़रमाँबरदार बना लेता है। चुनाँचे इस हदीस में जिन आ’माले इस्लाम का ज़िक्र है यानी इबादत, नमाज़, ज़कात, रोज़ा और मुफस्सल हदीस में कलिमए शहादत और नमाज़ रोज़ा और हज व जकात यह सब आ’माल खुदा की फरमाँबरदारी के खासुल खास निशान हैं। इसी लिए हुजूर ﷺ ने इनको अरकाने इस्लाम क़रार दिया और फरमाया कि इस्लाम की बुनियाद पाँच चीजों पर है
1. कलिमए शहादत, 2. नमाज़, 3. रोज़ा, 4 ज़कात 5 हज इन पाँचों को हर मुसलमान अच्छी तरह जानता है। थोड़ी तफ्सील हम भी यहाँ तहरीर कर देते हैं।
कलिमए शहादतः कलिमए शहादत का मफहूम और मतलब – यह है कि सिद्क दिल से अल्लाह के एक होने और माबूद होने और हज़रत मुहम्मद ﷺ के रसूल होने की गवाही देना और दिल से मानते हुए जबान से “अशहदो अन ला इला-ह इल्लल्लाहु वहदहू ला शरीक लहू व अशहदु अन् न मुहम्मदन अब्दुहू व रसूलुहू“ कहना। इसमें तमाम ज़रूरी अकाइद इस्लाम में दाखिल हैं क्योंकि जिसने हुजूर अकरम ﷺ को दिल से अल्लाह का रसूल मानकर उनकी रिसालत की गवाही दे दी गोया हर उस चीज की तस्दीक़ करदी जिसको हुज़ूर ﷺ खुदा की तरफ से लाए। (मुन्तख़ब हदीसें, पेज 41,42, अब्दुल मुस्तफ़ा आज़मी)

इस्लामी बुनियाद का 2 बाब
इस्लाम की बुनियाद जिन 5 चीजों पर है उनमें 1. कलिमए शहादत जो ईमान का बाब है और बाकी 4 अरकान जैसे नमाज़, रोज़ा, हज़्ज़ व ज़कात अमल का बाब है। पता चला कि ईमान और अमल इस्लाम का बुनियाद है। बग़ैर ईमान का अमल बेकार और बग़ैर नेक अमल का ईमान नाक़िस होने का अंदेशा है।

इस्लाम में पूरे दाखि़ल हो जाओ
अल्लाह फ़रमाता है : ऐ ईमान वालो इस्लाम में पूरे दाखि़ल हो जाओ और शैतान के क़दमों पर न चलो बेशक वह तुम्हारा खुला दुश्मन है। (सूरह बकरह, आयत नं. 208)

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